Sakat Chauth Katha Devrani Jaithani: सकट चौथ कथा देवरानी जेठानी वाली
Sakat Chauth Vrat Katha In Hindi (सकट चौथ व्रत कथा): तिलकुट चौथ व्रत महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और खुशहाल जीवन के लिए रखती हैं। साथ ही इस व्रत को करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। पूजा के समय गणेश भगवान की ये पावन कथा पढ़ना बिल्कुल भी न भूलें। जानिए कैसे गणेश जी की कृपा से देवरानी को मिला पुण्य फल तो जेठानी को मिली सजा।
सकट चौथ कथा देवरानी जेठानी वाली (Sakat Chauth Katha In Hindi)
एक समय की बात है एक शहर में देवरानी जेठानी रहती थी। देवरानी गरीब थी और जेठानी अमीर थी। देवरानी गणेश जी की बड़ी भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर उसे बेचता था और अक्सर बीमार रहता था। देवरानी अपनी जेठानी के घर का सारा काम करती और बदले में जेठानी उसे बचा हुआ खाना, पुराने कपड़े आदि दे देती थी। इसी से देवरानी का परिवार चल रहा था।
माघ महीने में देवरानी ने तिल चौथ का व्रत किया। 5 रूपये का तिल व गुड़ लाकर तिलकुट्टा बनाया। पूजा करके तिल चौथ की कथा सुनी और तिलकुट्टा छींके में रख दिया और सोचा की चांद निकलने के बाद ही कुछ खायेगी। इस तरह से कथा सुनकर वह जेठानी के यहां काम करने चली गई। खाना बनाकर जेठानी के बच्चों को खाना खाने को कहा तो बच्चे बोले– माँ ने व्रत किया हैं और माँ भूखी हैं। जब माँ खाना खायेगी तभी हम भी खाएंगे।
जेठजी को खाना खाने को कहा तो जेठजी बोले मैं अकेला नहीं खाऊँगा, जब चाँद निकलेगा, तभी मैं खाऊंगा। देवरानी ने कहा – मुझे घर जाना है इसलिए मुझे खाना दे दो। जेठानी ने उसे कहा– आज तो किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया तुम्हें कैसे दे दूँ ? तुम सवेरे ही बचा हुआ खाना ले जाना। देवरानी उदास होकर घर चली आई। देवरानी के घर पर पति , बच्चे सब आस लगाए बैठे थे की आज तो त्यौहार हैं इसलिए कुछ अच्छा खाना खाने को मिलेगा। परन्तु जब बच्चों को पता चला कि आज तो रोटी भी नहीं मिलेगी तो बच्चे रोने लगे।
ये देखकर देवरानी के पति को गुस्सा आ गया और कहने लगा कि दिन भर काम करने के बाद भी दो रोटियां नहीं ला सकती। तो काम क्यों करती हो? पति ने गुस्से में आकर पत्नी को कपड़े धोने के धोवने से पीटा। धोवना हाथ से छूट गया तो पाटे से मारा। वो बेचारी गणेश जी को याद करती हुई रोते हुए पानी पीकर सो गयी।
उस दिन गणेश जी देवरानी के सपने में आये और कहने लगे धोवने मारी, पाटे मारी, सो रही है या जाग रही है। वह बोली कुछ सो रहे हैं, कुछ जाग रहे हैं
गणेश जी बोले भूख लगी हैं , खाने के लिए कुछ दे। देवरानी बोली: क्या दूं, मेरे घर में तो अन्न का एक दाना भी नहीं हैं, जेठानी बचा हुआ खाना देती थी आज वो भी नहीं मिला। देवरानी ने आगे कहा कि पूजा का बचा हुआ तिलकुटा छींके में पड़ा हैं, वही खा लो। गणेश जी ने तिलकुट खाया और उसके बाद कहने लगे – "धोवने मारी ,पाटे मारी , निमटाई लगी है ! कहां निमटे"
उसने कहा: यह खाली झोंपड़ी है आप कहीं भी जा सकते हैं, जहां इच्छा हो वहां निमट लो फिर गणेश जी बोले 'अब कहां पोंछू" अब देवरानी को बहुत गुस्सा आया कहने लगी कब से परेशान किया जा रहा है, सो बोली "मेरे सिर पर पोंछो और कहां" देवरानी जब सुबह उठी तो यह देखकर हैरान रह गई कि पूरा घर हीरों और मोतियों से जगमगा उठा है। सिर पर जहां बिंदायकजी पोछनी कर गये थे वहां हीरे के टीके और बिंदी जगमगा रहे थे।
इसके बाद देवरानी जेठानी के यहां काम करने नहीं गई। जेठानी ने कुछ देर तो राह देखी फिर बच्चों को देवरानी को बुलाने भेज दिया। जेठानी ने सोचा कल खाना नहीं दिया था इसीलिए शायद देवरानी बुरा मान गई होगी। बच्चे बुलाने गए और बोले– चाची चलो! मां ने बुलाया है। दुनिया में चाहे कोई मौका चूक जाए पर देवरानी जेठानी आपस में कहने का मौके नहीं छोड़ती।
देवरानी ने कहा 'बेटा बहुत दिन तेरी मां के यहां काम कर लिया, अब तुम अपनी मां को ही मेरे यहां काम करने भेज दो' बच्चो ने घर जाकर मां से कहा कि चाची का पूरा घर हीरों और मोतियों से जगमगा उठा है। जेठानी दौड़कर देवरानी के घर गई और पूछा कि यह सब कैसे हो गया?
देवरानी ने जेठानी को सब बता दिया जो भी उसके साथ हुआ था। घर लौटकर जेठानी ने कुछ सोचा और अपने पति से कहने लगी– आप मुझे धोवने और पाटे से मारो। उसका पति बोला कि भली मानस मैंने तो कभी तुम पर हाथ भी नहीं उठाया। मैं तुम्हे धोवने और पाटे से कैसे मार सकता हूं। वो नहीं मानी और जिद करने लगी। मजबूरन पति को उसे मारना पड़ा। मार खाने के बाद , उसने ढ़ेर सारा घी डालकर चूरमा बनाया और छीकें में रख सो गयी। रात बिंदायक जी जेठानी के सपने में भी आए और कहने लगे कि उन्हें भूख लगी है, "मैं क्या खाऊं",
जेठानी ने कहा, "हे भगवान गणेश, आपने मेरी देवरानी के घर पर एक चुटकी सूखा तिलकुट खाया था। मैने तो झरते घी का चूरमा बनाया है और आपके लिए छींके में रखा हैं, फल और मेवे भी रखे है जो चाहें खा लो"
गणेश जी बोले ,"अब निपटे कहां" जेठानी बोली ,"उसके यहाँ एक टूटी हुई झोंपड़ी थी, मेरे यहां एक उत्तम दर्जे का महल है। जहां चाहो निपटो" फिर गणेश जी ने पूछा ,"अब पोंछू कहां" वो बोली मेरे ललाट पर बड़ी सी बिंदी लगाकर पोंछ लो।
धन की भूखी जेठानी सुबह जल्दी उठ गई सोचा घर हीरे-जवाहारात से भर चुका होगा। लेकिन उसने देखा कि उसका पूरा घर बदबू, उसके सिर पर भी बहुत सी गंदगी लगी हुई थी।
उसने कहा हे गणेश जी महाराज , ये आपने क्या किया, मुझसे रूठे और देवरानी पर टूटे। जेठानी ने घर और की सफाई करने की बहुत कोशिश की परन्तु गंदगी और ज्यादा फैलती गई। जेठानी के पति को मालूम चला तो वो भी बहुत गुस्सा हुआ और बोला तेरे पास इतना सब कुछ था फिर भी तेरा मन नहीं भरा।
परेशान होकर चौथ के बिंदायक जी (गणेशजी) से मदद की विनती करने लगी। बोली – मुझसे बड़ी भूल हुई। मुझे क्षमा करो । बिंदायक जी ने कहा देवरानी से जलन के कारण जो तुने किया है उसी का फल तुझे मिला है। अब तू अपने धन में से आधा उसे देगी तभी यह सब साफ होगा।
उसने आधा धन तो बांट दिया किन्तु मोहरों की एक हांडी चूल्हे के नीचे गाढ़ रखी थी। उसने सोचा किसी को पता नहीं चलेगा और उसने उस धन को नहीं बांटा। जेठानी ने गणेश जी से कहा हे चौथ बिंदायक जी, अब तो अपना ये बिखराव समेटो। वे बोले , पहले चूल्हे के नीचे गाढ़ी हुयी मोहरो की हांडी औरताक में रखी सुई की भी पांति कर। इस प्रकार बिंदायकजी ने सुई जैसी छोटी चीज का भी बंटवारा करवाकर अपनी माया समेटी।
हे गणेश जी महाराज, जैसी आपने देवरानी पर कृपा करी वैसी सब पर करना। कहानी कहने वाले, सुनने वाले व हुंकारा भरने वाले सब पर कृपा करना। किन्तु जेठानी को जैसी सजा दी वैसी किसी को मत देना। बोलो गणेश जी महाराज की – जय !!!