Ravi Pradosh Vrat Puja Vidhi: रवि प्रदोष व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व यहां जानें
Ravi Pradosh Vrat Puja Vidhi, Vrat Katha: प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है। 10 दिसंबर को रवि प्रदोष व्रत रखा जाएगा। जानिए इस प्रदोष व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा।
Ravi Pradosh Vrat Puja Vidhi
रवि प्रदोष व्रत की विधि (Ravi Pradosh Vrat Vidhi)
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- प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को व्रत वाले दिन प्रात: सूर्य उदय से पहले उठना चाहिए।
- नित्यकर्मों से निवृ्त होकर भगवान शिव का ध्यान करें।
- इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है।
- फिर पूरे दिन उपावस रखने के बाद शाम में सूर्यास्त से एक घंटा पहले फिर से स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करें।
- पूजन स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और एक मंडप तैयार करें।
- अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए एक सुंदर रंगोली बनाएं।
- फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं और भगवान शंकर का पूजन शुरू करें।
- पूजन में भगवान शिव के मंत्रों का जाप जरूर करें साथ ही प्रदोष व्रत की कथा सुनें।
- अंत में भगवान शिव की आरती करके पूजा संपन्न करें।
प्रदोष व्रत की महिमा (Pradosh Vrat Mahatva)
हिंदू धार्मिक मान्यताओं अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों के दान देने के समान पुण्यफल प्राप्त होता है। इतना ही नहीं इस व्रत को रखने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं साथ ही मरने के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है। वहीं रवि प्रदोष करने से अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
रवि प्रदोष व्रत कथा (Ravi Pradosh Vrat Katha )
एक गांव में एक ब्राम्हणी रहती थी। पति की मृत्यु के बाद से वे अपना पालन-पोषण भिक्षा मांगकर करती थी। एक दिन जब ब्राम्हणी भिक्षा मांग कर लौट रही थी, तो उसे रास्ते में दो बच्चे दिखे, जिन्हें वह अपने घर ले आई। जब दोनों बालक बड़े हो गए तो वह उन्हें लेकर ऋषि शांडिल्य के आश्रम चली गई। आश्रम पहुंचने पर ब्राह्मणी को पता चलता है कि ये दोनों कोई आम बालक नहीं बल्कि विदर्भ राज के राजकुमार हैं, जिनका राज-पाट छीन लिया गया है। जिसके बाद ऋषि शांडिल्य ने उन्हें उनके राज -पाट को वापस पाने के लिए प्रदोष व्रत करने को कहते हैं।
ऋषि शांडिल्य के कहे अनुसार ब्राह्मणी और राजकुमारों ने विधि-विधान प्रदोष व्रत किया। फिर एक दिन बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई, दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। तब अंशुमती के पिता ने दोनों की शादी कर दी। फिर दोनों राजकुमार ने अंशुमती के पिता की मदद से गंदर्भ पर हमला किया और विजयी हुए। इस तरह से दोनों राजकुमारों को अपना सिंहासन वापस मिल गया और उस गरीब ब्राम्हणी को भी एक खास स्थान दिया गया। राजकुमारों को राज-पाट प्रदोष व्रत के कारण वापस मिला।
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