Sakat Chauth 2024 Date: सकट को तिलकुट चौथ क्यों कहते हैं, जानिए इसके पीछे का कारण

Sakat Chauth 2024 Date: माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को तिलकुट चौथ कहा जाता है। यह चतुर्थी सभी संकष्टी चतुर्थी में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। जानिए 2024 में कब है तिलकुट चतुर्थी। जानते हैं सकट चौथ को तिलकुट चौथ क्यों कहा जाता है।

Sakat Chauth 2024 Date

Sakat Chauth 2024 Date

Sakat Chauth 2024 Date: हिंदू धर्म में चतुर्थी की पूरी कहानी भगवान गणेश को समर्पित है। इसलिए हिंदू वर्ष के अनुसार हर साल 24 चतुर्थी होती हैं और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस प्रकार संकष्टी चतुर्थी वर्ष में 12 दिनों की होती है। शुक्ल पक्ष की शेष 12 चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। भगवान गणेश का आशीर्वाद पाने के लिए सभी चतुर्थी तिथियां विशेष हैं, लेकिन कुछ को विशेष माना जाता है। आइए जानते हैं सकट चौथ को तिलकुट चौथ क्यों कहा जाता है।

Sakat Chauth 2024 Date (सकट चौथ 2024)तिलकुट चतुर्थी को सभी संकष्टी चतुर्थी में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी की तिथि को तिलकुट चतुर्थी कहा जाता है। इसे सकट चौथ, बड़ी चतुर्थी, माघी चतुर्थी या लंबोदर संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। इसे वर्ष की बड़ी चतुर्थी कहा जाता है। केवल तिलकुट चतुर्थी का व्रत करने से सभी संकष्टी चतुर्थी व्रत के समान फल मिलेगा। इस साल सकट चौथ 29 जनवरी को रखा जाएगा।

सकट शुभ मुहूर्त 2024 (Sakat Chauth 2024 Shubh Muhurat)अमृत मुहूर्त (सर्वोत्तम) – प्रातः 07:11 से 08:32 तक

सुविधाजनक समय (सर्वोत्तम)- सुबह 9:43 से 11:14 बजे तक

शाम - 4:37 बजे से शाम 7:37 बजे तक

चंद्रोदय का समय - माघ महीने की सकट चतुर्थी के लिए चंद्रोदय का समय 29 जनवरी को रात 9:10 बजे है।

सकट चौथ को तिलकुट चौथ क्यों कहा जाता हैमाघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को तिलकुट चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश को पिसे हुए तिल से बनी मिठाई का भोग लगाया जाता है। इसीलिए इसे तिलकुट चतुर्थी कहा जाता है। साथ ही इस दिन तिल मिश्रित जल से स्नान करना चाहिए, तिल का दान करना चाहिए और प्रसाद के रूप में तिल की मिठाई का सेवन करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार माघ माह की चतुर्थी के दिन भगवान गणेश ने अपने माता-पिता को घेरकर अपनी तीव्र बुद्धि और ज्ञान का प्रदर्शन किया था। इसके बाद ही उनके पिता भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें प्रथम पूज्य देव बनने का वरदान दिया था।

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