Ravi Pradosh Vrat Katha In Hindi: रवि प्रदोष व्रत की कथा हिंदी में यहां पढ़ें

Pradosh Vrat Katha: हर महीने की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है। ये व्रत भगवान शिव को समर्पित है। ऐसी मान्यता है इस व्रत को करने से व्यक्ति के सारे दुख दूर हो जाते हैं। 19 मार्च को ये व्रत रखा जाएगा। इस दिन पूजा के समय ये व्रत कथा पढ़ना बिल्कुल भी न भूलें।

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प्रदोष व्रत कथा

Ravi Pradosh Vrat Katha: प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है जो व्यक्ति सच्चे दिल से ये व्रत करता है उसकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं। इतना ही नहीं इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। एक महीने में दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं। एक कृष्ण पक्ष में दूसरा शुक्ल पक्ष में। इस व्रत को त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। व्रत करने वाले इंसान को सुबह बेल पत्र, गंगा जल, अक्षत, धूप आदि चीजों से भगवान शिव की पूजा करना करनी चाहिए और फिर शाम में फिर से भगवान शिव की विधि विधान पूजा करते हुए व्रत कथा पढ़नी चाहिए। यहां जानिए रवि प्रदोष व्रत की कथा।

प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha)

एक समय की बात है, किसी नगर में एक गरीब पुजारी रहता था। पुजारी की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी और पुत्र अपने भरण-पोषण के लिए भीख मांगा करती थी। ये दोनों दिनभर भीख मांगने के बाद शाम तक घर वापस आते थे। एक दिन विदर्भ देश के राजकुमार से उसकी मुलाकात हुई, जो अपने पिता के देहांत के बाद दर-दर भटकने लगा था। राजकुमार को इस हाल में देख पुजारी की पत्नी उसे अपने साथ अपने घर ले आई और पुत्र जैसा रखने लगी। एक दिन दोनों पुत्रों के साथ पुजारी की पत्नी शांडिल्य ऋषि के आश्रम गई। वहां ऋषिमुनि से उसने शिव जी के पावन प्रदोष व्रत की कथा एवं विधि सुनी। वापस घर जाकर वह भी प्रदोष व्रत करने लगी।

वहीं, एक दिन दोनों बालक वन में घूमने गए। उनमें से पुजारी का पुत्र घर लौट आया। लेकिन राजकुमार वन में ही ठहर गया। वहां राजकुमार ने गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देख उनसे बात करने लगा। उस कन्या का नाम अंशुमती था। इस तरह राजकुमार उस दिन देरी से घर वापस लौटा। अगले दिन राजकुमार फिर से उसी जगह पहुंचा। इसबार अंशुमती वहां पर अपने माता-पिता से बात कर रही थी।अंशुमती के माता-पिता ने राजकुमार को देखते ही पहचान लिया और कहा कि आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार, धर्मगुप्त हैं न? अंशुमती के माता-पिता को, राजकुमार बेहद पसंद आया और उसने अपनी पुत्री का विवाह करने की इच्छा जताई।

इसपर राजकुमार ने अपनी स्वीकृति दे दी। इस तरह उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ। बाद में गंधर्व की विशाल सेना के साथ मिलाकर राजकुमार ने विदर्भ पर हमला किया। घमासान युद्ध करने के बाद विजय प्राप्त की। फिर पत्नी के साथ खुशी-खुशी राज्य करने लगा। राजकुमार पुजारी की पत्नी और पुत्र को आदर के साथ महल में ले आया और सभी एक साथ रखने लगे। पुजारी की विधवा पत्नी और पुत्र की दुःख और दरिद्रता दूर हो गई। वे सुख से अपना जीवन बिताने लगे।

अंशुमती एक दिन राजकुमार से इन सभी बातों के पीछे की वजह और रहस्य जानने को इच्छा जाहिर की। तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी बात बताई। साथ में प्रदोष व्रत का महत्व भी बताया। तभी से प्रदोष व्रत का महत्व बढ़ गया और लोग यह व्रत करने लगे। कई जगहों पर स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं।

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