Sawan Somvar Vrat Katha: सावन सोमवार व्रत कथा पढ़ने से हर दुख होगा दूर
Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi: आज यानि 28 अगस्त 2023 को सावन का आखिरी सोमवार है। साथ ही आज के दिन प्रदोष व्रत का शुभ संयोग भी बना है। यहां आप जानेंगे सावन सोमवार व्रत की कथा और इसका महत्व।
Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi
Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi: श्रावण सोमवार व्रत की कथा के अनुसार एक नगर में एक धनी व्यापारी अपने परिवार संग रहता था। उस व्यापारी के पास किसी चीज की कमी नहीं थी। नगर का हर व्यक्ति उसका सम्मान करता था। सबकुछ होने के बाद भी उसके जीवन में किसी एक चीज का अभाव था जिसकी वजह से वो हमेशा चिंता में डूबा रहता था। दरअसल व्यापरी के दुख का कारण था उसकी कोई संतान न होना। उस व्यापारी के मन में यही ख्याल आता था कि उसकी मृत्यु के बाद उसके व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा। संतान प्राप्ति इच्छा से व्यापारी विधि विधान सोमवार व्रत करता था। शाम के समय व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के समक्ष घी का दीपक जलाता था।
व्यापारी की भगवान शिव के प्रति गहरी आस्था देखकर एक दिन माता पार्वती भोलेनाथ से बोलीं- 'हे प्राणनाथ, ये व्यापारी आपका परम भक्त है। कई दिनों से विधि विधान सोमवार व्रत कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना पूर्ण करें।'
भगवान शिव ने मुस्कराते हुए कहा- 'हे पार्वती! इस संसार में हर व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार ही फल प्राप्त होता है अत: जिसके भाग्य में जो लिखा है उसे वही मिलता है। लेकिन इसके बाद भी पार्वतीजी नहीं मानीं। उन्होंने आग्रह किया- 'नहीं प्राणनाथ! आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी होगी। यह आपका अनन्य भक्त है। आपको इसे संतान-प्राप्ति का वरदान देना ही होगा।'
पार्वती जी के इतना कहने पर भगवान शिव ने व्यापारी के सपने में आकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया। साथ ही ये भी कहा कि उसका पुत्र केवल 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगा। भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र के कम उम्र तक जीवित रहने की बात सुनकर वो उसकी खुशियों का तुरंत नाश भी हो गया। लेकिन इसके बावजूद भी व्यापारी पहले की तरह ही सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ दिनों बाद उसके घर में अति सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ।
व्यापारी पुत्र की अल्पायु का रहस्य जानता था इसलिए वो मन ही मन दुखी रहता था। यह रहस्य उसने कभी किसी को नहीं बताया। विद्वान ब्राह्मणों ने उस पुत्र का नाम अमर रखा। जब अमर 12 वर्ष का हुआ तो व्यापारी ने अपने पुत्र को उसके मामा के साथ शिक्षा ग्रहण करने के लिए वाराणसी भेजने का निश्चय किया। इस तरह से अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए निकल पड़ा। रास्ते में वो दोनों जहां-जहां भी ठहरते वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाते।
लंबी यात्रा के बाद अमर और दीपचंद एक ऐसे नगर में पहुंचे जहां उस नगर के राजा की कन्या का विवाह था। राजा की कन्या की बारात आ गई लेकिन उस कन्या के होने वाले पति का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण दुखी था। उसे डर था कि कहीं अगर राजा को इस बात का पता चल गया तो वो अपनी पुत्री का विवाह करने से इंकार कर देगा।
वर के पिता की नजर अमर पर पड़ी तो उसके दिमाग में विचार आया कि क्यों ना मैं इसे अपना बेटा बनाकर राजकुमारी का इसके साथ विवाह करा दूं और विवाह के बाद इस लड़के को धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने बेटे के साथ नगर ले आऊंगा।
वर के पिता ने ये प्रस्ताव अमर और उसके मामा दीपचंद के सामने रखा। दीपचंद ने धन के लालच में उसकी बात स्वीकार कर ली। अमर को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी चंद्रिका से उसका विवाह करा दिया गया। राजा ने बहुत-सा धन देकर राजकुमारी को विदा किया।
अमर ने लौटते समय राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया- 'राजकुमारी चंद्रिका, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था, मैं वाराणसी शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूं। अब तुम्हें जिस लड़के की पत्नी बनना पड़ेगा, वह एक आंख से काना है।'
जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने को मना कर दिया। उधर अमर वाराणसी पहुंच गया और वहां उसने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। जब अमर 16 वर्ष का हुआ तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर उसने ब्राह्मणों को भोजन कराया और अन्न और वस्त्र दान किए। रात को अमर जब सो रहा था तो शयनावस्था में ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। सुबह जब उसके मामा अमर को देखने आये तो उसे मृत देखकर रोने-पीटने लगा।
मामा के रोने के स्वर पास से ही गुजर रहे भगवान शिव और माता पार्वती तक पहुंच गए। पार्वतीजी ने भगवान से कहा- 'प्राणनाथ! मुझसे इस व्यक्ति का दर्द सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें।'
भगवान शिव ने पार्वतीजी से कहा हे पार्वती! ये व्यक्ति उसी धनी व्यापरी के लड़के की मृत्यु पर रो रहा है जिसे मैंने 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसलिए इसकी मृत्यु हो गई। पार्वतीजी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया- 'हे प्राणनाथ! आप इस लड़के को जीवित करें। नहीं तो इसके माता-पिता भी अपने प्राण त्याग देंगे। इस लड़के का पिता तो आपका परम भक्त है। पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वो जीवित हो गया।
शिक्षा समाप्त कर अमर मामा के साथ अपने नगर वापस चल दिया। दोनों फिर से उस नगर में पहुंचे जहां अमर का विवाह राजकुमारी के साथ हुआ था। उस नगर में भी अमर ने यज्ञ का आयोजन किया। राजा ने अमर को पहचान लिया। राजा अमर और उसके मामा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत सारा धन और वस्त्र देकर अपनी बेटी को अमर के साथ विदा किया।
दीपचंद ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की जानकारी अमर के माता-पिता तक पहुचाई। बेटे अमर के जीवित वापस लौटने की बात सुनकर व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। व्यापारी और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन दोनों ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उनका बेटा जीवित वापस नहीं आया तो वो दोनों भी अपने प्राण त्याग देंगे।
व्यापारी और उसकी पत्नी नगर के द्वार पर पहुंचे और अपने बेटे और अपनी पुत्रवधू चंद्रिका का शानदार स्वागत किया। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी को सपने में आकर कहा कि- 'हे श्रेष्ठी! मैंने तेरे विधि विधान सोमवार व्रत करने और व्रतकथा सुनने से तेरे पुत्र को लंबी आयु का वरदान दिया है। व्यापारी ये सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। अत: सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियां लौट आईं। शास्त्रों में लिखा है कि जो भी व्यक्ति सोमवार का विधिवत व्रत करता है और इसकी कथा सुनता है उनकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।
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