Sawan Somvar Vrat Katha: सावन सोमवार व्रत कथा पढ़ने से भगवान शिव की बरसेगी कृपा
Sawan Somvar Ki Katha In Hindi: मान्यता है कि सावन सोमवार व्रत कथा पढ़ने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और भगवान भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है। ऐसे में सावन सोमवार पर जरूर पढ़ें ये कथा।

Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi
Sawan Somvar Vrat Katha: आज सावन का चौथा सोमवार है। ऐसे में सावन सोमवार की पूजा में शिवलिंग पर गंगाजल या दूध जरूर चढ़ाएं। साथ ही बेलपत्र, चंदन, अक्षत, धतूरा, सफेद फूल, भांग, शमी के पत्ते, भस्म आदि चीजें भी भगवान शिव को जरूर अर्पित करें और मिठाई, शक्कर का भोग लगाकर सावन सोमवार व्रत कथा पढ़ें। यहां देखिए सावन सोमवार व्रत की कथा।
सावन सोमवार व्रत कथा (Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi)
अमरपुर नाम का नगर था जहां धनी व्यापारी रहता था। उसके पास सारी सुख सुविधाएं होने के बाद भी वो बहुत दुखी रहता था। ऐसा इसलिए क्योंकि उसके पास कोई संतान नहीं थी। संतान न होने के कारण उसके जीवन में सबकुछ होते भी वो चिंता में डूबा रहता था। संतान प्राप्ति की इच्छा से वो व्यापारी सोमवार व्रत करता था और भगवान शिव की विधि विधान पूजा करता था।
उस व्यापारी की भक्ति देख एक दिन माता पार्वती भगवान शिव से बोलीं- 'हे प्राणनाथ, ये व्यापारी आपका परम भक्त है। नियमित रूप से सोमवार का व्रत और पूजा कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना पूर्ण करें।'
भगवान शिव ने कहा- 'हे पार्वती! इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार ही फल की प्राप्ति होती है। अर्थात जिसके भाग्य में जो लिखा है उसे वही मिलता है। लेकिन फिर भी पार्वतीजी नहीं मानीं। उन्होंने फिर भोलेनाथ से आग्रह करते हुए कहा कि- 'नहीं प्राणनाथ! आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी होगी। यह आपका अनन्य भक्त है।'
पार्वतीजी के कहने पर भगवान शिव ने उस व्यापारी को सपने में आकर दर्शन दे कहा कि मैं तुम्हें पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं लेकिन तुम्हारा पुत्र 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगा। भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई लेकिन पुत्र की अल्पायु का सोचकर उसकी खुशी पल भर में ही चली गई। लेकिन इसके बावजूद भी व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ महीने बाद उसके घर में अति सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ। विद्वान ब्राह्मणों ने उस पुत्र का नाम अमर रखा।
जब अमर 12 साल का हुआ तो उसे शिक्षा प्राप्ति के लिए वाराणसी भेजना तय हुआ। व्यापारी ने लड़के के मामा दीपचंद को बुलाया और कहा कि अमर को शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी छोड़ आइए। वारणसी जाते समय रास्ते में जहां भी अमर और दीपचंद ठहरते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाते।
लंबी यात्रा के बाद अमर और दीपचंद एक ऐसे नगर में पहुंचे जहां राजा की कन्या का विवाह था। राजा की कन्या का जिससे विवाह होना था वो लड़का एक आंख से काना था। जिस बात को लेकर दुल्हे का पिता चिंतित था। उसे ये डर था कि कहीं अगर राजा को ये बात पता चल गई तो वो उसके बेटे का विवाह राजकुमारी से नहीं कराएगा। दूल्हे के पिता की नजर अमर पर पड़ी और उसके मन में विचार आया कि क्यों न राजकुमारी का विवाह इस लड़के से करा दूं और फिर इस लड़के को पैसा देकर भेज दूंगा और राजकुमारी को अपने महल में ले आऊंगा।
दूल्हे के पिता ने इस संबंध में लड़के और उसके मामा से बात की। अमर के मामा दीपचंद ने धन के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। इस तरह से अमर को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी चंद्रिका से उसका विवाह संपन्न करा दिया गया। लेकिन अमर जब लौट रहा था तो उसे राजकुमारी से झूठ बोलना ठीक नहीं लग रहा था ऐसे में उसने जाते-जाते राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया- 'राजकुमारी चंद्रिका, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था, मैं वाराणसी जा रहा हूं और तुम्हें जिस नवयुवक के साथ भेजेंगे वो एक आंख से काना है।'
जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखी ये बात पढ़ी तो उसने काने लड़के के साथ जाने से मना कर दिया और बारात वापस लौट गई। उधर अमर अपने मामा दीपचंद के साथ वाराणसी पहुंच गया। अमर ने शिक्षा लेना शुरू कर दिया और जब वह 16 वर्ष का हुआ तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर वो अपने शयनकक्ष में सोने चला गया जहां शयनावस्था में ही अमर की मृत्यु हो गई। सुबह जब उसके मामा अमर को देखने आये तो उसे मृत पाकर वो रोने-पीटने लगे।
मामा के रोने के स्वर पास से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुनें। पार्वतीजी ने भगवान शिव से कहा- 'प्राणनाथ! मुझसे इस व्यक्ति का दुख देखा नहीं जा रहा। कृप्या करके आप इसके कष्ट दूर करें।'
भगवान शिव ने पार्वतीजी से कहा हे पार्वती! ये व्यक्ति उस बालक की मृत्यु पर रो रहा है जिसे मैंने सिर्फ 16 वर्ष की आयु तक जीवित रहने का वरदान दिया था। पार्वतीजी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया- 'हे प्राणनाथ! आप इस लड़के को जीवनदान दे दें। नहीं तो इसके माता-पिता भी अपने प्राणों का त्याग कर देंगे। इस लड़के का पिता तो आपके परम भक्त हैं। पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित कर दिया।
शिक्षा समाप्त कर अमर वापस अपने नगर लौटने लगा। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे जहां अमर का राजकुमारी के साथ विवाह हुआ था। उस नगर में राजकुमारी के पिता ने अमर को पहचान लिया और वो उसे अपने महल में ले आए। राजा ने कुछ दिन उन्हें महल में रखा फिर बहुत सारा धन और वस्त्र देकर अपनी बेटी को अमर के साथ विदा किया।
अमर के जीवित वापस लौटने का समाचार सुनकर उसके माता-पिता बेहद खुश हुए। अमर के माता-पिता ने स्वयं को कमरे में बंद कर रखा था और वो भूखे-प्यासे रहकर अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। दोनों ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वो दोनों भी अपने प्राण त्याग देंगे।
व्यापारी और उसकी पत्नी नगर के द्वार पहुंचे और उन्होंने अपने बेटे और अपनी पुत्रवधू चंद्रिका का शानदार स्वागत किया। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी को सपने में आकर कहा- 'हे श्रेष्ठी! मैं तेरे सोमवार व्रत करने से प्रसन्न हूं अत: मैं तेरे पुत्र को लंबी आयु का वरदान देता हूं।' व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ।
शास्त्रों में लिखा है कि जो भी व्यक्ति सोमवार का विधिवत व्रत करता है और व्रतकथा सुनता है उनकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।
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