Sakat Chauth Vrat Katha: सकट चौथ व्रत कथा
Sakat Chauth (Sankashti Chaturthi) Vrat Katha In Hindi: सकट चौथ व्रत को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन यहां हम आपको जो व्रत कथा बताने जा रहे हैं उससे आप जानेंगे इस व्रत का क्या महत्व है। ये व्रत कैसे शुरू हुआ और माता पार्वती और भगवान शिव ने भी ये व्रत क्यों किया था। कहते हैं जो व्यक्ति सच्चे मन से सकट चौथ व्रत रखा इस पावन कथा को पढ़ता है उसके जीवन की सारी परेशानियां खत्म हो जाती है। साल 2023 में सकट चौथ 10 जनवरी को है।
सकट चौथ की कथा (Sakat Chauth Katha Or Ganesh Ji Ki Katha In Hindi)
एक बार महादेव जी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। जहां एक सुंदर स्थान पर पार्वतीजी ने महादेव के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा जताई। तब शिवजी ने कहा पार्वती हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा? पार्वती ने तत्काल वहां की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बना दिया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा बेटा! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहां हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है। अतः तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से कौन जीता, कौन हारा?
इस तरह से खेल आरंभ हुआ। इस खेल में तीनों बार पार्वतीजी ही जीतीं। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय करने को कहा तो उसने महादेवजी को विजयी बताया। ये सुनकर पार्वतीजी ने क्रुद्ध होकर उस बालक को एक पांव से लंगड़ा होने और वहां के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का शाप दे दिया।
बालक ने कहा: मां! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है। मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएं। तब मां को उस पर दया आ गई और वे बोलीं यहाँ नाग-कन्याएं गणेश-पूजन करने आएंगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे। ये कहते ही वे कैलाश पर्वत चली गईं।
जहां बालक को श्राप मिला था वहां एक वर्ष बाद श्रावण में नाग-कन्याएं गणेश पूजन के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। बालक ने 12 दिन तक श्री गणेशजी का व्रत किया।
तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ। अत: जो तुम्हें मांगना है वो मांगो। बालक बोला भगवन! मेरे पांव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुंच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएं। गणेशजी तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गए। बालक कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के चरणों में पहुंच गया। शिवजी ने उससे कहा कि यहां तक तुम कैसे आए हो।
तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी। उधर उसी दिन पार्वती शिवजी से भी विमुख हो गई थीं। माता पार्वती को मनाने के लिए भगवान शंकर ने भी बालक की तरह श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई।
इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुंची। वहां पहुंचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूं। शिवजी ने गणेश व्रत के बारे में पार्वती को बताया।
तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। इस व्रत के प्रभाव से 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से मिलने आ गए। उन्होंने भी मां के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया।