Raksha Bandhan 2023 Katha: रक्षा बंधन पर्व की पौराणिक कथा से जानें इस पर्व का महत्व और इतिहास
Raksha Bandhan 2023 Vrat Katha in Hindi: रक्षा बंधन पर्व से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार राखी पर्व भगवान कृष्णु और द्रौपदी से जुड़ा है। वहीं दूसरी कथा अनुसार पहली बार माता लक्ष्मी ने बलि को राखी बांधी थी। वहीं एक अन्य कहानी के अनुसार राखी पर्व इंद्र की पत्नी ने शुरू किया था।

Raksha Bandhan 2023 Vrat Katha in Hindi
Raksha Bandhan 2023 Vrat Katha in Hindi: रक्षा बंधन भारत का प्रमुख त्योहार है जो कुछ स्थानों पर रक्षासूत्र या राखी पूर्णिमा (Rakhi Purnima 2023) के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन काल से ही ये पर्व भाई-बहन के प्रेम भरे रिश्ते के प्रतीक के रुप में मनाया जाता है। हमारे यहां सभी पर्व किसी न किसी कथा या किवदन्ती से जुडे हुए है। इसी तरह से रक्षा बंधन मनाने को लेकर भी कई कहानियां प्रचलित हैं। यहां जानिए रक्षा बंधन की कथा।
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Raksha Bandhan Katha: राजा बलि और माता लक्ष्मी से जुड़ी
पुराणों के अनुसार रक्षा बंधन पर्व लक्ष्मी जी और राजा बली से जुडा हुआ है। एक बार की बात है, दानवों के राजा बलि ने सौ यज्ञ पूरे करने के बाद स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा जताई जिससे देव इन्द्र का सिहांसन डोलने लगा। घबरा कर इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और उनसे प्रार्थना की तब भगवान विष्णु ब्राह्माण वेश धर कर, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच गयें और उन्होंने बलि से उसकी तीन पग भूमि मांग ली। राजा बलि ने अपने वचन पर अडिग रहते हुए, श्री विष्णु को तीन पग भूमि दान में दे दी।
वामन रुप में भगवान विष्णु ने एक पग में स्वर्ग ओर दूसरे पग में पृ्थ्वी को नाप लिया। जैसे ही भगवान तीसरा पग रखने को थे राजा बलि ने अपना सिर ही भगवान के आगे कर दिया और कहां तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। भगवान विष्णु ने ठीक वैसा ही किया। श्री विष्णु के पैर रखते ही राजा बलि परलोक पहुंच गये।
बलि के द्वारा वचन का पालन करने पर भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा बलि से कुछ मांगने का आग्रह किया। इसके बदले में बलि ने रात दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लिया। वचन का पालन करते हुए श्री विष्णु को राजा बलि का द्वारपाल बनना पडा। ये देखकर माता लक्ष्मी परेशान हो गईं क्योंकि वे भगवान विष्णु को अपने से दूर नहीं करना चाहती थीं। इस समस्या के समाधान के लिये लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बांध अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को मांग लिया। कहते हैं जिस दिन ये सब हुआ उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। इसलिए तभी से इस पूर्णिमा पर राखी पर्व मनाएं जाने की परंपरा शुरू हो गई।
Raksha Bandhan Katha: इंद्र की पत्नि से जुड़ी
एक बार देव और दानवों के बीच जंग छिड़ गई थी। युद्ध में देवता पर दानव हावी होने लगे थे। यह देखकर इन्द्र देव घबरा कर बृ्हस्पति देव के पास गये। जह इस बारे में इन्द्राणी को पता चला तो उन्होने एक रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से अभिमंत्रित करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। कहते हैं जिस दिन ये कार्य किया गया उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था। ऐसा माना जाता है कि तभी से इस पूर्णिमा पर राखी मनाएं जाने की परंपरा चली आ रही है।
Raksha Bandhan Vrat Katha: भगवान कृष्ण और द्रौपदी से जुड़ी
राखी का यह पर्व महाभारत काल से भी जुड़ा है। जब शिशुपाल का वध करते समय कृ्ष्ण भगवान की तर्जनी उंगली पर चोट लग गई थी तब उनकी उंगली से बहने हुए खून को रोकने के लिए द्रौपदी ने अपनी साडी की किनारी फाडकर श्री कृ्ष्ण की अंगूली पर बांध दी थी। कहते हैं तभी से राखी पर्व मनाने की प्रथा चली आ रही है।
Raksha Bandhan Katha: चितौड़ की रानी कर्णवती से जुड़ी
कहते हैं जब राजपूतों और मुगलों की लडाई चल रही थी उस समय चितौड़ की रानी कर्णवती ने अपने राज्य की रक्षा के लिये हुमायूं को राखी भेजी थी। हुमायूं ने रानी कर्णवती की राखी की लाज रखते हुए तुरंत अपनी सेनाएं वापस बुला ली। कहते हैं इस घटना की याद में भी रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है।
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