Pausha Putrada Ekadashi 2023: संतान के लिए रखा जाता है पुत्रदा एकादशी का व्रत, जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

Pausha Putrada Ekadashi 2023: पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत 02 जनवरी 2023 को रखा जाएगा। संतान की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए यह व्रत रखा जाता है। पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है। इस दिन पूजा में इससे संबंधित व्रत कथा जरूर पढ़ें या सुनें।

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संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता है पुत्रदा एकादशी का व्रत

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है पुत्रदा एकादशी व्रत
  • संतान प्राप्ति के बहुत फलदायी है पुत्रदा एकादशी का व्रत
  • पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा के बिना संपूर्ण नहीं होती है पूजा
Pausha Putrada Ekadashi 2023, Vrat Katha: पौष महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस साल पुत्रदा एकादशी साल 2023 की पहली एकादशी होगी, जोकि सोमवार 2 जनवरी 2023 को पड़ रही है। पुत्रदा एकादशी का व्रत साल में दो बार रखा जाता है। पौष महीने के शुक्लपक्ष और सावन महीने के शुक्लपक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी का व्रत संतान की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन
की कामना के लिए रखा जाता है। इसलिए भी इसे पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा अराधना की जाती है और दूसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है। विधि-विधान से पूजा करने के साथ ही इस दिन इससे संबंधित व्रत कथा भी जरूर सुननी या पढ़नी चाहिए। पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा के बिना पूजा और व्रत अधूरी मानी जाती है। जानते हैं पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा के बारे में।
पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा
पुत्रदा एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, सुकेतुमान नामक राजा जोकि भद्रावती नगरी में राज्य करता था। राजा और उसकी पत्नी हमेशा चिंतित रहते थे, क्योंकि उनके वंश को आगे बढ़ाने के लिए कोई संतान नहीं थी। राजा ये सोचता था कि उसकी मृत्यु के बाद पूर्वजों का पिंडदान कैसे होगा। राजा को यह चिंता खाए जा रही थि बिना संतान वो पितरों का ऋण कैसे चुका पाएंगे।
इसी चिंता में एक दिन राजा घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर चले गए। उन्होंने जंगल में एक सरोवर के पास कुछ मुनियों को देखा तो उन्हें प्रणाम करने को रुके और वहीं बैठ गए। राजा को देख मुनियों ने कहा- हम आपसे अत्यंत प्रसन्न है, बताइए आपकी क्या इच्छा है। राजा ने कहा, महाराज आपलोग कौन हैं और यहां इस सरोवर में क्या कर रहे हैं। मुनियों ने कहा, हम विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान के लिए आए हैं क्योंकि आज संतान प्राप्ति वाली पुत्रदा एकादशीहै।
राजा ने हाथ जोड़कर कहा, महाराज मुझे कोई संतान नहीं है. आप मुझे कुछ देना चाहते हैं तो तो संतान का वरदान दीजिए। मुनि बोले- आज पुत्रदा एकादशी है, आप भी इस व्रत को करें इससे भगवान की कृपा से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। राजा ने उसी दिन मुनियों के साथ पुत्रदा एकादशी काव्रत किया और अगले दिन महल आ गए। व्रत के प्रभाव से कुछ समय बाद राजा की पत्नी गर्भवती हो गई और दसवें महीने बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया।
इसलिए संतान प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी के व्रत को फलदायी माना गया है। जो व्यक्ति पुत्रदा एकादशी का व्रत रखता है और इस कथा को पढ़ता उसे अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है। इसके बाद व्यक्ति मरणोपरांत स्वर्ग लोक को प्राप्त करता है।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)
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