Ravivar Vrat Katha: खर मास के रविवार को व्रत रखने से होती है हर मनोकामना पूरी, ये है पूजन विधि और व्रत कथा
मलमास के प्रत्येक रविवार को व्रत रखकर एक समय खिचड़ी का सेवन करने से होती है मनोकामनाएं पूर्ण। अधिक गरिष्ठ भाेजन का सेवन रविवार के व्रत में सेवन करना है निषेध। प्रातः काल स्नादि कर लाल वस्त्र धारण कर करें सूर्य की पूजा। दिन में ही एक समय किया जाता है इस व्रत में भाेजन।

सूर्य देव को समर्पित होता है रविवार का व्रत। फोटो फेसबुक के सौजन्य से।
- मल मास के रविवार को करें व्रत
- एक समय भाेजन से पूर्ण करें व्रत
- दिन के समय ही किया जाता भाेजन
पूजन विधि- विधान
प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त हो स्वंच्छ लाल वस्त्र धारण करें। शांत चित्त् होकर परमात्मा का स्मरण करें। भाेजन एक समय से अधिक नहीं करना चाहिए। भाेजन तथा फलाहार सूर्य के प्रकार रहते ही कर लेना उचित है। यदि निराहार रहने पर सूर्य छिप जाए तो दूसरे दिन सूर्य उदय हो जाने पर अर्घ्य देने के बाद ही भाेजन करें। व्रत के अंत में व्रत कथा सुननी चाहिए। व्रत के दिन नमकीन तेलयुक्त भाेजन कदापि ग्रहण न करें। खिचड़ी का सेवन सर्वोत्तम रहता है।
रविवार के व्रत से लाभ
रविवार का व्रत करने से मान सम्मान बढ़ता है और शत्रुओं का क्षय होता है। आंख की पीड़ा के अतिरिक्त अन्य सब पीड़ाएं दूर होती हैं।
रविवार व्रत कथा
एक बुढ़िया थी। उसका नियम था प्रति रविवार को सवेरे ही स्नान आदि कर घर को गोबर से लीपकर फिर भाेजन तैयार कर भगवान को भाेग लगाकर स्वयं भाेजन करती थी। श्री हरि की कृपा से उसका घर अनेक प्रकार के धन धान्य से पूर्ण था। घर में किसी प्रकार का विघ्न या दुख नहीं था। सब प्रकार से घर में आनंद रहता था। इस तरह कुछ दिन बीत जाने रप उसकी एक पड़ोसन जिसकी गाय का गोबर वह बुढ़िया लाया करती थी विचार करने लगी कि यह वृद्धा सर्वदा मेरी गाय का गोबर ले जाती है। इसलिए अपनी गाय को घर के भीतर बांधने लगी।
बुढ़िया को गोबर न मिलने से रविवार के दिन वो घर को गोबर से लीप नहीं सकी। इसलिए उसने न तो भाेजन बनाया न भगवान को भाेग लगाया। स्वयं भी भाेजन नहीं किया। रात्रि हो होने पर वो भूखी ही सो गयी। रात्रि में भगवान ने उसे स्वप्न दिया और भाेजन न बनाने तथा भाेग न लगाने का कारण पूछा। वृद्धा ने गोबर न मिलने का कारण सुनाया। तब भगवान ने कहा कि हे माता, हम तुमको एक गाय देते हैं जो सभी इच्छाएं पूर्ण करती है क्योंकि तुम हमेशा रविवार को गाय के गोबर से घर लीपकर भाेजन बनाकर मेरा भाेग लगाकर खुद भाेजन करती हो। इससे मैं बहुत प्रसन्न हूं। मैं निर्धन को धन और बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर दुखाें को दूर करता हूं तथा अंत समय में मोक्ष देता हूं। स्वप्न में ये वरदान देकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गए।
प्रतः जब वृद्धा की आंख खुली तो वह देखती है कि आंगन में एक अति सुंदर गाय और बछड़ा बंधे हुए हैं। वह गाय और बछड़े को देखकर अत्यंत प्रसन्न् होती है और घर के बाहर बांध देती है। वहीं खाने को चारा डाल देती है। जब उसकी पड़ोसन ने बुढ़िया के घर के बाहर एक अति सुंदर गाय और बछड़ा बंधा देखा तो द्वेष के कारण उसका हृदय जल उठा। उसने देखा कि गाय ने सोन का गोबर किया है तो वह उस गाय का गोबर ले गयी और अपनी गाय का गोबर उसकी जगह पर रख दिया। वह प्रतिदिन ये करती रही और सीधी साधी बुढ़िया को इसकी खबर तक नहीं होने दी। तब सर्वव्यापी भ्गवान ने सोचा कि चालाक पड़ोसन के कर्म से बुढ़िया ठगी जा रही है तो भगवान ने संध्या के समय अपनी माया से बड़ीे जोर की आंधी चला दी।
बुढ़िया ने आंधी के भय से अपनी गाय को घर के भीतर बांध लिया। प्रातःकाल जब वृद्धा ने देखा कि गाय ने सोने का गोबर दिया तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। वह प्रतिदिन गाय को घर के भीतर बांधने लगी। उधर पड़ोसन ने देखा कि बुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी है और उसका सोने का गोबर उठाने का दांव नहीं चलता तो वह जलन और द्वेष से जल उठी और कुछ उपाय न देख पड़ोस ने उस देश के राजा की सभा में जाकर कहा,“महाराज, मेरे पड़ोस में एक वृद्धा के पास एक गाय है। वह गाय नित्य सोने का गोबर देती है। आप उस सोने से प्रजा का पालन करिये। वह वृद्धा इतने सोने का क्या करेगी।”
राजा ने यह बात सुन अपने दूतों को वृद्धा के घर से गाय लाने की आज्ञा दी। वृद्धा प्रातः भगवान का भाेग लगा भाेजन ग्रहण करने ही जा रही थी कि राजा के कर्मचारी गाय खाेलकर ले गए। वृद्धा काफी व्यथित हुई किंतु कर्मचारियों के समक्ष कोई क्या करता। उस दिन वृद्धा गाय के वियोग में भाेजन न कर सकी। रात भर रो रोकर ईश्वर से गाय को पुनः पाने के लिए प्रार्थना करती रही। उधर राजा गाय को देखकर बहुत प्रसन्न् हुआ लेकिन सुबह जैसे ही वह उठा, सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा। राजा यह देख घबरा गया।
भगवान ने उसी रात्रि में राजा को स्वप्न में कहा कि “हे राजा, गाय वृत्रा को लौटाने में ही तेरा भला है। उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैंने उसे गाय दी थी।”
प्रातः होते ही राजा ने वृद्धा को बुलाकर बहुत से धन के साथ सम्मान सहित गाय बछड़ा उसे लौटा दिया। उसकी पड़ोसन को बुलाकर उचित दंड दिया। इतना करने के बाद ही राजा के महल से गंदगी दूर हुई। उसी दिन से राजा ने नगरवासियों को आदेश दिया कि राज्य की समृद्धि तथा अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रविवार का व्रत रखा जाए। व्रत करने से नगर के लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। बीमारी तथा प्रकृति का प्रकोप उस नगर पर नहीं होता था।
डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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