पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
Paush Putrada Ekadashi Katha In Hindi: पौष पुत्रदा एकादशी व्रत इस बार 2 जनवरी को रखा जाएगा। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। कहते हैं इस व्रत को करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है साथ ही संतान की रक्षा भी होती है। इस व्रत का महत्व जानने की जिज्ञासा से धर्मराज युधिष्ठिर श्री कृष्ण भगवान से कहने लगे कि हे भगवान अब आप मुझे पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में बताने की कृपा करें। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए।
तब भगवान श्रीकृष्ण बोले: पौष माह की शुक्ल एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसमें भी नारायण भगवान की पूजा की जाती है। इस व्रत के पुण्य से व्यक्ति मनुष्य तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मीवान होता है। इसकी मैं एक कथा बताता हूं उसे तुम ध्यानपूर्वक सुनना।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha In Hindi)
भद्रावती नामक एक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। जिसकी स्त्री का नाम शैव्या था। दोनों पति पत्नी सबकुछ होते हुए भी दुखी रहते थे क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचते थे कि इसके बाद हमें कौन पिंड देगा। राजा को किसी भी चीज से संतोष नहीं हो पा रहा था।
वह सदैव यही सोचता रहता था कि मेरे मरने के बाद मुझे कौन पिंडदान करेगा। बिना संतान के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका पाउंगा। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था। एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का भी निश्चय कर लिया था लेकिन आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया और पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। इस तरह से उसका आधा दिन बीत गया। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझे दुख क्यों प्राप्त हुआ?
राजा प्यास के मारे इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके चला गया। राजा को देखकर मुनियों ने कहा - हे राजन! हम तुमसे प्रसन्न हैं। तुम्हारी जो इच्छा है, सो कहो। राजा ने पूछा - महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहाँ आए हैं। मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।
यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे पास कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे संतान प्राप्ति का वरदान दे दीजिए। मुनि बोले - हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से आपको संतान अवश्य प्राप्त होगी। मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उस व्रत का पारण किया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के बाद उसे एक पुत्र हुआ।
श्रीकृष्ण बोले: हे राजन! संतान की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।