Putrada Ekadashi Vrat Parana Time 2023: श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण समय यहां देखें

Sawan Putrada Ekadashi 2023 Parana Time, Vrat Katha, Puja vidhi, Shubh Muhurat: श्रावण पुत्रदा एकादशी सावन शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ती है इसे पवित्रा एकादशी (Pavitra Ekadashi 2023) भी कहते हैं। जानिए 2023 में कब है सावन पुत्रदा एकादशी व्रत, क्या रहेगी पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, महत्व, मंत्र, कथा और उपाय।

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Putrada Ekadashi Vrat Katha, Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Mahatva (Pavitra Ekadashi Vrat Katha): श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। ये व्रत संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। कहते हैं इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति का वरदान प्राप्त होता है। साथ ही समस्त पापों का नाश होता है और मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। जानिए श्रावण पुत्रदा एकादशी की डेट, मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और व्रत कथा।

पुत्रदा एकादशी व्रत पारण समय 2023 (Putrada Ekadashi Parana Time 2023)

सावन पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण 28 अगस्त की सुबह 05 बजकर 57 मिनट से 08 बजकर 31 मिनट तक के बीच किया जा सकेगा। वहीं पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय शाम 06 बजकर 22 मिनट का है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी 2023 मुहूर्त (Sawan Putrada Eakadashi 2023 Muhurat)

  • श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत 27 अगस्त 2023 दिन रविवार को रखा जाएगा।
  • पंचांग अनुसार एकादशी तिथि का प्रारंभ 26 अगस्त की रात 12 बजकर 08 मिनट पर होगा और इसकी समाप्ति 27 अगस्त की रात 09 बजकर 32 मिनट पर होगी।
  • एकादशी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 05 बजकर 56 मिनट से 07 बजकर 16 मिनट तक रहेगा।
  • इस दिन रवि योग सुबह 05 बजकर 56 मिनट से सुबह 07 बजकर 16 मिनट तक रहेगा।

श्रावण पुत्रदा एकादशी पूजा विधि (Sawan Putrada Ekadashi Puja Vidhi)

  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर भगवान विष्णु का स्मरण करें।
  • फिर स्नान कर साफ कपड़े पहन लें।
  • इसके बाद श्री विष्णु की मूर्ति स्थापित करके व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराएं और उन्हें नए कपड़े अर्पित करें।
  • इसके बाद भगवान विष्णु को नैवेद्य का भोग लगाएं।
  • ध्यान रखें कि श्री विष्णु की पूजा में तुलसी, मौसमी फल और तिल का प्रयोग अवश्य करें।
  • भगवान विष्णु के समक्ष धूप, दीप जलाएं और विधिवत उनकी पूजा करें।
  • फिर शाम के समय भी विष्णु भगवान की पूजा करें और श्रावण पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा सुनें।
  • विष्णु भगवान की आरती करें।
  • श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत निराहार रखा जाता है।
  • शाम में पूजा के बाद फलाहार ग्रहण करें।
  • इस दिन रात में भजन कीर्तन जागरण किया जाता है।
  • इसके बाद अगले दिन ब्राह्मणों को खाना खिलाकर उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार दान दें।
  • इसके बाद ही खुद भोजन करके व्रत का पारण करें।

श्रावण पुत्रदा एकादशी का महत्व (Sawan Putrada Ekadashi Significance)

हिंदू धार्मिक मान्यताओं अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं ये व्रत निसंतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति का वरदान देता है। मान्यता है कि अगर निसंतान दंपत्ति इस दिन पूरी आस्था के साथ व्रत करें तो उन्हें संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है। इस व्रत के बारे में यह भी कहा जाता है कि जो कोई इस व्रत की कथा पड़ता है, सुनता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी मंत्र (Sawan Putrada Ekadashi Mantra)

1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
2. श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
3. ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
4. ॐ विष्णवे नम:
5. ॐ हूं विष्णवे नम:

श्रावण एकादशी पर क्या न करें (Sawan Putrada Ekadashi Par Kya Na Kare)

  • इस व्रत से एक दिन पहले यानि दशमी की रात में शहद, चना, साग, मसूर की दाल और पान इत्यादि चीजों का सेवन न करें।
  • एकादशी के दिन झूठ बोलने या कोई भी बुरा काम करने से बचना चाहिए।
  • दशमी के दिन मांस और शराब का सेवन भूलकर भी न करें।
  • एकादशी के दिन चावल और बैंगन भी न खाएं।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha)

द्वापर युग में महिष्मतीपुरी का राजा महीजित रहता था जो बड़ा ही शांति एवं धर्म प्रिय था। लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। राजा के शुभचिंतकों ने महामुनि लोमेश से इस परेशानी का उपाय पूछा तो महामुनि ने बताया कि राजन पूर्व जन्म में एक अत्याचारी और धनहीन वैश्य थे। एकादशी के दिन दोपहर के समय वे प्यास से व्याकुल होकर एक जलाशय पर पहुंचे जहां एक प्यासी गाय को पानी पीते देखकर उन्होंने उसे रोक दिया और स्वयं पानी पीने लगे। राजा का ऐसा करना धर्म के अनुसार सही नहीं था। अपने पिछले जन्म के पुण्य कर्मों के फलस्वरूप वो इस जन्म में राजा तो बने, किंतु उस एक पाप के कारण संतान विहीन हैं। महामुनि ने राजा के शुभचिंतकों को श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत की महिमा बताई और कहा कि अगर आप सभी विधि विधान इस व्रत को करके इसका पुण्य राजा को देंगे, तो निश्चय ही उन्हें संतान रत्न की प्राप्ति होगी। मुनि के निर्देशानुसार प्रजा के साथ-साथ राजा ने भी यह व्रत रखा जिसके परिणामस्वरूप कुछ समय बाद रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। कहते हैं तभी से इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाने लगा।
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