Sankashti Chaturthi Vrat Katha In Hindi: संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा पढ़ने से जीवन की सभी परेशानियां हो जाएंगी दूर

Sankashti Chaturthi Vrat Katha: कहते हैं जो व्यक्ति नियमानुसार संकष्टी गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2024) का व्रत करता है उसे गणपति बप्पा की कृपा से यश, धन, वैभव और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। व्रत रखने वाले गणेश चतुर्थी की व्रत कथा पढ़ना बिल्कुल भी न भूलें।

Sankashti Chaturthi vrat katha (1)

Sankashti Chaturthi Katha: संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

Sankashti Chaturthi Vrat Katha In Hindi: संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए रखा जाता है। कहते हैं इस व्रत को करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। वैसे तो हर महीने में संकष्टी पढ़ती है लेकिन माघ महीने की संकष्टी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। इस संकष्टी चतुर्थी पर चंद्र देव की भी पूजा की जाती है। ये व्रत माताएं अपनी संतान के सुखी जीवन की कामना से रखती हैं। यहां देखें संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा।

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (Sankashti Chaturthi Ki Katha In Hindi)

श्रावण श्री गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा अनुसार इस व्रत को धर्मराज युधिष्ठिर ने किया था। जब धर्मराज राजच्युत होकर अपने भाइयों के साथ वन में चले गए थे तब उन्होंने भगवान कृष्ण से अपने कष्टों को लेकर जो प्रश्न किया था, उस कथा को आप सुनिए।

युधिष्ठिर भगवान कृष्ण से पूछते हैं कि, हे पुरुषोत्तम! ऐसा कौन सा उपाय हैं जिससे हम वर्तमान संकटों से मुक्त हो सके। हम लोगों को आगे किसी प्रकार का कष्ट न भोगना पड़े कृप्या ऐसा उपाय बताएं।

स्कंदकुमार जी कहते है कि जब युधिष्ठिर विनम्र भाव से हाथ जोड़कर बार-बार अपने कष्टों के समाधान का उपाय पूछने लगे तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि हे राजन! प्रत्येक कामनाओं को पूरा करने वाला एक महान गुप्त व्रत है। हे युधिष्ठिर! इस व्रत के बारे में मैंने कभी किसी को नहीं बताया।

हे राजन! प्राचीन समय में तब सतयुग था तब पर्वतराज हिमाचल की कन्या पार्वती ने शंकर जी को पति रूप में पाने के लिए घने वन में जाकर कठोर तपस्या की। लेकिन भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए तब पार्वती जी ने गणेश जी का स्मरण किया।

गणेश जी उसी क्षण प्रकट हो गए जिसे देखकर पार्वती जी ने पूछा कि मैंने कठोर, दुर्लभ और लोमहर्षक तपस्या की, लेकिन भगवान शिव को प्राप्त न कर सकी। कृप्या करके आप मुझे अपने कष्टविनाशक दिव्य व्रत जिसे नारद जी ने कहा है उसके महत्व के बारे में बताइए। पार्वती जी की बात सुनकर गणेश जी उस कष्टनाशक, शुभदायक व्रत का वर्णन करने लगे।

गणेश जी ने कहा: अत्यंत पुण्यकारी और समस्त कष्टनाशक व्रत को कीजिए। इससे आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी और जो व्यक्ति इस व्रत को करेगा उसे सफलता जरूर मिलेगी। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी की रात में चंद्र देव का पूजन करना चाहिए। उस दिन मन में संकल्प लेना चाहिए कि जब तक चंद्रोदय नहीं होगा तब तक मैं भोजन नहीं करूंगी अत: निराहार रहूंगी। पहले गणेश पूजन कर ही भोजन करूंगी। इसके बाद सफ़ेद तिल के जल से स्नान करना चाहिए। फिर मेरा पूजन करने के बाद अपनी सामर्थ्य अनुसार सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश में जल भरकर उस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।

मूर्ति कलश पर वस्त्राच्छादन करके अष्टदल कमल की आकृति बनाएं और उसी मूर्ति को वहां स्थापित कर दें। इसके बाद षोडशोपचार विधि से पूजन करें। प्रतिमा का ध्यान करते हुए कहें: हे लम्बोदर! चार भुजा वाले! तीन नेत्र वाले! लाल रंग वाले! हे नीलवर्ण वाले! शोभा के भंडार! प्रसन्न मुख वाले गणेश जी! मैं आपका ध्यान करता या करती हूं। हे गजानन! मैं आपका आवाहन करती हूं। हे विघ्नराज! आपको प्रणाम करती हूं, यह आसन है।

इसके बाद कहें हे लम्बोदर! यह आपके लिए पाद्य हैं। हे शंकरसुवन! यह आपके लिए अर्घ्य है। हे उमापुत्र! यह आपके स्नानार्थ जल हैं। हे व्रकतुंड! यह आपके लिए आचमनीय जल हैं। हे शूर्पकर्ण! यह आपके लिए वस्त्र हैं। हे सुशो‍भित! यह आपके लिए यज्ञोपवीत है। हे गणेश्वर! यह आपके लिए रोली चन्दन है। हे विघ्नविनाशन! यह आपके लिए फूल हैं।

हे विकट! यह आपके लिए धूपबत्ती है। हे वामन! यह आपके लिए दीपक है। हे सर्वदेव! यह आपके लिए लड्डू का नैवेद्य है। हे देव! यह आपके निमित फल हैं। हे विघ्नहर्ता! यह आपके निमित मेरा प्रणाम है। प्रणाम करने के बाद क्षमा प्रार्थना करें। इस तरह से षोडशोपचार पूजन करके भगवान को भोग लगाएं।

हे देवी! देशी घी से पंद्रह लड्डू बनाएं। सबसे पहले भगवान को लड्डू अर्पित करें फिर उसमें से पांच लड्डू ब्राह्मणों को दे दें और अपनों सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा दें। फिर चंद्रोदय पर चंद्रमा को अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय कहें कि हे देवी तुम सब तिथियों में सर्वोत्तम हो, गणेश जी की प्रिय हो। हे चतुर्थी हमारे अर्घ्य को ग्रहण करों, तुम्हें मेरा प्रणाम है। इसके बाद फिर पांच लड्डू का खुद भोजन करें।

फिर कहें हे लम्बोदर! आप व्यक्ति की सभी इच्छाओं को पूरा करने वाले हैं आपको मेरा प्रणाम हैं। हे समस्त विघ्नों के नाशक! आप मेरी कामनाओं को पूर्ण करें। तत्पश्चात ब्राह्मण की प्रार्थना करें: हे दिव्जराज! आपको नमस्कार हैं, आप साक्षात देव स्वरुप हैं। गणेश जी की प्रसन्नता के लिए हम आपको लड्डू समर्पित कर रहे हैं। हम आपको नमस्कार करते हैं।

इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर गणेश जी से प्रार्थना करें। प्रार्थना करके प्रतिमा का विसर्जन कर दें और अपने गुरु को अन्न-वस्त्रादि और दक्षिणा के साथ मूर्ति दे दें। विसर्जन करते हुए कहें: हे देवों में श्रेष्ठ! गणेश जी! आप अपने स्थान को प्रस्थान कीजिए और इस व्रत पूजन का फल दीजिए।

हे सुमुखि! इस तरह से गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। ये व्रत जन्म भर या तो 21 वर्ष तक किया जा सकता है। यदि इतना करना भी संभव न हो तो एक वर्ष तक इस व्रत को करें। यदि ये भी संभव न हो तो वर्ष के एक मास को तो अवश्य ही ये व्रत करें और सावन चतुर्थी को व्रत का उद्यापन करें।

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | अध्यात्म (spirituality News) और चुनाव के समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |

लेटेस्ट न्यूज

    TNN अध्यात्म डेस्क author

    अध्यात्म और ज्योतिष की दुनिया बेहद दिलचस्प है। यहां हर समय कुछ नया सिखने और जानने को मिलता है। अगर आपकी अध्यात्म और ज्योतिष में गहरी रुचि है और आप इस ...और देखें

    End of Article

    © 2024 Bennett, Coleman & Company Limited