Sawan Somvar Vrat Katha 2024
Sawan Somvar Vrat Katha 2024: सावन महीने के तीसरे सोमवार के दिन भगवान शिव जी विधिपूर्वक पूजा की जाती है। सावन मास के सोमवार का व्रत सुखी वैवाहिक जीवन के लिए और परिवार की सुख, समृद्धि के लिए बहुत ही उत्तम माना जाता है। सावन सोमवार का व्रत रखने से साधक की सारी इच्छाओं की पूर्ति होती है। सावन सोमवार का व्रत करने से और शिव जी की सच्चे मन से पूजा करने से साधक को मनचाहे वर की भी प्राप्ति होती है। आज यानि 5 अगस्त को सावन सोमवार का तीसरा व्रत रखा जा रहा है। इस दिन सावन सोमवार की व्रत कथा का पाठ करना बहुत ही शुभ होता है।
Sawan Somvar Vrat Katha 2024 (सावन के तीसरे सोमवार की व्रत कथा)
प्राचीन कथा के अनुसार एक नगर में एक साहूकार रहता था। उस साहुकार के पास धन और दौलत की कोई कमी नहीं थी, लेकिन साहुकार की कोई भी संतान नहीं थी। साहुकार भगवान भोलेनाथ का परम भक्त था। वो दिन रात शिव जी की पूजा करता था। साहुकार की भक्ति को देखते हुए माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा हे महादेव साहुकार आपकी बहुत भक्ति करता है। आप इसकी मनोकामना को पूरी क्यों नहीं कर देते हैं। इसकी कोई संतान नहीं है इसके कारण ये बहुत दुखी है। इसको संतान दे दीजिए। शिव जी ने कहा पार्वती उसकी कुंडली में संतान योग नहीं है, यदि उसको पुत्र की प्राप्ति हो भी जाए तो वो पुत्र 12 साल से अधिक जीवित नहीं रहेगा। शिव जी के ये सारी बातें साहुकार भी सुन रहा था। ये बात सुनकर साहुकार को खुशी भी हुई और दुख भी हुआ, लेकिन फिर भी वो शिव भक्ति में लगा रहा। एक दिन साहुकार की पत्नी गर्भवती हुई। उसने एक बालक को जन्म दिया। वो बालक देखते ही देखते 11 साल का हो गया। साहुकार ने अपने पुत्र को शिक्षा प्राप्त करवाने के लिए उसके माना के पास काशी भेज दिया। इसके साथ ही साहुकार ने अपने साले को कहा कि रास्ते में ब्राह्मण को भोजन करवा दे।
काशी के रास्ते में एक राजकुमारी का विवाह हो रहा था। जिसका होने वाला पति के आंख से काना था। दूल्हे के पिता ने जब साहुकार के बेटे को देखा तो उसके मन में ख्याल आया कि क्यों ना अपने बेटे को घोड़ी से हटाकर इस बालक को घोड़ी पर बिठा दिया जाएगा और विवाह के बाद अपने बेटे को ले आया जाए। किसी तरह राजकुमारी और साहुकार के बेटे का विवाह हो गया। साहुकार के बेटे ने राजकुमारी की चुनरी पर लिख दिया कि तुम्हारा विवाह मेरे साथ हो रहा है, लेकिन मैं असली राजकुमार नहीं हूं। जो असली राजकुमार है वो एक आंख से काना है, लेकिन विवाह पूरा हो गया था, इसलिए राजकुमारी की विदाई असली वर के साथ नहीं हुई।
विवाह के साथ साहुकार का बेटा अपने मामा के साथ काशी चला गया। एक दिन काशी में यज्ञ के दौरान भांजा बहुत देर कमरे से बाहर नहीं आया। जब उसके मामा ने अंदर जा के देखा तो उसका भांजा मृत पड़ा था। सबने रोना- धोना शुरू कर दिया। माता पार्वती ने शिव जी से पूछा हे प्रभु ये कौन रो रहा है।
तभी उसे पता चलता है कि यह भोलेनाथ के आर्शीवाद से जन्मा साहूकार का पुत्र है। तब माता पार्वती ने कहा स्वामी इसे जीवित कर दीजिए नहीं तो रोते-रोते इसके माता-पिता भी मर जाएंगे। तब भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती इसकी आयु इतनी ही थी जिसे वह पूरा कर चुका है, लेकिन माता पार्वती के बार-बार कहने पर भोलेनाथ ने उसे जीवित कर दिया। साहूकार का बेटा ऊं नम: शिवाय कहते हुए जीवित हो उठा और सभी ने शिवजी को धन्यवाद किया।
उसके बाद साहुकार ने अपने नगर वापस जानें का फैसला लिया। रास्ते में वो नगर पड़ा जहां साहुकार के बेटे का विवाह राजकुमारी से हुआ था। राजकुमारी ने अपने वर को पहचान लिया। राजा ने अपनी बेटी को बहुत सारा धन - दौलत देकर विदा किया।
साहूकार अपने बेटे और बहु को देखकर बहुत खुश हुआ। उसी रात साहूकार को सपने में शिवजी ने दर्शन दिया और कहा तुम्हारी भक्ति से मैं प्रसन्न हूं। इस कारण तुम्हारे पुत्र को दुबारा जन्म दिया, इसलिए तब से ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति भगवान शिव की पूजा- अर्चना करेगा और इस कथा का सच्चे मन से पाठ करेगा। उसकी सारी मनोकामना पूरी होगी और उसका भंडार भरेगा।