Shri Ram and Laxman: पढ़ें आखिर क्या थी वो वजह, जो श्रीराम ने लक्ष्मण को दे दिया था मृत्युदंड
Shri Ram and Laxman: रामायण में वर्णित है राम द्वारा लक्ष्मण को दिया गया मृत्युदंड। ऋषि दुर्वासा के क्रोध से बचाने के लिए श्रीराम ने दिया था लक्ष्मण को इस तरह का दंड। यम देव को दिए वचन से बंधे थे श्रीराम। जानिए क्या है इस घटना की पौराणिक कथा।
जानिए लक्ष्मण के मृत्युदंड का कारण
मुख्य बातें
- रामायण में वर्णित है लक्ष्मण को मृत्युदंड का प्रसंग
- राम ने लक्ष्मण को ऋषि दुर्वासा के श्राप से बचाया था
- श्री राम ने यम देवता को दिए वचन का किया पालन
Shri Ram and Laxman: रामायण में वर्णित है कि श्रीराम ने न चाहते हुए भी प्राण से अधिक प्रिय अपने लघु भ्राता लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया था। आखिर क्यों भगवान राम ने लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया था। यह घटना उस समय की है जब श्रीराम लंका विजय के बाद अयोध्या लौट आए थे और अयोध्या के राजा बन गए थे। संबंधित खबरें
इस वजह से मिला लक्ष्मण को मृत्युदंड संबंधित खबरें
एक दिन यम देवता कोई महत्वपूर्ण चर्चा करने के लिए श्रीराम के पास आए थे। चर्चा प्रारंभ करने से पूर्व उन्होंने भगवान राम से कहा कि आप मुझे वचन दें कि जब मेरे और आपके बीच वार्तालाप होगी हमारे बीच कोई नहीं आएगा और जो आएगा, उसे आप मृत्युदंड देंगे। इसके बाद राम, लक्ष्मण को यह कहते हुए द्वारपाल नियुक्त कर देते हैं कि यमदेवता के साथ जब तक उनकी मंत्रणा समाप्त न हो जाए वे किसी को भीतर प्रवेश न करने दें। लक्ष्मण भाई की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो जाते हैं। लक्ष्मण को द्वारपाल बने कुछ ही समय गुजरता है कि वहां पर ऋषि दुर्वासा का आगमन होता है। जब दु्र्वासा ऋषि ने लक्ष्मण से अपने आगमन के बारे में राम को जानकारी देने के लिए कहा तो लक्ष्मण ने विनम्रता के साथ मना कर दिया। इस पर दुर्वासा क्रोधित हो गए और उन्होंने संपूर्ण अयोध्या को श्राप देने की बात कही। लक्ष्मण ने शीघ्र ही यह निश्चय किया कि उनको स्वयं का बलिदान देना होगा ताकि वो नगरवासियों को ऋषि के श्राप से बचा सकें। लक्ष्मण ने श्रीराम की आज्ञा का उल्लंघन कर भवन में गए और ऋषि दुर्वासा का संदेश श्रीराम को दिया।संबंधित खबरें
अब श्री राम दुुविधा में पड़ गए क्योंकि उन्हें अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्युदंड देना था। इस दुविधा की स्थिति में श्रीराम ने अपने गुरु वशिष्ठ का स्मरण किया और कोई रास्ता दिखाने को कहा। गुरुदेव ने कहा कि अपनी किसी प्रिय वस्तु का त्याग, उसकी मृत्यु के समान ही है। अतः तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दो। लेकिन जैसे ही लक्ष्मण ने यह सुना तो उन्होंने राम से कहा कि आप भूल कर भी मेरा त्याग नहीं करना, आप से दूर रहने से तो यह अच्छा है कि मैं आपके वचन का पालन करते हुए मृत्यु को गले लगा लूं। इसके बाद लक्ष्मण ने जल समाधि ले ली। संबंधित खबरें
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)संबंधित खबरें
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