Story of King Parikshit: पढ़ें कौन थे राजा परीक्षित, जिनकी वजह से हुआ था श्रीमद्भागवत कथा का उपदेश
Story of King Parikshit: अर्जुन और देवी सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु की संतान थे परीक्षित। महाभारत युद्ध में अश्वत्थामा द्वारा चलाए गए ब्रह्मास्त्र से गर्भस्थ शिशु की रक्षा स्वयं श्रीकृष्ण ने की थी। आखिर क्यों शुक देव जी ने राजा परीक्षित को सात दिन में श्रीमद्भागवत कथा सुनाई थी आइये आपको बताते हैं।
राजा परीक्षित और भागवत कथा
- अर्जुन पुत्र अभिमन्यु की संतान थे राजा परीक्षित
- ब्रह्मास्त्र से स्वयं श्रीकृष्ण ने की थी परीक्षित की रक्षा
- अश्वत्थामा ने चलाया था गर्भस्थ बालक पर ब्रह्मास्त्र
Story of King Parikshit: महाभारत काल में अभिमन्यु पत्नी महाराज विराट् की पुत्री उत्तरा गर्भवती थीं। उनके उदर में कौरव और पांडवों का एकमात्र वंशधर था। अश्वत्थामा ने उस गर्भस्थ बालक का विनाश करने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। भय विह्लल उत्तरा भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गयी। भगवान ने उसे अभयदान दिया और बालक की रक्षा के लिए वे सूक्ष्मरूप से उत्तरा के गर्भ में स्वयं पहुंच गए। गर्भस्थ शिशु ने देखा कि एक प्रचंड तेज चारों ओर से समुद्र की भांति उमड़ता हुआ उसे भस्म करने आ रहा है। इसी समय बालक ने अंगूठे के बराबर ज्योतिर्मय भगवान को अपने पास देखा।
भगवान अपने कमल नेत्रों से बालक को स्नेहपूर्वक देख रहे थे। उनके सुंदर श्याम वर्ण पर पीतांबर की अद्भुत शाेभा थी। मुकुट, कुंडल, अंगद, किंकिणी प्रभूति मणिमय आभरण उन्होंने धारण कर रखे थे। उनके चार भुजाएं थीं और उनमें शंख, चक्र, गदा, पद्म थे। अपनी गदा को उल्का के समान चारों ओर शीघ्रता से घुमाकर भगवान उस उमड़ते आते अस्त्र तेज को बराबर नष्ट करते जा रहे थे। बालक दस महीने तक भगवान को देखता रहा। जन्म का समय आने पर भगवान वहां से अदृश्य हो गए। बालक मृत सा उत्पन्न हुआ, क्याेंकि जन्म के समय उस पर ब्रह्मास्त्र का प्रभाव पड़ गया था। तुरंत श्रीकृष्ण चंद्र प्रसूति गृह में आये और उन्होंने उस शिशु को जीवित कर दिया। यही बालक परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
राजा परीक्षित को मिला था भयानक शाप
जब परीक्षित बड़े हुए, पांडवों ने इन्हें राज्य सौंप दिया और स्वयं हिमालय पर चले गये। प्रतापी एवं धर्मात्मा परीक्षित ने राज्य में पूरी सुव्यवस्था स्थापित की। एक दिन आखेट करते हुए परीक्षित वन में भटक गए। भूख और प्यास से व्याकुल वे एक ऋषि के आश्रम में पहुंचे। ऋषि ध्यानस्थ थे। राजा परीक्षित ने सोचा कि ये ऋषि मेरा अपमान कर रहा है तो पास में ही एक मरे पड़े सर्प को धनुष से उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और स्वयं अपने राज्य लौट गए। बालकों के साथ खेलते हुए उस ऋषि के पुत्र को जब यह समाचार मिला तो उसने राजा को सातवें दिन तक्षक सर्प द्वारा काटे जाने का शाप दे दिया।
इस तरह प्रकाट्य हुआ श्री मद्भागवत कथा का
जिस समय राजा ने ऋषि के साथ वो सर्प का कृत्य किया था उस समय वे भीमसेन द्वारा विजित मगधराज जरासंध का स्वर्ण मुकुट सिर पर धारण किये थे। उसमें कलयुग का वास हो गया था। इसलिए उनसे यह अपराध हुआ। घर पहुंचकर मुकुट उतारने पर परीक्षित को स्मरण आया कि मुझसे से आज बहुत बड़ा अपराध हो गया। इतने में ही शाप के बारे में उन्हें पता चला। निराश न होते हुए अपने पुत्र जनमेजय को राज्य देकर वे गंगातट पर जा बैठे। सात दिनों तक उन्होंने निर्जल व्रत का निश्चय किया। उसी समय वहां श्री शुक देव जी पहुंचे और सात दिनों में राजा को उन्होंने श्रीमद्भागवत कथा का उपदेश दिया।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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