Shravan Putrada Ekadashi Vrat Katha: श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा विस्तार से यहां पढ़ें

Sawan Putrada Ekadashi Vrat Katha: श्रावण पुत्रदा एकादशी साल में आने वाली महत्वपूर्ण एकादशी तिथियों में से एक मानी जाती है। यहां आप जानेंगे आज की एकादशी (Aaj Ki Eakdashi Vrat Katha) यानि पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा और इसका महत्व।

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Sawan Putrada Ekadashi Vrat Katha: आज की एकादशी की व्रत कथा

Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha, Aaj Ki Ekadashi Vrat Katha (आज की एकादशी व्रत कथा): श्रावण पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा के अनुसारद्वापर युग में महिष्मति नाम की नगरी में महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन उसका कोई पुत्र नहीं था जिसकी वजह से वो दुखी रहता था। उसका मानना था, कि जिसके संतान न हो उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए लेकिन फिर भी उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।
एक दिन राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा: हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में सिर्फ न्याय से उपार्जन किया हुआ धन है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना और न किसी दूसरे की धरोहर अपने नाम की, अपनी प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सज्जनों की सदा पूजा करता हूँ। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरी कोई संतान नहीं है। सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूं, इसका क्या कारण है?
राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मं‍त्री और प्रजा के प्रतिनिधि वन में गए। जहां राजा की कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे। (एकादशी की पूजा कैसे करें?)
एक आश्रम में उन्होंने धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा। सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग यहां किस कारण से आए हैं? कृप्या करके मुझे बताइए मैं नि:संदेह आप लोगों का हित करूंगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो।
लोमश ऋषि के वचन सुनकर सब लोग बोले: हे महर्षे! हमारे राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करते हैं। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी हैं। उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उनकी प्रजा हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएं।
प्रजा की बात सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने की वजह से इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गांव से दूसरे गांव व्यापार करने जाया करता था।
एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वो भूखा-प्यासा जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तुरंत ही ब्याही हुई प्यासी गाय जल पी रही थी। राजा उस प्यासी गाय को हटाकर स्वयं जल पीने लगा, इसी वजह से राजा को यह दु:ख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह इस जन्म में राजा हुआ और प्यासी गाय को जल पीते हुए हटाने के कारण उसे इस जन्म में पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ा। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए।
लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, अगर तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि में जागरण करो तो इससे राजा का यह पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी।
लोमश ऋषि के कहे अनुसार श्रावण शुक्ल एकादशी में सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया। इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल सभी ने राजा को दे दिया। उस पुण्य के प्रभाव से ही रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने बाद उन्हें एक बड़ा तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ।
इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी पड़ा। अत: ये व्रत संतान सुख की इच्छा रखने वालों के लिए सबसे खास माना जाता है। कहते हैं इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में सारे सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है। ॥ जय श्री हरि ॥
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