Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi: सावन सोमवार व्रत कथा पढ़ने से महादेव की बरसेगी कृपा

Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi: आज सावन का दूसरा सोमवार (Sawan Ka Dusra Somvar) है। इस दिन शुभ मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करें और इस दौरान सावन सोमवार व्रत कथा का पाठ जरूर करें।

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Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi: सावन सोमवार की व्रत कथा

Sawan Ke Somvar Vrat Ki Kahani In Hindi: सावन सोमवार का सनातन धर्म में खास महत्व माना जाता है। इस दिन शिव भक्त महादेव को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखते हैं। मान्यता है सावन के प्रत्येक सोमवार के व्रत करने से 16 सोमवार व्रत का फल मिल जाता है। श्रावण सोमवार व्रत (Shravan Somvar Vrat) सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना गया है। इस दिन सच्चे मन से व्रत रखा भगवान शिव की विधि विधान पूजा करनी चाहिए। साथ ही सावन सोमवार व्रत की कथा (Sawan Somvar Vrat Ki Katha) भी जरूर पढ़ें।

Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi (सावन सोमवार की संपूर्ण व्रत कथा)

एक बार की बात है अमरपुर नाम का नगर था जहां एक धनी व्यापारी रहता था। नगर में हर कोई उस व्यापारी का मान-सम्मान करता था। लेकिन इसके बाद भी वो व्यापारी और उसकी पत्नी दुखी रहते थे क्योंकि उनकी संतान नहीं थी।
पुत्र प्राप्ति की इच्छा से वो व्यापारी सोमवार व्रत करता था। शाम के समय व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव की विधि विधान पूजा करता था। उस व्यापारी की भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन माता पार्वती ने महादेव से कहा- 'हे स्वामी, ये व्यापारी आपका परम भक्त है। आप इस व्यापारी की मनोकामना पूर्ण करें।'
भगवान शिव ने मुस्कराते हुए कहा- 'हे पार्वती! इस संसार में सभी को उनके कर्म के अनुसार ही फल की प्राप्ति होती है। जिसके भाग्य में जो लिखा है उसे वही मिलता है। लेकिन पार्वतीजी नहीं मानीं। उन्होंने फिर आग्रह किया कि- 'नहीं प्राणनाथ! आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी होगी। क्योंकि ये प्रति सोमवार विधिवत व्रत रखता है। आपको इसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान अवश्य देना चाहिए।
पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने कहा- 'मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं। लेकिन वो 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।' उसी रात भगवान शिव ने उस व्यापारी को सपने में दर्शन दिए और कहा कि मैं तुम्हें पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं लेकिन ध्यान रहे कि तुम्हारा पुत्र सिर्फ 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगा। कुछ महीने बाद उस व्यापारी के घर में अति सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ। व्यापारी ने धूमधाम से पुत्र-जन्म का समारोह मनाया।
लेकिन व्यापारी मन ही मन दुखी था क्योंकि वो अपने पुत्र की अल्पायु का रहस्य जानता था। उस पुत्र का नाम अमर रखा गया। जब अमर 12 वर्ष का हुआ तो उसे शिक्षा लेने के लिए वाराणसी भेजने का निश्चय हुआ। व्यापारी ने अमर के मामा दीपचंद को बुलाया और कहा कि आप अमर को शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी ले जाएं। पिता के कहने पर अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए निकल पड़ा। रास्ते में वो जहां भी जाता यज्ञ करते जाता।
इस तरह से यात्रा करते हुए अमर और दीपचंद एक नगर में पहुंचे। उस नगर में राजा की कन्या का विवाह होना था जिसके लिए पूरा राज्य सजाया गया था। कुछ ही देर में राजा की कन्या की बारात आ गई लेकिन लड़के का पिता अपने बेटे के काने होने के कारण दुखी था। उसे भय था कि कहीं राजा को इस बात का पता ना चल जाए नहीं तो वो अपनी पुत्री मेरे पुत्र को नहीं देगा।
वर का पिता इस बात को लेकर चिंतित ही था कि उसकी नजर अमर पर पड़ी। अमर को देखकर उसके दिमाग में एक विचार आया। कि क्यों न मैं इस लड़के से राजा की कन्या का विवाह करा दूं बाद में मैं इसे ढेर सारा पैसा देखर भेज दूंगा और कन्या को अपने घर ले आऊंगा। उसने ऐसा प्रस्ताव अमर और उसके मामा के सामने रखा।
अमर के मामा दीपचंद ने धन के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। इस तरह से अमर का विवाह राजकुमारी चंद्रिका से संपन्न कराया गया। अमर जब लौट रहा था तो उसनेराजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया- 'राजकुमारी चंद्रिका, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था, लेकिन मैं वाराणसी में शिक्षा लेने जा रहा हूं। अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह एक आंख से काना है।'
राजकुमारी ने ये बात जानकर काने लड़के के साथ जाने को मना कर दिया। उधर अमर वाराणसी पहुंच गया। अमर ने गुरुकुल में शिक्षा लेना शुरू कर दिया। जब अमर 16 वर्ष का हुआ तो उसने बड़ा यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और दान किया। रात को अमर सोने के लिए चला गया और शयनावस्था में ही उसकी मृत्यु हो गई। सुबह जब उसके मामा ने अमर को मृत पाया तो उसे देखकर वो रोने-पीटने लगे।
समीप से ही भगवान शिव और माता पार्वती गुजर रहे थे माता पार्वती को अमर के मामा के रोने के स्वर बेहद कष्ट दे रहे थे। पार्वतीजी ने भगवान से कहा- 'प्राणनाथ! मुझसे इस व्यक्ति की पीड़ा सहन नहीं हो रही। आप कृप्या करके इसके दुख दूर कर दें।
भगवान शिव ने पार्वतीजी से कहा कि ये वही बालक है जिसे मैंने 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। अब इसकी मृत्यु हो गई। इसी की मृत्यु के कारण इसका मामा विलाप कर रहा है। लेकिन फिर भी पार्वतीजी नहीं मानी उन्होंने शिव जी से निवेदन किया- 'हे प्राणनाथ! आप इस लड़के को जीवित करें। नहीं तो इसके माता-पिता अपने प्राणों का का त्याग कर देंगे। पार्वती माता के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित कर दिया।
शिक्षा समाप्त कर अमर मामा के साथ अपने नगर वापस चल दिया। रास्ते में वो दोनों उस नगर में पहुंचे जहां अमर का राजकुमारी के साथ विवाह हुआ था। उस नगर में दोनों ने यज्ञ का आयोजन किया। उस नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा तो उन्होंने अमर को पहचान लिया। राजा अमर और उसके मामा को अपने महल में ले आया और उन्हें बहुत सारा धन और वस्त्र देकर अपनी बेटी को उनके साथ विदा किया।
उधर व्यापारी और उसकी पत्नी दोनों भूखे-प्यासे रहकर अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन दोनों ने प्रतिज्ञा ली थी कि अगर उन्हें उनके बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वो दोनों भी अपने प्राण त्याग देंगे।
जैसे ही उन दोनों को अपने बेटे के आने का समाचार मिला उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। व्यापारी और उसकी पत्नी नगर के द्वार पर पहुंचे। अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर वो और भी ज्यादा खुश हो गए। उन्होंने अपनी पुत्रवधू चंद्रिका और अपने पुत्र का शानदार स्वागत किया। उसी रात भगवान शिव उस व्यापारी के सपने में आए और कहा कि 'हे श्रेष्ठी! मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने से प्रसन्न हूं इसलिए तेरे पुत्र को लंबी आयु का वरदान दिया है।' ये सुनकर व्यापारी बेहद खुश हुआ।
शास्त्रों में लिखा है कि जो भी व्यक्ति सावन सोमवार का विधिवत व्रत करता है और व्रतकथा सुनता है उसके समस्त दुख दूर हो जाते हैं।
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