Shiv Parvati Story: जब मगरमच्छ बनकर शिव ने ली थी पार्वती की परीक्षा, तब मिली थी उनको सफलता

Shiv Parvati Story: हिंदू धर्म में माता पार्वती और भगवान शिव को बहुत ही पूजनीय माना जाता है। शिव और पार्वती ने अपने जीवन के माध्यम से संसार को बहुत सारे सीख देने का काम किया है। आज हम इन्हीं में से एक सीख की कथा बताने जा रहे हैं।

Shiv Parvati Story

Shiv Parvati Story

Shiv Parvati Story: भगवान शिव को सनातन धर्म में अविनाशी माना गया है। उनका ना तो कोई आदि है और ना ही कोई अंत है। वो जीवन मरण के बंधन से मुक्त हैं। भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने जीवन के माध्यम से सांसारिक प्राणियों को बहुत सी सीख दी है। जीवन को कैसे जिया जाए क्या काम करें और क्या ना करें। ऐसी बहुत सी बातें शिव जी ने और माता पार्वती ने बताई हैं। आज हम आपके इसी से संबंधित एक कथा बताने जा रहे हैं। जब शिव ने पार्वती की कठोर तपस्या के समय उनकी कठिन परीक्षा ली थी और इसके माध्यम से संसार को ये संदेश दिया था, कि व्यक्ति को सफलता तभी प्राप्त हो सकती है जब वो अपने काम में सफल होने का संकल्प ले ले। आइए यहां पढ़ें शिव पार्वती की रोचक कथा।

Sangrand july 2024 Date

Shiv Parvati Story (शिव पार्वती की कथा)

माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया है। तब जाकर भगवान शिव उन्हें पति के रूप में प्राप्त हुए हैं। एक बार की बात है जब पार्वती अपने कठोर तप में लीन थी। उनकी तपस्या को देखकर शिव जी प्रसन्न हुए और उनका वरदान दिया। कुछ समय बाद जिस स्थान पर पार्वती तप कर रहीं थी। उस स्थान के पास वाले सरोवर में एक बालक को मगरमच्छ ने पकड़ लिया । बालक जोर- जोर से चिल्लाने लगा। बालक माता पार्वती से बोलने लगा माता मेरी रक्षा करो मुझे बचा लो। माता ने मगरमच्छ से निवेदन किया हे मगरमच्छ तुम इस बालक को छोड़ दो और उसके बदले तुम्हें जो चाहिए वो मुझसे ले ले। तब मगरमच्छ ने माता पार्वती से कहा हे माता भगवान भोलेनाथ से जो आपको वरदान दिया है। उसका फल आप मुझे दे दे। माता पार्वती को 108 वर्ष तपस्या के बाद महादेव से प्राप्त हुआ था, लेकिन माता ने बालक की जान बचाने के लिए अपने तप का फल मगरमच्छ को दे दिया। मगरमच्छ ने लड़के को छोड़ दिया। माता पार्वती फिर से घोर तपस्या के लिए ध्यान में बैठ गईं। फिर से भगवान शिव वहां आए और बोले जो आपको चाहिए था वो तो मैंने दे दिया आप फिर से क्यों तपस्या में लीन हो गईं। तब माता पार्वती ने शिव को पूरी बात बताई। तब शिव ने कहा कि वो मगरमच्छ और बालक दोनों ही मेरे रूप थे। मैं आपकी परीक्षा ले रहा था मैं ये देखना चाहता था कि तु्म्हारा मन दूसरों की पीड़ा से दुखी होता है या नहीं। उन्होंने कहा कि मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूं और अब आपको कोई तप करने की आवश्यकता नहीं है। यदि व्यक्ति का मन प्रबल हो तो उसे सफलता प्राप्त करने से परमात्मा भी नहीं रोक सकते हैं। बस व्यक्ति को अपने संकल्प को मजबूत रखना चाहिए तो उसे सफलता जरूर मिलती है। उसके बाद शिव और पार्वती का विवाह हो गया।

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जयंती झा author

बिहार के मधुबनी जिले से की रहने वाली हूं, लेकिन शिक्षा की शुरुआत उत्तर प्रदेश की गजियाबाद जिले से हुई। दिल्ली विश्वविद्यायलय से हिंदी ऑनर्स से ग्रेजुए...और देखें

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