Parivartini Ekadashi Vrat Katha In Hindi
Parivartini Ekadashi Vrat Katha In Hindi In Hindi (परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा): परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद शुक्ल एकादशी को कहते हैं। इसे पद्मा एकादशी (Padma
Ekadashi Vrat Katha), पार्श्व एकादशी (Parsva
Ekadashi Vrat Katha), जयंती एकादशी (Jayanti Ekadashi Katha), जल झुलनी एकादशी (Jal Jhulni Ekadashi Vrat Katha) और वामन एकादशी (Vaman Ekadashi Vrat Katha) इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। मान्यता है परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां जानिए परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा (Parivartini Ekadashi Vrat Katha)
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस एकादशी की व्रत कथा सुनाई थी। श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे राजन! त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। जो मेरा परम भक्त था। वो विधि विधान मेरा पूजन किया करता था और रोजाना ही ब्राह्मणों का पूजन और यज्ञ के आयोजन करता था। लेकिन इंद्र से द्वेष के कारण उसने इंद्रलोक को जीत लिया।
इस कारण सभी देवता एकत्र होकर भगवान के पास गए। बृहस्पति सहित इंद्रादिक देवता वेद मंत्रों द्वारा भगवान का पूजन और स्तुति करने लगे। अत: मैंने देवताओं की पूजा से प्रसन्न होकर वामन रूप धारण लिया और फिर राजा बलि को जीत लिया।
इतनी वार्ता सुनकर युधिष्ठिर बोले कि हे जनार्दन! आपने वामन रूप धारण करके उस महाबली दैत्य को किस प्रकार जीता? आगे श्रीकृष्ण ने कहा कि मैने वामन रूप धारण करके राजा बलि की परीक्षा ली। बलि ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था। लेकिन उसके अंदर एक सबसे बड़ा गुण था कि वह कभी किसी ब्राह्मण को खाली हाथ नहीं जाने देता था। वह ब्राह्मण को दान में मांगी वस्तु अवश्य देता था। मैंने वामन रूप में बलि से तीन पग भूमि मांगी। बलि ने वामन स्वरूप भगवान विष्णु की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और उसने तीन पग जमीन देने का वचन दे दिया।
वचन मिलते ही मैंने विराट रूप धारण किया और एक पांव से पृथ्वी तो दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। अभी तीसरा पग बचा था और राजा बलि के पास देने को कुछ भी नहीं बचा था। इसलिए बलि ने वचन पूरा करते हुए अपना सिर मेरे पैरों के नीचे रख दिया और इस तरह से भगवान वामन ने तीसरा पैर राजा बलि के सिर पर रख दिया। राजा बलि की वचन प्रतिबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने उसे पाताल लोक का स्वामी बना दिया।
इस एकादशी को भगवान शयन करते हुए करवट लेते हैं इसलिए इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। इस दिन तांबा, चांदी, चावल और दही का दान फलदायी माना जाता है। साथ ही इस दिन रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए।
धार्मिक मान्यताओं अनुसार जो विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करता है वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग लोक की प्राप्ति करता है। जो पापनाशक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उनको हजार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।