सावन सोमवार की व्रत कथा और कहानी हिंदी में यहां देखें

आज अधिक मास का सावन सोमवार है। इस दिन व्रत रखने वाले लोग जरूर पढ़ें इस व्रत की ये पावन कथा।

sawan somvar vrat katha

Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi

अमरपुर नामक नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। उस व्यापारी के पास धन-धान्य मान सम्मान की कोई कमी नहीं थी लेकिन फिर भी वो व्यापारी दुखी रहता है। दरअसल उस व्यापारी की कोई संतान नहीं थी। पुत्र प्राप्ति की इच्छा से वो व्यापारी सोमवार व्रत करता था। शाम में व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान महादेव की विधि विधान पूजा करता था।
उस व्यापारी की भगवान शिव के प्रति आस्था देख एक दिन माता पार्वती महादेव से बोलीं- 'हे स्वामी, ये व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। आप इसकी मनोकामना क्यों नहीं पूरी करते। इस पर भगवान शिव ने कहा- 'हे पार्वती! इस संसार में सभी को उनके कर्म के अनुसार ही फल मिलता है। जिसके भाग्य में जो लिखा है वो उसे मिलता है। इस व्यापारी के भाग्य में संतान का सुख नहीं है।
लेकिन पार्वतीजी फिर भी नहीं मानीं। उन्होंने कहा कि- 'नहीं प्राणनाथ! आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी होगी। ये ना जाने कितने दिन से सावन सोमवार का व्रत कर रहा है। आपको इसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान देना ही होगा। पार्वती जी के इतना आग्रह करने पर भगवान शिव ने कहा- 'मैं इसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं। लेकिन इसका पुत्र सिर्फ 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।'
भगवान शिव ने उस व्यापारी के सपने में आकर उसे संतान प्राप्ति का वरदान दिया और साथ में उन्होंने उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की भी बात बता दी। संतान प्राप्ति का वरदान पाकर व्यापारी खुश तो हुआ लेकिन पुत्र अधिक समय तक जीवित नहीं रहेगा ये सोचकर उसकी खुशी मायुसी में बदल गई। भगवान शिव के आशीर्वाद से उस व्यापारी के घर में कुछ दिन बात बच्चे की किलकारी गूंज उठी। व्यापारी ने धूमधाम से पुत्र-जन्म का समारोह मनाया।
व्यापारी ने अपने पुत्र का नाम अमर रखा। अमर जब 12 वर्ष का हुआ तो उस व्यापारी ने उसे शिक्षा लेने के लिए वाराणसी भेजने का निर्णय लिया। व्यापारी ने अमर के मामा दीपचंद को बुलाया और कहा कि इनके साथ चले जाएं। पिता के कहने पर अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए निकल पड़ा। दोनों मामा-भतीजा जहां-जहां जाते वहां यज्ञ करते जाते।
कुछ दिनों बाद यात्रा करते हुए अमर और दीपचंद एक नगर पहुंचे। उस नगर में राजा की कन्या का विवाह होना था। कुछ ही देर में बारात आ गई लेकिन लड़के का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने की वजह से भयभीत था। उसे मन ही मन ये भय सता रहा था कि कहीं राजा को इस बात का पता ना चल जाए कि उसका बेटा काना है नहीं तो राजा अपनी पुत्री नहीं देंगे।
वर के पिता की अचानक से नजर उस व्यापारी के बेटे अमर पर पड़ी। अमर को देखकर उसके मन में विचार आया कि क्यों न मैं इसी सुंदर लड़के से राजकुमारी का विवाह करा दूं। बाद में इसे धन देकर भेज दूंगा और राजा की कन्या को अपनी बहू बनाकर घर ले आऊंगा। लड़के के पिता ने ये प्रस्ताव अमर और उसके मामा के सामने रखा।
अमर के मामा दीपचंद ने धन के लालच में उनकी बात स्वीकार कर ली। अमर दुल्हे के कपड़े पहनकर तैयार हो गया और उसका विवाह राजकुमारी चंद्रिका से संपन्न कराया गया। लेकिन अमर को राजकुमारी से झूठ बोलना ठीक नहीं लग रहा था ऐसे में उसने जाते समय राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया- 'राजकुमारी चंद्रिका, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था और अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह एक आंख से काना है।'
राजकुमारी ने जैसे ही अपनी ओढ़नी पर लिखी बात पढ़ी उसने उस काने लड़के के साथ जाने को मना कर दिया। इस तरह से बारात वापस लौट गई और दूसरी तरफ अमर वाराणसी पहुंच गया। अमर ने गुरुकुल में शिक्षा लेना शुरू कर दिया। जब अमर 16 साल का हुआ तो उसने एक बड़ा यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति के बाद विधि विधान उसने ब्राह्मणों को भोजन कराया और दान-दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर विदा किया। रात में जब अमर सोने गया तो शयनावस्था में ही उसकी मृत्यु हो गई। सुबह जब उसके मामा ने अमर को मृत पाया तो वो रोने-पीटने लगे।
अमर के मामा के रोने के स्वर समीप से गुजर रहे भगवान शिव और माता पार्वती ने सुन लिए। माता पार्वती ने कहा भगवान मुझसे इस व्यक्ति का कष्ट सहा नहीं जा रहा कृप्या इसका दुख दूर कर दीजिए। भगवान शिव ने पार्वतीजी से कहा कि ये वही बालक है जिसे मैंने 16 वर्ष तक ही जीवित रहने का वरदान दिया था अब उसका समय पूरा हो चुका हैय़
इसी की मृत्यु के कारण इसका मामा दुखी है और विपाल कर रहा है। लेकिन फिर भी पार्वतीजी नहीं मानी उन्होंने शिव जी से निवेदन किया- 'हे प्राणनाथ! अगर आपने इस बालक को जीवित नहीं किया तो इसके माता-पिता भी अपने प्राण त्याग देंगे। इसके पिता आपके इतने बड़े भक्त हैं विधि विधान सावन सोमवार के व्रत रखते हैं। ऐसे में आपको इस लड़के को प्राण दान देना ही होगा। माता पार्वती के कहने पर भगवान शिव ने लड़के को जीवित कर दिया।
शिक्षा समाप्त कर अमर मामा के साथ अपने नगर वापस चल दिया। रास्ते में वो उसी नगर में आया जहां उसका विवाह राजकुमारी के साथ हुआ था। उस नगर के राजा ने अमर को पहचान लिया और वो उसे अपने महल में लेकर आ गए। राजा अमर और उसके मामा को राजा ने बहुत सारा धन और वस्त्र देकर अपनी बेटी को उनके साथ विदा कर दिया।
उधर व्यापारी और उसकी पत्नी दोनों ने प्रतिज्ञा ली थी कि अगर उनका बेटा जीवित वापस नहीं लोटा तो वो भी अपने प्राण त्याग देंगे। दोनों भूखे-प्यासे रहकर अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने अपने बेटे के आने का समाचार सुना उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
व्यापारी और उसकी पत्नी तुरंत पूजा की थाल लेकर नगर के द्वार पर पहुंचे। अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर वो और भी ज्यादा खुश हो गए। उन्होंने अपनी पुत्रवधू चंद्रिका और अपने पुत्र अमर का भव्य स्वागत किया। उसी रात भगवान शिव उस व्यापारी के सपने में फिर से आए और कहा कि 'हे श्रेष्ठी! मैं तेरे सोमवार के व्रत करने से प्रसन्न हूं इसलिए तेरे पुत्र को लंबी आयु का वरदान दिया है।'
अत: जो भी व्यक्ति सावन सोमवार का विधिवत व्रत करता है और इस व्रत कथा को सुनता है उसके समस्त दुख उस व्यापारी की तरह दूर हो जाते हैं।
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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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