Ravi Pradosh Vrat Katha: रवि प्रदोष व्रत कथा पढ़ने से भगवान भोलेनाथ की बरसने लगेगी कृपा

Ravivar Pradosh Vrat Katha: जब प्रदोष व्रत रविवार को पड़ता है तो उसे रविवार या रवि प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति सुखपूर्वक और निरोगी होकर अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है। जानिए रवि प्रदोष व्रत की कथा।

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Ravi Pradosh Vrat Katha: रवि प्रदोष व्रत कथा

Ravi Pradosh Vrat Katha: हिंदू पंचांग अनुसार प्रदोष व्रत हर महीने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों त्रयोदशी पर पड़ता है। दिन के अनुसार प्रदोष व्रत का नाम और उसका महत्व अलग-अलग होता है। जब प्रदोष व्रत रविवार में पड़ता है तो उसे रवि प्रदोष व्रत करते हैं। रविवार प्रदोष व्रत रखने से भगवान भोलेनाथ के साथ-साथ सूर्य देव की भी कृपा प्राप्त होती है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ फल दे रहा हो तो उसे रविवार प्रदोष व्रत वाले दिन सूर्य यन्त्र लॉकेट धारण करना चाहिए। अब जानिए रविवार प्रदोष व्रत की कथा (Ravivar Pradosh Vrat Katha)।

रवि प्रदोष व्रत कथा (Ravi Pradosh Vrat Katha In Hindi)

एक गांव में गरीब ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी प्रदोष व्रत रखती थी। उनका एक पुत्र था। एक दिन गरीब ब्राह्मण का पुत्र गंगा स्नान करने के लिए गया तो दुर्भाग्यवश उसे मार्ग में चोरों ने घेर लिया और वे कहने लगे कि अगर तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बता दोगे तो हम तुम्हें मारेंगे नहीं।

बालक दीनभाव से कहने लगा कि हम अत्यंत दु:खी दीन हैं। हमारे पास धन कहां है? तब चोरों ने कहा कि तुने इस पोटली में क्या रखा है? बालक ने कहा कि मेरी मां ने मेरे लिए रोटियां दी हैं। यह सुनकर एक चोर ने अपने सभी चोर साथियों से कहा कि यह बहुत ही दीन-दु:खी मनुष्य है अत: हम किसी और को लूटेंगे। इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया।

बालक वहां से चलते हुए एक नगर में जा पहुंचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह बालक उसी पेड़ की नीचे जाकर सो गया। उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के पेड़ के पास पहुंचे और उन्होंने बालक को चोर समझकर उसे बंदी बना लिया और वो लोग उसे राजा के पास ले गए। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया।

जब वह लड़का घर नहीं लौटा, तो उसके परिवार वालों को बड़ी चिंता हुई। अगले दिन प्रदोष व्रत था। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और उसने भगवान शंकर से अपने पुत्र की कुशलता की प्रार्थना की। भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली।

उसी रात भगवान शंकर उस राजा के सपने में आए और उन्होंने राजा को आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा तुम्हारा सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जाएगा। प्रात:काल राजा ने उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया। बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई।

सारा वृत्तांत सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को दरबार में बुलाने का आदेश दिया। उसके माता-पिता बहुत ही डरे हुए थे। राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा कि आप भयभीत न हो। मुझे पता है कि आपका बालक निर्दोष है। राजा ने ब्राह्मण को 5 गांव दान में दिए जिससे वो सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें। अत: इस तरह ब्राह्मण आनन्द से रहने लगा। भगवान शिव की कृपा से उस ब्राह्मण की गरीबी दूर हुई।

अत: जो भी मनुष्य रवि प्रदोष व्रत करता है, वह सुखपूर्वक और निरोगी होकर अपना जीवन व्यतीत करता है।

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