Parama Ekadashi Vrat Katha: सिद्धियों को देने वाली परमा एकादशी व्रत कथा यहां देखें

Parama Ekadashi Vrat Katha In Hindi: पुरुषोत्तम मास कृष्ण पक्ष की एकादशी (Purushottam Ekadashi Vrat Katha In Hindi) को परमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का महत्व स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया था। जानिए परमा एकादशी की व्रत कथा (Today Ekadashi Ki Katha)।

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Parama Ekadashi Vrat Katha Or Purushottam Ekadashi Katha In Hindi

Parama Ekadashi 2023 Vrat Katha In Hindi: अधिकमास की एकादशी यानि परमा एकादशी 12 अगस्त (12 August 2023 Ekadashi Vrat Katha) को मनाई जाएगी और इस व्रत का पारण (Parama Ekadashi Vrat Parana Time 2023) 13 अगस्त को किया जाएगा। पारण समय 13 अगस्त की सुबह 5 बजकर 52 मिनट से 8 बजकर 19 मिनट तक रहेगा। इस एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना जाता है। कहते हैं जो व्यक्ति इस एकादशी (Aaj Ki Ekadashi Vrat Katha) से लेकर अगले पांच दिन तक व्रत रख एक समय भोजन करता है उसके जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इस एकादशी व्रत को करने से गरीब ब्राह्मण की दरिद्रता का नाश हो गया था। यहां पढ़ें पुरुषोत्तम एकादशी (Purushottam Ekadashi Ki Katha) और परमा एकादशी की व्रत कथा (Parma Ekadashi Ki Katha)।

परमा एकादशी व्रत कथा (Parama Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

अर्जुन ने कहा है कमलनयन आप मुझे अधिकमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में बताएं। इस एकादशी का क्या नाम है? इसमें किसकी पूजा की जाती है और इस एकादशी व्रत को करने से क्या लाभ मिलता है? इसकी विधि क्या है? इन सब के बारे में विस्तार से बताइए। श्री कृष्ण भगवान बोले, हे अर्जुन! अधिकमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को परमा एकादशी (Parama Ekadashi Katha In Hindi) कहते हैं।
अधिकमास में दो एकादशी होती है एक पद्मिनी एकादशी जो शुक्ल पक्ष में आती है और एक परमा एकादशी (Parma Ekadashi Vrat Katha) जो कृष्ण पक्ष में आती है। इसका व्रत करने से व्यक्ति को सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है और सुख की प्राप्ति होती है। इसका व्रत विधि अनुसार करना चाहिए और भगवान कृष्ण की धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य से पूजा करनी चाहिए।
इस एकादशी (Ekadashi Vrat Katha) की पावन कथा जो कि महर्षियों के साथ काम्पिल्य नगरी में हुई थी, वह मैं तुम्हे बताता हूं...काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री पवित्र तथा पतिव्रता थी। पिछले जन्म के पाप के कारण वह दंपती अत्यंत गरीबी में जीवन जी रहे थे। ब्राह्मण की स्थिति ऐसी थी कि उसे भिक्षा मांगने पर भी भिक्षा नहीं मिलती थी। उस ब्राह्मण की पत्नी वस्त्रों से रहित होते हुए भी अपने पति की सेवा करती थी और घर आए मेहमान को अन्न देकर स्वयं भूखी रह जाती थी और अपने पति से कभी किसी चीज की मांग नहीं करती थी।
एक दिन ब्राह्मण अपनी स्त्री से बोला: हे प्रिय! जब मैं धनवान लोगों से धन की याचना करता हूं तो वह मुझे मना कर देते हैं। परिवार धन के बिना नहीं चलता, इसलिए यदि तुम सहमति दो तो मैं परदेस जाकर कुछ काम करूं, क्योंकि विद्वानों ने कर्म की प्रशंसा की है।
ब्राह्मण की पत्नी ने कहा हे स्वामी! मैं आपकी दासी हूं। पति अच्छा या बुरा जो कुछ भी कहे, पत्नी को वही करना चाहिए। मनुष्य को उसके पिछले जन्म के कर्मों का फल मिलता है। सुमेरु पर्वत पर रहने पर भी मनुष्य को बिना भाग्य के स्वर्ण नहीं मिलता। अत: पूर्व जन्म में जो मनुष्य विद्या और भूमि का दान करते हैं, उन्हें अगले जन्म में ये दोनों चीजें प्राप्त होती है। इसलिए ईश्वर ने भाग्य में जो कुछ लिखा है, उसे कोई टाल नहीं सकता।
जो मनुष्य दान नहीं करता तो प्रभु उसे केवल अन्न ही देते हैं, इसलिए आपको यही पर रहना चाहिए, क्योंकि मैं आपके बिना नहीं रह सकती। पति के बिना स्त्री की हर जगह निंदा होती है हसलिए हे स्वामी! कृपा कर आप कहीं न जाएं, जो भाग्य में लिखा है वही प्राप्त होगा।
अपनी पत्नी की सलाह मानकर ब्राह्मण परदेश नहीं गया और इसी प्रकार समय बीतता रहा। एक बार कौण्डिन्य ऋषि वहां आए। ऋषि को देखकर ब्राह्मण और उसकी स्त्री ने उन्हें प्रणाम किया और बोले: आज हम धन्य हुए। आपके दर्शन से आज हमारा जीवन सफल हो गया है।
ऋषि को उन्होंने आसन और भोजन दिया। भोजन देने के बाद पतिव्रता ब्राह्मणी ने कहा: हे ऋषिवर! कृपा आप मुझे गरीबी का नाश करने की विधि बताइए। मैंने अपने पति को परदेश में जाकर धन कमाने से रोका है और भाग्य से आप आ गए हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारी गरीबी जल्द खत्म हो जाएगी। अतः आप हमारी दरिद्रता नष्ट करने का कोई उपाय बताइए।
ब्राह्मणी की बात सुन कौण्डिन्य ऋषि बोले: हे ब्राह्मणी! अधिकमास की कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप, दुःख और दरिद्रता नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति धनवान हो जाता है। इस व्रत में नृत्य, गायन आदि सहित रात्रिभर जागरण करना चाहिए।
यह एकादशी धन-वैभव देती है और समस्त पापों का नाश करती है। धनाधिपति कुबेर ने भी इस एकादशी व्रत को किया था जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद प्रदान किया। इसी व्रत को करके सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को पुत्र, स्त्री और राज्य की प्राप्ति हुई थी।
इस तरह से कौण्डिन्य ऋषि ने उन्हें एकादशी के व्रत का समस्त विधान कह सुनाया। ऋषि ने कहा हे ब्राह्मणी! पंचरात्रि व्रत इससे भी ज्यादा उत्तम है। परमा एकादशी के दिन सुबह-सुबह नित्य कर्म से निवृत्त होकर विधानपूर्वक पंचरात्रि व्रत आरम्भ करना चाहिए।
जो मनुष्य पांच दिन तक निर्जल व्रत करते हैं वो अपने माता-पिता और स्त्री सहित स्वर्ग लोक को प्राप्त करते हैं। जो मनुष्य पांच दिन तक सिर्फ संध्या को भोजन करते हैं, वे स्वर्ग को जाते हैं। जो मनुष्य स्नान करके पांच दिन तक ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं वो समस्त संसार को भोजन कराने का फल प्राप्त करते हैं। जो मनुष्य इस व्रत में अश्व दान करते हैं उन्हें तीनों लोकों को दान करने का फल प्राप्त होता है। जो मनुष्य ब्राह्मण को तिल दान करते हैं उन्हें तिल की संख्या के बराबर वर्षो तक विष्णुलोक में वास करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। जो मनुष्य घी का पात्र दान करते हैं वो सूर्य लोक को जाते हैं। जो मनुष्य पांच दिन तक ब्रह्मचर्यपूर्वक रहते हैं वे देवांगनाओं के साथ स्वर्ग को जाते हैं। अत: हे ब्राह्मणी! तुम भी अपने पति के साथ इसी व्रत को धारण करो। इससे तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होगी।
कौण्डिन्य ऋषि के कहे अनुसार ब्राह्मण और उसकी स्त्री ने परमा एकादशी का पांच दिन तक विधि विधान व्रत किया। व्रत पूरा होने के बाद ब्राह्मण की स्त्री ने एक राजकुमार को अपने यहां आते देखा।
राजकुमार ने ब्रह्माजी की प्रेरणा से एक उत्तम घर जो सभी वस्तुओं से परिपूर्ण था उनके रहने के लिए दिया। साथ ही राजकुमार ने उनकी आजीविका के लिए एक गांव दिया। इस प्रकार ब्राह्मण और उसकी स्त्री की गरीबी दूर हो गई और वो दोनों पृथ्वी पर वर्षों तक सुख भोगने के बाद श्री विष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गए।
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