Satuan Parv Kab Hai 2025: आज है सतुआन पर्व, जानिए इसकी पूजा विधि और महत्व

Satuan Parv Kab Hai 2025 (सतुआन कब है 2025): जुड़ शीतल पर्व 14 अप्रैल से शुरू हो रहा है। मिथिला में इसे नववर्ष के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन जल की पूजा की जाती है और शीतला माता से शीतलता बनाए रखने की कामना की जाती है। ये दो दिवसीय पर्व होता है। जिसके पहले दिन 14 अप्रैल को सतुआन तो दूसरे दिन 15 अप्रैल को धुरलेख होता है। जिस तरह से छठ सूर्य देव की उपासना का पर्व होता है ठीक वैसे ही जुड़ शीतल जल की पूजा का पर्व होता है।

Satuan Parv Kab Hai 2025

Satuan Parv Kab Hai 2025

Satuan Parv Kab Hai 2025 (सतुआन कब है 2025): इस त्योहार का प्रकृति से सीधा संबंध होताा है। इस दौरान मिथिला में सत्तू और बेसन की नयी पैदावार होती है। जिसका इस त्योहार में बड़ा महत्व होता है। गर्मी के मौसम में लोग सत्तू और बेसन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं क्योंकि इससे बने व्यंजन जल्दी खराब नहीं होते। इसलिए जुड़ शीतल पर्व के पहले दिन सतुआन में सत्तू की कई चीजें बनाई जाती हैं। इस साल सतुआन पर्व 14 अप्रैल 2025 को मनाया जा रहा है।

सतुआन पर्व कब है 2025 (Satuan Parv Kab Hai 2025)

सतुआन पर्व इस साल 14 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन पुण्यकाल समय सुबह 05:57 से दोपहर 12:22 तक रहेगा।

सतुआन पूजा विधि (Satuan Puja Vidhi In Hindi)

सतुआनी के पर्व से ठीक एक दिन पहले मिट्टी के घड़े में जल को ढक्कर रखा जाता है। फिर इस पर्व की सुबह पूरे घर में उसी जल से पवित्र छिड़काव करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन बासी जल के छींटों से पूरा घर शुद्ध हो जाता है। इसके अलावा इस दिन बासी खाना खाने की भी परंपरा है। कहते हैं कि जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो उसके पुण्यकाल में सूर्य और चंद्र की किरणों से अमृत बरसता है, जो आरोग्यवर्धक होता है।

सतुआन के दिन क्या खाते हैं (Satuan Ke Din Kya Khate Hai)

इस दिन सत्तू, कच्चे आम, मूली और गुड़ का सेवन किया जाता है। इसलिए इसका नाम सतुआन पड़ा। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने राजा बलि को हराने के बाद सत्तू का भोजन किया था। इसलिए इस दिन सत्तू का सेवन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

सतुआन के दिन क्या करते हैं? (Satuan Ke Din Kya Karte Hai)

इस दिन लोग तुलसी के पेड़ को नियमित जल देने के लिए एक घड़ा बांध देते हैं। ऐसा करने के पीछे की मान्यता है कि इससे पितरों की प्यास बुझ जाती है। इस दिन सुबह के समय माताएं अपने बच्चों के सिर पर पानी का थापा देती हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे बच्चों पर पूरे साल शीतलता बनी रहती है। जिससे गर्मी से राहत मिलती है। इस दिन शाम के समय में लोग पेड़-पौधों में जल डालते हैं जिससे वे सूखे नहीं। इसके अलावा इस दिन कई घरों में कुलदेवता की पूजा की जाती है और उन्हें आटा, सत्तू, शीतल पेय, आम्रफल और पंखा अर्पित किया जाता है।

पर्व के दूसरे दिन धुरलेख होता है। इस दिन सभी लोग मिलकर जल संग्रह के स्थलों जैसे कि कुआं, तालाब की सफाई करते हैं। इस दिन चूल्हे को आराम दिया जाता है। इस दिन रात में मंसाहार खाने की परंपरा है।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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