Sakat Chauth 2023: दस जनवरी को है सकट चौथ का व्रत, पढ़ें महत्व के साथ पूजन विधि और कथा

दस जनवरी 2023 को रखा जाएगा सकट चौथ का व्रत। निर्जल व्रत रखकर भगवान गणेश जी का किया जाता है पूजन। रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही जल किया जाता है ग्रहण। इसके बाद भोजन करने का है विधान। माताएं संतान की कुशलता और सफलता के लिए रखती हैं व्रत।

sakat chauth 2023

सकट चौथ पर होती है भगवान गणेश की पूजा। फोटो फेसबुक के सौजन्य से।

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • माताएं रखती हैं संतान की कुशलता के लिए व्रत
  • सकट चौथ पर रखा जाता है पूरे दिन निर्जला व्रत
  • चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही जल करती हैं ग्रहण

Sakat Chauth 2023: सकट चौथ व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए करती हैं। इस व्रत के प्रभाव से संतान को रिद्धि− सिद्धि की प्राप्ति होती है। उनके जीवन में अपनी वाली सभी विघ्न बाधाएं गणपति भगवान दूर करते हैं। इस दिन निर्जला व्रत रखने का विधान है। शाम को गणेश जी की पूजा और चंद्रमा को अर्घ्य देकर जल ग्रहण किया जाता है।

ज्योतिषशास्त्री पंकज प्रभु के अनुसार सकट चौथ के दिन संकट हरण गणपति का पूजन होता है। वर्ष 2023 में सकट चौथ का व्रत दस जनवरी दिन मंगलवार को रखा जाएगा। इस दिन चतुर्थी तिथि 12ः10 बजे लगेगी और 11 जनवरी को 14ः30 बजे समाप्त हो जाएगी।

पूजा विधि

सुबह पहले सिर धाेकर नहाएं। हाथाें में मेहंदी लगाएं। सफेद तिल और गुड़ का तिकुट बनाएं। एक पट्टे पर जल का लोटा, चावल, रोली, एक कटोरी में तिलकुछ और रुपये रखकर जल के लोटे पर सतिया कर तेरह टिक्की करें। चौथ की कहानी सुनें। तब थाेड़ा सा तिलकुछ ले लें। कहानी सुनने के बाद एक कटोरी में तिलकुछ और रुवये रखकर हाथ फेर कर सासूजी के पैर छूकर दे दें। जल का लोटा और हाथ के तिल उठाकर रख दें। शाम को चांद को अर्घ्य देकर भाेजन करें। इच्छानुसार रुपये और तिलकुछ जो मिसरानी कहानी कहे उसे दे दें। जब खाना खाएं तब तिलकुछ जरूर खाएं।

सकट चौथ व्रत कथा

एक देवरानी− जिठानी थीं। जिठानी बहुत गरीब थी। देवरानी के घर उसका सारा कार्य करने जाती थीं। वहां से उसे एक सेर जौ रोज मिलते थे, उससे अपना गुजारा चलाती थी। एक दिन सकट चौथ पड़ी। जेठानी ने उस दिन देवरानी के घर न जाकर, अपने घर में साग बथुआ की पूड़ियां बनाकर कहानी सुनी और व्रत किया। जब उसके पति लौटकर आए और उन्होंने भाेजन में जब साग बथुआ की पूड़ियां देखीं तो गुस्सा होकर अपनी पत्नी को पीट दिया। वह बेचारी पिटकर एक काेने में जाकर ले गई। आधी रात समुद के किनारे से हीरे मोती चुनकर सकट गुसईां चले। आकर जेठानी के घर के किवाड़ खटखटाए। जेठानी ने उन्हें देखकर कहा कि मेरी तो टूटी झोपड़ी है, फिर भी अंदर आ जाओ।

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सकट गुसाईं बोले−“माई, मुझे भूख लगी है।” वह बोली−“महाराज मेरे पास क्या है? साग बथुआ की पूड़ी रखी हैं। सबने वही खाया है, आप भी खा लो। वे फिर बोले−“माई, सोयेंगे। ” वह बोलीे−“महाराज बाल बच्चे टूटी खटिया पर सो रहे हैं। आप भी सो जाओ।” चार बजे सुबह उठकर सकट गुसाईं बोले−“माई, मुझे हिंगास गली है।” वह बोली−“ एक काेने में आप भी हिंग लो, बच्चों की साफ करूंगी तो आपकी भी कर दूंगी। सकट गुसाईं ने कहा−“मईा। मैं साफ कहां करूं” तो वह बोली−“पोंछ लो मेरे ललाट से।”

इतना कहकर सकट गुसाईं अन्तर्ध्यान हो गए। जब वह जेठानी उठी तो उसने देखा कि झोपड़ी की जगह महल खड़ा है और चारों ओर हीरे− मोती झिलमिला रहे हैं। उसका मस्तिष्क हीरे− मोती के मुकुट से चमक रहा था। जब वह यह सामान उठा− उठाकर रख रही थी, तभी देवरानी यह पता करने आई कि दो दिन से जेटानी मेरे घर का काम करने क्यों नहीं आई? जब वह जेठानी के घर जाकर पूछने लगी तो उसके बच्चों ने कहा कि “अब तुम हमारे घर का ही काम कर जाओ”। देवरानी ने पूछा कि “तुम यह सारा धन कहां से लाई हो?” जेठानी बोली−“मैंने किसी का धन नहीं लिया। मुझे तो सकट गुसाईं दे गए हैं। उसने सारी घटना देवरानी को सुना दी। ये सुनकर देवरानी ने सोचा कि अब की बार सकट चौथ आने पर मैं भी ये ही करूंगी। दूसरी साल जब सकट चौथ आइ तो देवरानी ने अपने घर में खूब पूड़ी पूआ सेंके और अपने पति से बोली “जब तुम काम से लौटाे तो मुझे गुस्सा होकर मारना। जब रात में कोल्हू की पाड़ से नीपा खाकर सकट गुसाईं आए तो देवरानी के यहां के किवाड़ खुलवाए। देवरानी ने कहा कि−“महाराज उसके यहां क्या था? मेरे यहां बढ़िया किवाड़ हैं। अंदर चले आओ”।

उन्होंने कहा−“माई, भूख लगी है। तो देवरानी ने कहा कि “मेरे यहां भरी छबरियां पूआ पूड़ी रखे हैं, आप खूब खाओ”। सकट गुसाईं बोले−“माई, नींद लगी है”, तो उसने कहा कि “सूत के पलंग पर सो जाओ।” सुबह उठने पर वह बोले−“माई, हिंगास लगी है।” तो वह बोली−“मेरे यहां ये खूब बड़ा महल है, जहां चाहो हिंग लो।” सकट गुसाईं बोले,“माई, साफ किससे करूं।” तो वह बोली“पोंछ लो मुझ भाग्यवान के ललाट से।” इसके बाद सकट गुसाईं अन्तर्ध्यान हो गए। सुबह जब देवरानी उठी तो उसने देखा कि उसके घर में चारों ओर बदबू फैल रही है।

जिधरर उसने देखा उधर ही गंदगी पड़ी थी। अब देवरानी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। वह जेठानी के पास पहुंची और बोली“तुम कहती हो कि तुम्हें सकट गुसाईंं दे गए लेकिन मेरे यहां तो कुछ नहीं दे गए। तुम जरूरर किसी को ठगकर लाई हो।” जेठानी बोली“बहन मैं किसी को ठगरकर नहीं लाई। मुझे सकट गुसाईं ने ही दिया है। फर्क इतना है कि मैंने अभाव में रहकर निःस्वार्थ भाव से उनकी सेवा अी और तुमने धनधान्य से सम्पन्न होने पर भी अभिमान में भरकर लालच के वश में होकर उनकी सेवा की। इस तरह सकट गुसाईं ने मेरी सुनी है। वह सब किसी की सुनते हैं।”

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)

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