Rama Ekadashi Vrat Katha: भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी रमा एकादशी की कथा, जानिए इस व्रत को रखने से क्या होता है

Rama Ekadashi Vrat Katha: धार्मिक मान्यताओं अनुसार रमा एकादशी की व्रत कथा पढ़ने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मरने के बाद बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

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Rama Ekadashi Vrat Katha

Rama Ekadashi Vrat Katha (रमा एकादशी व्रत कथा): कार्तिक महीने में पड़ने वाली पहली एकादशी को रमा एकादशी या रंभा एकादशी के नाम से जाना जाता है। कहते हैं इस दिन व्रत रखने से मनुष्य को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं ये व्रत मनुष्य को उनके सभी पापों से मुक्ति भी दिलाता है। इस साल रमा एकादशी का व्रत 28 अक्टूबर को रखा जाएगा। यहां जानिए रमा एकादशी की व्रत कथा।

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रमा एकादशी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

रमा एकादशी व्रत कथा – भावुक होते हुए अर्जुन ने कहा- "हे माधव! अब आप मुझे कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाइए। इस एकादशी का व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है ? कृपा करके यह सब विधानपूर्वक कहिए।" भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- "हे अर्जुन! कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा है। इसका व्रत करने से सभी पापों से मुक्क्ति मिलती हैं। इसकी कथा इस प्रकार से है, - आदि काल में मुचुकुंद नाम के एक राजा थे। देवराज इंद्र, वरुण, कुबेर, विभीषण आदि उनके मित्र थें। वह बड़े ही सत्यवादी थे और भगवान के परम भक्त थे। राजा एकादशी का व्रत बड़े ही नियम से करते थे और उनके राज्य में सभी इसका विधिपूर्वक पालन किया करते थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम चंद्रभागा था, जिसका विवाह राजा चंद्रसेन के पुत्र सोभन से हुआ था।

एक बार कार्तिक महीने में सोभन अपने ससुराल आया हुआ था। उसी समय रमा एकादशी का व्रत भी आ गया। मुचुकुंद के राज्य में सभी प्रजा एकादशी व्रत रखती और उस दिन कोई भोजन नहीं करता था। चंद्रभागा शोभन को देखकर चिंता में पड़ गई क्योंकि उसका पति दुर्बल था और बिना भोजन के नहीं रह सकता था। चंद्रभागा को जिस बात का डर था वही हुआ। राजा ने आदेश जारी किया कि इस समय उनका दामाद राज्य में पधारा हुआ है, अतः सारी प्रजा एकादशी का व्रत करेगी। सोभन अपनी पत्नी के पास गया और बोला - 'हे प्रिय! तुम मुझे कुछ उपाय बतलाओ, क्योंकि मैं उपवास नहीं कर सकता, यदि मैं उपवास करूंगा तो अवश्य ही मर जाऊंगा।'

पति की बात सुन चंद्रभागा ने कहा - 'हे स्वामी! मेरे पिता के राज्य में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं कर सकता। यहां तक कि पशु-पक्षी तक अन्न और जल ग्रहण नहीं करते, फिर भला मनुष्य कैसे भोजन कर सकते हैं ? यदि आप उपवास नहीं कर सकते तो किसी दूसरे स्थान पर चले जाइए, क्योंकि यदि आप यहां रहेंगे तो आपको व्रत करना ही पड़ेगा।' पत्नी की बात सुन सोभन ने कहा - 'हे प्रिय! तुम्हारी राय उचित है, परंतु मैं व्रत से डरकर किसी दूसरे स्थान पर नहीं जाऊंगा, अब मैं व्रत अवश्य ही करूंगा, परिणाम चाहे कुछ भी क्यों न हो। सोभन ने भी एकादशी का व्रत किया और भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल होने लगा। सूर्यास्त हो गया और जागरण के लिए रात्रि भी आ गई। दूसरे दिन सूर्योदय होने से पहले ही भूख-प्यास के कारण सोभन के प्राण चले गए। राजा ने सोभन के मृत शरीर को जल-प्रवाह करा दिया और अपनी पुत्री को आज्ञा दी कि वह सती न हो और भगवान विष्णु की कृपा पर भरोसा रखे।

चंद्रभागा अपने पिता की आज्ञानुसार सती नहीं हुई। वह अपने पिता के घर रहकर एकादशी के व्रत करने लगी। रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से युक्त तथा शत्रुओं से रहित एक सुंदर देवपुर प्राप्त हुआ। उसे वहां का राजा बना दिया गया। उसके महल में रत्न तथा स्वर्ण के खंभे लगे हुए थे। राजा सोभन स्वर्ण तथा मणियों के सिंहासन पर सुंदर वस्त्र तथा आभूषण धारण किए बैठता था। उन्हीं दिनों मुचुकुंद नगर में रहने वाला सोमशर्मा नाम के एक ब्राह्मण तीर्थयात्रा के लिए निकला हुए थे। घूमते-घूमते वह सोभन के राज्य में जा पहुंचा औए उसको देखा। ब्राह्मण उसको राजा का जमाई जानकर उसके निकट गए। राजा सोभन ब्राह्मण को देख आसन से उठ खड़ा हुआ और अपने परिजनों का हाल पूछने लगा। सोभन की बात सुन सोमशर्मा ने कहा - 'हे राजन! हमारे राजा कुशल से हैं तथा आपकी पत्नी भी कुशल है। अब आप अपना वृत्तांत बतलाइए। आपने तो रमा एकादशी के दिन अन्न-जल ग्रहण न करने के कारण प्राण त्याग दिए थे। मुझे बड़ा विस्मय हो रहा है कि ऐसा विचित्र और सुंदर नगर जिसको न तो मैंने कभी सुना और न कभी देखा था, आपको किस प्रकार प्राप्त हुआ ?'

इस पर सोभन ने कहा - 'हे देव! यह सब कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी के व्रत का फल है। इसी से मुझे यह अनुपम नगर प्राप्त हुआ है, किंतु यह अस्थिर है।' सोभन की बात सुन ब्राह्मण बोला - 'हे राजन! यह अस्थिर क्यों है और स्थिर किस प्रकार हो सकता है, सों आप मुझे समझाइए। यदि इसे स्थिर करने के लिए मैं कुछ कर सका तो वह उपाय मैं अवश्य ही करूंगा।' राजा सोभन ने कहा - 'हे ब्राह्मण देव! मैंने वह व्रत विवश होकर तथा श्रद्धारहित किया था। उसके प्रभाव से मुझे यह अस्थिर नगर प्राप्त हुआ, परंतु यदि आप इस वृत्तांत को मेरी पत्नी से कहेंगे तो वह इसको स्थिर बना सकती हैं।' राजा सोभन की बात सुन ब्राह्मण अपने नगर को लौट आए और चंद्रभागा से सारा वृत्तांत कह सुनाया। इस पर चंद्रभागा बोली - 'हे ब्राह्मण देव! आप क्या वह सब दृश्य प्रत्यक्ष देखकर आए हैं या अपना स्वप्न कह रहे हैं ?' चंद्रभागा की बात सुन ब्राह्मण बोले - 'हे राजकन्या! मैंने तेरे पति सोभन तथा उसके नगर को प्रत्यक्ष देखा है, किंतु वह नगर अस्थिर है। तू कोई ऐसा उपाय कर जिससे कि वह स्थिर हो जाए।'

ब्राह्मण की बात सुन चंद्रभागा बोली - 'हे ब्राह्मण देव! आप मुझे उस नगर में ले चलिए, मैं अपने पति को देखना चाहती हूं। मैं अपने व्रत के प्रभाव से उस नगर को स्थिर बना दूंगी।' चंद्रभागा के वचनों को सुनकर वह ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत के पास वामदेव के आश्रम में ले गए। वामदेव ने उसकी कथा को सुनकर चंद्रभागा का मंत्रों से अभिषेक किया। चंद्रभागा मंत्रों तथा व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण करके पति के पास चली गई। सोभन ने अपनी पत्नी को देखकर उसे प्रसन्नतापूर्वक आसन पर अपने पास बैठा लिया। चंद्रभागा ने कहा - 'हे स्वामी! अब आप मेरे पुण्य को सुनिए, जब मैं अपने पिता के घर में आठ वर्ष की थी, तब ही से मैं विधि पूर्वक एकादशी का व्रत कर रही हूं। उन्हीं व्रतों के प्रभाव से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा और सभी कर्मों से परिपूर्ण होकर प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा।' चंद्रभागा दिव्य स्वरूप धारण करके अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहने लगी। हे अर्जुन! यह मैंने रमा एकादशी की महिमा तुमसे कही है। जो मनुष्य रमा एकादशी के व्रत को करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य रमा एकादशी की कथा को सुनते हैं, वह अंत समय में वैकुण्ठ को जाते हैं।"

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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