Sakat Chauth (Sankashti Chaturthi) 2024 Vrat Katha in Hindi: साल में आने वाली सभी संकष्टी चतुर्थी तिथियों में से माघ महीने की संकष्टी चतुर्थी का सबसे ज्यादा महत्व माना जाता है। जिसे सकट चौथ के नाम से जाना जाता है (Sakat Chauth Ki Kahani)। इस चतुर्थी पर माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं। भारत के लगभग सभी हिस्सों में संकष्टी चतुर्थी का व्रत धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल सकट चौथ 29 जनवरी को मनाई जा रही है (Sakat Devta Ki Katha)। इस दिन माताएं शाम में भगवान गणेश की विधि विधान पूजा करने के बाद व्रत कथा पढ़ती हैं। यहां देखें सकट चौथ से जुड़ी पौराणिक व्रत कथा (Sankashti Chaturthi Vrat Katha)।
Sakat Chauth Katha In Hindi, Sankashti Chaturthi Ki Kahani (सकट चौथ व्रत कथा)
एक बार महादेवजी पार्वती जी के साथ नर्मदा के तट पर गए। जहां पार्वतीजी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की। तब शिवजी ने कहा लेकिन हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा? पार्वती जी ने तुरंत वहां की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला तैयार किया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और उससे कहा: बेटा! हम चौपड़ खेलने जा रहे हैं। अतः खेल के अन्त में तुम ही हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताओगे कि हममें से कौन जीता, कौन हारा?
इस तरह से खेल आरंभ हुआ। दैवयोग से तीनों बार पार्वतीजी ही जीतीं। जब उस बालक से हार-जीत का निर्णय कराने की बारी थी तो उसने महादेवजी को विजयी बता दिया। पार्वतीजी क्रोधित हो गईं और उसे एक पांव से लंगड़ा होने और वहां के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का शाप दे दिया।बालक ने विनम्रतापूर्वक माता से कहा: हे माँ! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हुआ है। मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति पाने का उपाय बताएं।
तब ममतारूपी माता पार्वती को उस पर दया आ गई और वे बोलीं: यहां नाग-कन्याएं गणेश-पूजन करने के लिए आएंगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे। एक साल बाद वहा नाग-कन्याएं गणेश पूजन के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने उस बालक को गणेश व्रत करने की विधि बताई। तब बालक ने 21 दिन तक श्री गणेशजी का व्रत किया।
गणेशजी ने प्रसन्न होकर उस बालक को दर्शन देकर कहा: मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूं। इसलिए मनोवांछित वर मांगो। बालक बोला: भगवन! मेरे पांव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुंच सकूं। गणेश भगवान तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गए। बालक कैलाश में भगवान शिव के चरणों में पहुंच गया। शिवजी ने उससे वहां तक पहुंचने के साधन के बारे में पूछा।
तब बालक ने सारी बात शिवजी को बता दी। उधर माता पार्वती उसी दिन से अप्रसन्न होकर शिवजी से भी विमुख हो गई थीं। इसलिए भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन तक श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती का मन स्वयं ही महादेवजी से मिलने का हुआ और वे वापस आ गईं।
वहां पहुंचकर पार्वतीजी ने पूछा: भगवन! आपने ऐसा क्या उपाय किया जिससे मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूं। शिवजी ने माता को गणेश व्रत का बताया। तब माता पार्वती ने भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। व्रत के परिणामस्वरूप 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से मिलने के लिए आ गए। फिर उन्होंने भी मां के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया।