Tilkut Chauth Vrat Katha In Hindi: तिलकुट चौथ की व्रत कथा के बिना अधूरा है सकट चौथ व्रत
Til Chauth Vrat Katha In Hindi: सकट चौथ यानी तिलकुट चौथ व्रत में भगवान गणेश और चंद्र देव की पूजा की जाती है। ये व्रत महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए रखती हैं। जानिए इस व्रत की पौराणिक कथा।
Sakat Chauth Vrat Katha In Hindi
Sakat (Tilkut) Chauth Vrat Katha In Hindi (सकट चौथ व्रत कथा): सकट चौथ को तिलकुट चौथ, संकष्टी चतुर्थी और गणेश चतुर्थी नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो साल में कई चतुर्थी आती हैं लेकिन माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। इस दिन शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश की पूजा करके व्रत कथा भी सुनी चाहिए। जानिए संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (Sankashti Chaturthi Vrat Katha) यानी तिलकुट चौथ की कहानी।
Tilkut Chauth Vrat Katha In Hindi (तिलकुट चौथ की कहानी)
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सकट चौथ से जुड़ी दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक नगर में एक कुम्हार रहता था। उसने जब एक बार बर्तन बनाकर आवा लगाया तो वो पका ही नहीं। तब परेशान होकर कुम्हार राजा के पास गया। राजा ने पंडित को बुलाया और इसके पीछे की क्या वजह है इसके बारे में जानना चाहा। तब पंडित ने कहा, हर बार आवा जलाते समय आपको एक बच्चे की बलि देनी होगी। तब वह जरूर पक जाएगा। जब बली की बारी आई तो हर परिवार से रोजाना एक दिन में एक बच्चा बलि के लिए भेजा जाता था।
इसी तरह कुछ दिन बीत गए और कुछ दिनों बाद एक बुढ़िया के लड़के की बारी आई। बुढ़िया का उसके पुत्र के अलावा कोई और सहारा नहीं था। ऐसे में वो राजा के पास गई और बोली कि मेरा एक ही बेटा है और इस बलि के चक्कर में वो मुझसे दूर हो जाएगा। फिर मैं अकेले जीकर क्या करूंगी। लेकिन राजा ने उसकी बात नहीं सुनी। तब बुढ़िया को एक उपाय सूझा उसने अपने बेटे को सकट की सुपारी और दूब का बेड़ा देकर भेजा और कहा कि तुम भगवान का नाम लेकर आवा में बैठ जाना सकट माता तुम्हारी जरूर रक्षा करेंगी।
जब अगले दिन बुढ़िया के बेटे को आवा में बिठाया गया तो उसने अपने बेटे की सलामती के लिए पूजा की। जिसके प्रभाव से जो आवा पकने में कई दिन लग जाते थे अब वह एक ही रात में पक गया और सुबह जब कुमार ने आवा को देखा तो आवा भी अच्छे से पक चुका था और बुढ़िया के बेटे को भी कुछ नहीं हुआ था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बच्चे जिनकी बलि दी गई थी वो भी जिंदा हो गए थे। कहते हैं तभी से नगर वासियों ने सकट माता की पूजा और व्रत का विधान शुरू कर दिया।
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