कूर्म प्रभाकर के इस प्रयोग से 100 किमी दूर बैठे रोगी का भी हो सकता है उपचार, बस मंत्र और हाथाें का उपयोग हो सही

प्राचीन विधि है कूर्म प्रभाकर। आधुनिक रेकी की तरह करती है ये पद्धति काम। हाथाें की मुद्रा और मंत्र के प्रयोग से दूर होते हैं विविध रोग। स्वयं के साथ दूसरों का भी किया जा सकता है उपचार। शरीर में जल के अनुपात से प्रयोग होती है उपचार की ये विधि।

Kurm Prabhakar

कूर्म प्रभाकर का प्रयोग

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • आधुनिक रेकी की तरह काम करता है कूर्म प्रभाकर
  • जल के अनुपात को शरीर में किया जाता है सही
  • मंत्रों से लेकर हाथाें की मुद्रा होती हैं उपचार में प्रयोग

कूर्म प्रभाकर प्राचीनतम रोग नाशक प्रयोग है। वर्तमान रेकी के समान सर्वोत्तम रोगों के शमन का ये उपाय है। धर्म वैज्ञानिक डॉ जे जोशी ने कूर्म प्रभाकर विधि के बारे में अपनी पुस्तक में विस्तार से इसके बारे में वर्णन किया है। पुस्तक में लिखा है कि जैसे शरीर में मानव के वजन का 70 प्रतिशत जल विद्यमान रहता है और कूर्म अथवा कच्छप जल में ही निवास करता है। कूर्म की आयु 200 वर्ष से भी अधिक मानी गयी है। यदि शरीर को स्वस्थ रखना है तब उसके अंदर प्रवाहित होने वाले समस्त जल का शुद्ध रहना आवश्यक है। शरीर की विकृति को दूर शीघ्र ही ओजवान बनाने वाला यह सरल प्रयोग है।

आइये आपको बताते हैं कि शास्त्रों में वर्णित कूर्म प्रभाकर के प्रयोग से स्वयं को या 100 किमी दूर बैठे रोगी को भी उपचार कैसे दे सकते हैं।

कूर्म प्रभाकर प्रयोग के मंत्र

ऊँ हृदयाय नमः —- हृदय से स्पर्श

ऊँ भू शिरसे स्वाहा− मस्तक स्पर्श

ऊँ भुवः शिखायैवषट्− शिखा स्पर्श

ऊँ स्व कवचाय हुम−− दोनों हाथाें से कंधाें का स्पर्श

ऊँ भूर्भुवः स्वः नेत्राभयां वोषट्− नेत्रों का स्पर्

ऊँ भू र्भुवः अस्त्राय फट्−−−− बायें हाथ की हथेली पर दायां हाथ घुमाकर तर्जनी से ताली बजाएं।

विधि

मंत्रों के प्रयोग के बाद हाथाें से कूर्म का निर्माण करें। सीधे बायें हाथ की मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठिका को मोड़कर उल्टे दाहिने हाथ की मध्यमा, अनामिका को बायें हाथ की मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठिका को नीचे रखकर तर्जनी पर दाहिनी कनिष्ठिका और बायें अंगूठे पर दाहिन तर्जनी रखें। यह दीर्घजीवी कूर्म रचना है। अब आप अंतरिक्ष की ओर देखें, अपनी मुद्रा को अंतरिक्ष की तरफ धीरे− धीरे ले जाकर सूर्य को मानसिक प्रणाम करें।

इस मुद्रा को दस दिशाओं में घुमाकर दस बार पानी में डुबोकर या स्नान कराकर इष्ट मंत्र की 24 बार आराधना करें। प्रत्येक दिशा में प्रणाम करने का क्रम इस प्रकार है−

पूर्व, आग्नये, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, उत्तर इशान, पूर्व के मध्य में, पश्चिम के मध्य में। इस प्रकार पूर्णता प्राप्त कर तर्जनी मुद्रा का प्रयोग जिस दिशा में भी आप करेंगे। इष्ट मंत्र का जाप करेंगे, उसका उपचार शीघ्र होगा।

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कूर्म प्रभाकर प्रयोग कैसे करता है कार्य

हाथाें की चार उंगलियों की 12 गर्त एवं अंगुष्ठ की तीन गर्त हथेली पर अंकित 12 खंड और अंगुष्ठ मध्य भाग की तीन गर्तों का संरक्षण करता है। कूर्म प्रभाकर की रचना एक चैनल की तरह है, जहां से सारे प्रोग्राम टेलीकास्ट हो सकते हैं। जैसा हम चाहते हैं। कूर्म प्रभाकर में मंत्र प्रयोग के समय चंद्र स्थल का घर्षण सात बार करने से मानसिक रोग, मंगल स्थान के घर्षण से रक्त विकार, हृदय रोग, गुप्त स्थान से संवेदी अंग, नाक, कान, आंख, शुद्ध स्थान, त्वचा एवं उद्दीपन रोग, बुध स्थान से पित्ताशय अग्नाशय, मूत्राशय रोग, सूर्य स्थान से आंतरिक हार्मोन एन्जाइम रोग आदि समाप्त होते हैं एवं मानव में विलक्षण उर्जा का समावेश होता है।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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