Rishi Panchami 2023 Date And Time: ऋषि पंचमी कब है 2023, जानें स्त्रियों के लिए क्यों खास है ये पर्व
Rishi Panchami 2023 (ऋषि पंचमी कब है 2023): भाद्रपद शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है। ये त्योहार आमतौर पर हरतालिका तीज (Hartalika Teej 2023) के दो दिन बाद और गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2023) के एक दिन बाद मनाया जाता है। जानिए ऋषि पंचमी 2023 की डेट और महत्व।
Rishi Panchami 2023: जानें ऋषि पंचमी कब है 2023
Rishi Panchami 2023 (ऋषि पंचमी कब है 2023): प्रत्येक वर्ष गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2023) के अगले दिन और हरतालिका तीज (Hartalika Teej 2023) के ठीक दूसरे दिन ऋषि पंचमी का व्रत रखा जाता है। यह व्रत महिलाओं के लिए बेहद ख़ास माना गया है। ऐसी मान्यता है इस दिन व्रत रखने वाली महिलाओं को मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। साथ ही ये व्रत अनजाने में की गयी गलतियों से मुक्ति दिलाने के लिए भी उत्तम माना गया है। भारत में कई जगहों पर ऋषि पंचमी को भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत में सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है। इस साल ऋषि पंचमी का त्योहार 20 सितंबर को मनाया जाएगा। जानिए ऋषि पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व।
ऋषि पंचमी 2023 डेट और मुहूर्त (Rishi Panchami 2023 Date And Puja Time)
ऋषि पंचमी 2023 | 20 सितंबर 2023, बुधवार |
ऋषि पञ्चमी पूजा मुहूर्त | 11:01 AM से 01:28 PM |
अवधि | 02 घण्टे 27 मिनट |
पंचमी तिथि प्रारम्भ | 19 सितंबर 2023 को 01:43 PM बजे |
पंचमी तिथि समाप्त | 20 सितंबर 2023 को 02:16 PM बजे |
- इस दिन सुबह स्नानादि के बाद सात ऋषियों के साथ देवी अरुंधती की स्थापना करें।
- संभव हो तो इस दिन पूजा में हलके पीले रंग के वस्त्र पहनें।
- पूजा शुरू करने से पहले पूरे घर में गंगाजल छिड़क लें।
- फिर अगरबत्ती या धूप बत्ती जलाएं।
- फिर सप्त ऋषियों की तस्वीर के सामने जल से भरा हुआ कलश रख दें।
- इसके बाद सप्त ऋषियों को धूप-दीपक दिखाकर उन्हें पीले फल-फूल और मिठाई अर्पित करें।
- अंत में सप्त ऋषियों से अपनी किसी भी गलती की माफ़ी मांग लें।
- इस पूजा में कथा जरूर सुनें।
- इसके बाद आरती करें और सभी लोगों में प्रसाद बांट दें।
- पूजा के बाद अपने घर के बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श करके बिल्कुल भी न भूलें।
ऋषि पंचमी व्रत कथा (Rishi Panchami Ki Kahani)
प्राचीन समय में विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सर्वगुण संपन्न ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण की पत्नी का नाम सुशीला था जो बेहद ही पतिव्रता थी। ब्राह्मण दंपति का एक पुत्र और एक पुत्री थी। ब्राह्मण की बेटी का विवाह तो हुआ लेकिन कुछ ही समय में वो विधवा हो गयी। इस बात से दुखी ब्राह्मण दंपत्ति अपनी बेटी के साथ गंगा के तट पर चले गए और वहीं कुटिया बनाकर रहने लगे।
एक दिन जब ब्राह्मण की पुत्री सो रही थी तो अचानक से उसका शरीर कीड़ों से भर गया। बेटी की ऐसी हालत देखकर ब्राह्मण की पत्नी अपने पति के पास पहुंची और उनसे पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है? अपनी पुत्री की समस्या का समाधान खोजने के लिए उत्तंक जैसे ही समाधि में बैठे उन्हें पता चला कि पूर्व जन्म में भी यह कन्या उनकी पुत्री थी और उसने रजस्वला होते ही बर्तन छू लिए थे।
इसी कारण उसके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं। ऐसे में ब्राह्मण दंपत्ति ने यह निर्णय किया कि पुत्री से ऋषि पंचमी का व्रत कराया जाये जिससे उसे अगले जन्म में अटल सौभाग्यशाली होने का वरदान प्राप्त हो। अपने पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधि-विधान ऋषि पंचमी का व्रत किया। कुछ ही समय में इस व्रत के प्रभाव से उसके सारे दुख दूर हो गए और अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य का भी वरदान प्राप्त हुआ।
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