Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत कितने रखने चाहिए, कब शुरू करने चाहिए, इसके नियम, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त क्या है, जानें त्रयोदशी व्रत के बारे में सबकुछ यहां

हिंदू धर्म में त्रयोदशी व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। जिसे कई लोग प्रदोष व्रत के नाम से भी जानते हैं। इस व्रत में भगवान शिव की पूजा होती है। एक महीने में दो बार ये व्रत पड़ता है। यहां आप जानेंगे त्रयोदशी यानी प्रदोष व्रत कैसे किया जाता है, इसकी विधि क्या है, इसे कब से शुरू कर सकते हैं, कितने व्रत रखने चाहिए और उद्यापन कैसे करें। पंडित सुजीत जी महाराज से जानें प्रदोष व्रत से जुड़े हर एक सवाल का जवाब।

Pradosh Vrat

Pradosh Vrat Vidhi

Pradosh Vrat Vidhi And Niyam (प्रदोष व्रत के बारे में सबकुछ): भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत का बहुत महत्व है। प्रत्येक महीने में दो प्रदोष पड़ते हैं। एक शुक्ल और एक कृष्ण पक्ष में। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। यह व्रत कई जन्म के पापों को समाप्त करता है। संतान की उन्नति के लिये यह व्रत बहुत महत्वपूर्ण है। प्रदोष संतान प्राप्ति के मार्ग मेंआने वाली समस्त बाधाओं को भी समाप्त करता है। (Pradosh Vrat Niyam) इस दिन पार्थिव पूजन का बहुत महत्व है। प्रदोष व्रत के दिन घर में पार्थिव का शिवलिंग बनाकर रुद्राभिषेक करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। प्रदोष वाले दिन शिव मंदिर में सायंकाल में प्रदोष काल के समय शिवलिंग के पास दीपक जलाएं व रुद्राक्ष के माला पर ॐ नमः शिवाय का 10 माला जप करें। इससे आपको भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होगी। चलिए अब जानते हैं प्रदोष व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी।

May Pradosh Vrat 2024 List

प्रदोष व्रत कितने रखने चाहिए (Pradosh Vrat Kitne Rakhne Chahiye)

जब भी हम कोई व्रत शुरू करते हैं तो मन में ये सवाल जरूर आता है कि आखिरी हमें ये व्रत कितने दिन रखना है। लेकिन अगर प्रदोष व्रत की बात करें तो इसमें संख्या का कोई महत्व नहीं है। आप चाहें जितने प्रदोष व्रत रख सकते हैं। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि जब भी आप प्रदोष व्रत बंद कर रहे हैं तो फिर उद्यापन जरूर करें। उद्यापन के बाद आप फिर से इस व्रत को शुरू कर सकते हैं। (Pradosh Vrat 2024 List in Hindi)

प्रदोष व्रत कब से शुरू करना चाहिए (Pradosh Vrat Kab Se Shuru Karna Chahiye)

पंडित सुजीत जी महाराज अनुसार आप प्रदोष व्रत कभी भी शुरू कर सकते हैं। चाहे कृष्ण पक्ष से चाहे शुक्ल पक्ष से। ये तो भक्त की इच्छा पर निर्भर करता है कि उसे ये व्रत कब से शुरू करना है।

प्रदोष व्रत की विधि (Pradosh Vrat Vidhi)

पंडित सुजीत जी महाराज अनुसार प्रदोष व्रत में ब्रम्ह मुहूर्त में स्नान करके पूजा पे बैठना चाहिए। पूजन स्थल को साफ करें। रंगोली बनाएं। उत्तर पूर्व दिशा की तरफ मुख करके या जिधर आपके घर का वास्तु अनुरूप मंदिर है उसकी तरफ मुख करके भगवान शिव की पूजा करें। ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करें और साथ में दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। प्रदोष को रोग मुक्ति के लिए किसी शिव मंदिर में कुश और गंगा जल से भगवान शिव का रुद्राभिषेक करें इससे रोगों से मुक्ति मिलेगी। पूरा दिन फलाहार का व्रत रखें और सायंकाल मंदिर अवश्य जाएं। इस दिन अन्न और वस्त्र का दान करें। गरीबों में अन्न बाटें।अस्पतालों में गरीब मरीजों को फ़ल वितरण करें। इस दिन एक बेल का वृक्ष लगाने से कई जन्मों के पापों का नाश होकर अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। प्रदोष को शिवपुराण का पाठ करना शुभ फलदायक है।

प्रदोष व्रत पूजा मुहूर्त (Pradosh Vrat Puja Muhurat)

प्रदोष व्रत वाले दिन प्रदोष काल की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। बता दें प्रदोष काल सूर्य अस्त होने से 45 मिनट पहले का समय और सूर्य अस्त होने के 45 मिनट बाद का समय होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान भगवान शिव की पूजा करने से उनकी असीम कृपा प्राप्त होती है।

प्रदोष व्रत के उपाय (Pradosh Vrat Upay In Hindi)

1. प्रदोष को योग्य व यशस्वी सन्तान की प्राप्ति के लिए रुद्राभिषेक कराएं। दुग्ध या शहद से अभिषेक कराएं।

2. संतान गोपाल का पाठ करें।

3. रोग से परेशान लोग महामृत्युंजय मंत्र का जप करें

4. छात्र शिवमंदिर जाकर बेलपत्र और जलाभिषेक करें।

5. पवित्र नदी में स्नान कर भगवान शिव के सामने बैठकर श्री रामचरितमानस का पाठ करें।

6. किसी स्वयंभू शिवलिंग का दर्शन व जलाभिषेक करके अपने जीवन को धन्य करें।

7. प्रदोष व्रत के साथ साथ ॐ नमः शिवाय का निरन्तर मानसिक जप चलता रहे।

8. गोशाला में जाएं। गाय को पालक, गुड़, रोटी व फल खिलाकर अनन्त पुण्य की प्राप्ति करें। गाय माता का अनुपम आशीर्वाद आपको सफल करेगा।

प्रदोष व्रत उद्यापन कैसे करें (Pradosh Vrat Ka Udyapan Kaise Karen)

इस बात का ध्यान रखें कि प्रदोष व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर करना है। उद्यापन से एक दिन पहले भगवान गणेश की विधिवत पूजा करें। फिर अगले यानी प्रदोष व्रत वाले दिन सुबह उठकर स्नान करें और साफ़ कपड़े पहनकर पूजा की तैयारी शुरू करें। इसके लिए गोबर से मंडप बनाएं और उसे रंगों और वस्त्रों से अच्छे से सजा लें। इसके बाद हवन पूजन करें और इस दौरान ऊँ उमा और शिवाय नम: मंत्र का 108 बार जाप करें। हवन में खीर की आहुति दें। अंत में शिव की आरती करें। इसके बाद ब्राह्मणों को श्रृद्धा से भोजन कराएं और यथाशक्ति से दान दें।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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