Ram Navami Katha In Hindi: राम नवमी क्यों मनाई जाती है, जानिए इसकी पौराणिक कथा

Ram Navami Kyu Manai Jati Hai: राम नवमी का त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। पंचांग अनुसार इस बार ये तिथि 17 अप्रैल को पड़ रही है। इस पावन अवसर पर जानिए भगवान राम के जन्म की कथा।

Ram Navami Kyu Manai Jati Hai

Ram Navami Kyu Manai Jati Hai

Ram Navami Kyu Manai Jati Hai (राम नवमी क्यों मनाई जाती है): हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष के नौवें दिन रामनवमी का त्योहार मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार भगवान श्री राम का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। इसलिए ही इस दिन महा नवमी के साथ-साथ राम नवमी का त्योहार भी मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन भगवान राम की विधि विधान पूजा की जाती है। इसके अलावा श्री राम की कथा भी जरूर सुनी जाती है। यहां देखें रामनवमी की कथा।

राम नवमी की कथा (Ram Navami Kyu Manai Jati Hai)

पौराणिक कथाओं अनुसार महाराज दशरथ को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही थी। तब उन्होंने अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ की मदद मांगी। तब महर्षि जी के कहने पर उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ से पहले महाराज दशरथ ने श्यामकर्ण घोड़े को चतुरंगिणी सेना के साथ छोड़ने का आदेश जारी किया। महाराज दशरथ ने इस यज्ञ के लिए सभी प्रतापी मुनियों को आमंत्रित किया। जिस दिन इस महान यज्ञ का शुभारंभ होना था उस दिन गुरु वशिष्ठ के साथ महाराज दशरथ के प्रिय मित्र अंग प्रदेश के अधिपति लोभपाद के दामाद ऋंग ऋषि और अन्य आगंतुक भी यज्ञ मंडप पर पहुंचे थे। सभी के समक्ष युद्ध का शुभारंभ हुआ।
यज्ञ की समाप्ति पर महाराज दशरथ ने सभी ऋषि, मुनियों और पंडितों को धन-धान्य का दान कर प्रसन्न मन से अच्छे से विदा किया और वे यज्ञ से मिले प्रसाद को लेकर महल लौट आए। इसके बाद उन्होंने यह प्रसाद अपनी तीन रानियों के बीच बांट दिया। यज्ञ में मिले प्रसाद के सेवन से तीनों रानियों ने गर्भ धारण किया। सबसे पहले माता कौशल्या को पुत्र की प्राप्ति हुई। रानी कौशल्या ने जिस बालक को जन्म दिया उसके मुख पर तेज था और वह नील वर्ण था। जो भी उस बालक को देखता मंत्रमुग्ध रह जाता। इस बालक का जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। ये बालक कोई और नहीं बल्कि प्रभु श्री राम थे। भगवान राम के जन्म के समय पुनर्वसु नक्षत्र के अंतर्गत शनि, रवि, शुक्र और बृहस्पति ग्रह अपने उच्च स्थान पर मौजूद थे और साथ ही कर्क लग्न का भी उदय हो रहा था।
माता कौशल्या के बाद अन्य दो रानियां यानी माता कैकयी और माता सुमित्रा को भी शुभ नक्षत्रों में पुत्रों की प्राप्ति हुई। माता सुमित्रा को दो पुत्र प्राप्त हुए। इन बालकों के जन्म के बाद पूरे राज्य में उत्साह का माहौल हो गया। गंदर्भों के गीत के साथ बालकों का स्वागत किया गया। देवताओं ने भी प्रसन्न होकर इन बालकों के ऊपर आकाश से पुष्प वर्षा की। इन बालकों का नाम महर्षि वशिष्ठ ने रामचंद्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखा। इन चारों बालकों में बेहद प्रेम था। सभी अपने बड़े भाई राम का बहुत सम्मान करते थे और बहुत प्रेम भी करते थे। साथ ही उनके आदेशों का पालन करते थे। भगवान राम बाल्यकाल से ही बेहद प्रतिभाशाली थे। उन्होंने कम उम्र में ही सारा ज्ञान हासिल कर लिया था। वे बस दिन-रात गुरुओं और माता-पिता की सेवा में जुटे रहते थे।
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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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