Parivartini Ekadashi Vrat Katha In Hindi: परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा, इसे पढ़ने से हर पाप से मिल जाएगी मुक्ति

Parivartini Ekadashi Vrat Katha In Hindi, Aaj Ki Ekadashi Ki Katha: परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। जिसे पार्श्व एकादशी, जल झुलनी एकादशी और देवझूलनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है इस एकादशी का व्रत करने से बड़े से बड़े पाप तक से छुटकारा मिल जाता है। चलिए जानते हैं परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा।

Parivartini Ekadashi Vrat Katha In Hindi

Parivartini Ekadashi Vrat Katha In Hindi, Aaj Ki Ekadashi Ki Katha (परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा): परिवर्तिनी एकादशी का व्रत इस साल 14 सितंबर को रखा जाएगा। सनातन धर्म में इस एकादशी का विशेष महत्व माना गया है। इसे पद्मा एकादशी, जयंती एकादशी, जल झुलनी एकादशी, देवझूलनी एकादशी और वामन एकादशी समेत कई नामों से जाना जाता है। ये एकादशी व्रत सभी पापों का नाश करता है और मरने के बाद बैकुंठ धाम की प्राप्ति कराता है। परिवर्तिनी एकादशी पर श्री हरि विष्णु भगवान के वामन अवतार की पूजा की जाती है। साथ ही इसकी पौराणिक कथा भी जरूर पढ़ी जाती है। चलिए जानते हैं परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा।

पार्श्व एकादशी व्रत कथा 2024 (Parivartini Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

परिवर्तिनी एकादशी की कथा अनुसार त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। वो विविध प्रकार के वेद सूक्तों से श्री हरि विष्णु का पूजन किया करता था और प्रतिदिन ही ब्राह्मणों का पूजन कर यज्ञ का आयोजन करता था। लेकिन उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया था। इससे परेशान होकर सभी देवता भगवान के पास गए और उनसे प्रार्थना करने लगे। तब भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण करके अपना पांचवां अवतार लिया। वामन रूपधारी ब्रह्मचारी बनकर श्री हरि विष्णु भगवान ने बलि से तीन पग भूमि की याचना की।
राजा बलि ने भी तीन पग भूमि का संकल्प दे दिया। इसके बाद भगवान ने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर यहां तक कि भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, मह:लोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख, उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया। ये देखकर बलि घबरा गया। तब मैंने राजा बलि से कहा कि हे राजन! एक पद से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गए हैं। अब तीसरा पग कहां रखूं? तब बलि ने अपना सिर झुकाया और वामन भगवान ने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे वो पाताल को चला गया। लेकिन उसकी विनती, नम्रता और दानी स्वभाव को देखकर श्री विष्णु भगवान से उससे कहा कि बलि मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूंगा। बलि के कहने पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम में श्री हरि विष्णु की मूर्ति स्थापित हुई।
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