Sawan Shivratri Vrat Katha: सावन शिवरात्रि व्रत कथा को पढ़ने से भोलेनाथ का मिलेगा आशीर्वाद
Sawan Shivratri Vrat Katha in Hindi 2023: सावन शिवरात्रि का त्योहार श्रावण महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन शिव भक्त व्रत रख सावन व्रत कथा का पाठ करते हैं। यहां देखिए शिवरात्रि व्रत कथा।
Sawan Shivratri Vrat Katha In Hindi
Sawan Shivratri Vrat Katha in Hindi 2023: सावन शिवरात्रि व्रत का सनातन धर्म में विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता है इस व्रत को करने से मनुष्य जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं और भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस साल सावन शिवरात्रि व्रत 15 जुलाई दिन शनिवार को पड़ा है। इस दिन भगवान शिव की विधि विधान पूजा करने के बाद श्रावण शिवरात्रि की व्रत कथा (Sawan Shivratri Vrat Katha) जरूर पढ़ें। यहां देखिए सावन शिवरात्रि की संपूर्ण कथा।
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सावन शिवरात्रि व्रत कथा (Sawan Shivratri Vrat Katha In Hindi)
सावन शिवरात्रि की कथा अनुसार एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जो पशुओं की हत्या करके अपना परिवार चलाता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन कर्ज न चुका सकने के कारण क्रोधित साहूकार ने उसको बंदी बना लिया था। संयोग से उस दिन शिवरात्रि का पावन पर्व था।
बंदी रहते हुए शिकारी शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा, वहीं उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। शाम के समय साहूकार ने उसे बुलाया और ऋण चुकाने के लिए पूछा तो शिकारी ने कर्ज अगले दिन चुकाने का वादा किया। साहुकार ने उसकी बात मान ली और उसे जाने दिया। शिकारी जंगल में शिकार के लिए निकला। दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण शिकारी भूख-प्यास से व्याकुल हो गया था।
सूर्यास्त के बाद वो एक जलाशय के समीप गया और वहां एक घाट के किनारे स्थित पेड़ पर थोड़ा सा जल पीने के लिए लेकर चढ़ गया। शिकारी को पूरी उम्मीद थी कि कोई न कोई जानवर अपनी प्यास बुझाने इस घाट के पास ज़रूर आयेगा। शिकारी बेल-पत्र के पेड़ पर था और उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग भी था जो बेलपत्रों से ढका था। भूख और प्यास से थका वो उसी मचान पर बैठ गया।
शिकारी ने मचान बनाते समय जैसे ही टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर जा गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे रहकर शिकारी का अनजाने में शिवरात्रि का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।
इस तरह से एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक एक गर्भिणी मृगी तालाब के किनारे पानी पीने के लिए पहुंची। शिकारी ने उसे देखकर धनुष पर तीर चढ़ा दिया ज्यों ही वो प्रत्यंचा खींचने लगा उसके हाथ के धक्के से कुछ पत्ते और जल की कुछ बूंदे नीचे बने शिवलिंग पर गिर गईं और अनजाने में ही शिकारी की पहले प्रहर की पूजा भी संपन्न हो गई।
मृगी बोली, हे शिकारी मैं गर्भिणी हूं शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या का पाप अपने सिर पर ना लो। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास वापस आ जाऊंगी, तब मार लेना मुझे। शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी को जाने दिया।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी वहां से निकली। शिकारी ने उसे देखकर धनुष पर बाण चढ़ा दिया। इस तरह से शिकारी से अनजाने में कुछ और बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर जा गिरे और अनायास ही शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी हो गयी।
मृगी ने विनम्रतापूर्वक शिकारी से निवेदन किया, कि मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही वापस आ जाऊंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया।
दो शिकार को खोकर शिकारी चिंता में पड़ गया था। रात्रि का आखिरी पहर बीतने को था कि तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी ने उसे देख तुरंत धनुष पर तीर चढ़ा दिया वो तीर छूटने को ही था कि मृगी बोली, मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।
शिकारी ने कहा मैं सामने आए शिकार को कैसे जानें दूं। इससे पहले भी मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्याकुल होंगे। मृगी ने शिकारी की बात सुनकर कहा कि जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, वैसे ही मुझे भी इनकी फिक्र है इसलिए मेरे बच्चों का सोचते हुए मुझे थोड़ी देर के लिए जीवनदान दे दो। मेरा विश्वास करो, मैं इन्हें इनके पिता को सौपकर तुम्हारे पास तुरंत लौट आऊंगी। मृगी की बात सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उसे भी जाने दिया।
शिकार न कर पाने के कारण परेशान होकर पेड़ पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। इस तरह से उसके तीसरे प्रहर की पूजा भी स्वतः ही संपन्न हो गयी। पौ फटने को हुई तो एक मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोचा कि चाहे कुछ भी हो जाए इस बार वो शिकार करके ही रहेगा।
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग ने विनीत स्वर में कहा यदि तुमने मुझसे पहले आने वाली तीन मृगियों और उनके छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी शीघ्र मार दो ताकि मुझे उनके वियोग का दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ कुछ समय के लिए जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे पास उपस्थित हो जाऊंगा।
मृग की बात सुनकर शिकारी ने मृग को सारी बात सुना दी। तब मृग ने कहा, मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, वो मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन पर विश्वास करके उन्हें छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सभी के साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।
जाने अनजाने में ही सही उपवास, रात्रि-जागरण और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय अब निर्मल हो गया था। उसके हाथ से धनुष छूट गया और उसने मृग को जाने दिया। थोड़ी देर में वह मृग सपरिवार शिकारी के सामने उपस्थित हो गया किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता और सामूहिक प्रेम भावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि महसूस हुई। उसके नेत्रों से आंसू निकलने लगे। उसने मृग परिवार को जाने दिया और अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से सदा के लिए हटा दिया।
शिकारी के ऐसा करने पर भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उसे अपने दर्शन दिया और उसे सुख-समृद्धि का वरदान देकर गुह नाम प्रदान किया। ये वही गुह था जिसके साथ भगवान श्री राम ने मित्रता की थी। इस प्रकार शिवरात्रि पूजन पौराणिक व्रत कथा समाप्त हुई। ॐ नमः पार्वती पतये हर हर महादेव!
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