Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi: सावन के प्रत्येक सोमवार में पढ़ें भगवान शिव और माता पार्वती की ये पौराणिक कहानी

Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi (सावन सोमवार की कथा): सावन सोमवार व्रत की कथा एक धनी व्यापारी से जुड़ी है। जिसके पास सबकुछ होते हुए भी वह दुखी रहता था। चलिए जानते हैं कैसे सावन सोमवार व्रत की कृपा से उसकी मनचाही मुराद पूरी हो गई। यहां आप जानेंगे सावन सोमवार की पौराणिक कथा।

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Sawan Somwar Vrat Katha 2024

Sawan Somvar Vrat Katha In Hindi (सावन सोमवार की कथा): सावन हिंदू पंचांग का पांचवां महीना होता है जो शिव की उपासना के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। दरअसल सावन में धरती का संचालन भगवान विष्णु नहीं बल्कि खुद शिव जी करते हैं। इसलिए इस महीने में किए गए व्रत उपवास का फल तुरंत ही प्राप्त हो जाता है। अगर आप सावन सोमवार व्रत रख रहे हैं तो उस दिन धनी व्यापारी की पौराणिक कथा जरूर पढ़ें। जो आपको सावन सोमवार व्रत के महत्व के बारे में समझाएगी।

Sawan Somwar Vrat Vidhi In Hindi

सावन सोमवार व्रत कथा (Sawan Somwar Vrat Katha In Hindi)

सावन सोमवार व्रत की कथा इस प्रकार है- किसी नगर में एक अमीर व्यापारी रहता था। उसके पास धन-दौलत और मान-सम्मान किसी भी चीज की कमी नहीं थी लेकिन फिर भी वह हमेशा दुखी रहता है। उसके दुख का कारण था उसकी कोई संतान न होना। संतान प्राप्ति की इच्छा से व्यापरी प्रत्येक सोमवार का व्रत रखा करता था और शाम में शिव मंदिर जाकर शिवजी के समक्ष घी का दीपक जलाता था। उसकी सच्ची भक्ति देख मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उसकी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना की।

भगवान शिव बोले इस संसार में हर व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार ही फल की प्राप्ति होती है। अत: जिसके भाग्य में जो लिखा है उसे वही मिलेगा। लेकिन फिर भी माता पार्वती नहीं मानी और भगवान शिव से उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ति करने का आग्रह करने लगीं। अंत में भगवान को माता पार्वती की बात मानकर व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का वरदान देना पड़ा। वरदान देने के पश्चात् भोलेनाथ मां पार्वती से बोले: मैंने आपके कहने पर व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का वरदान दे तो दिया है परन्तु उसका पुत्र 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगा। तब उसी रात भगवान शिव ने उस व्यापारी के सपने में आकर कहा कि मैं तुम्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हूं लेकिन उस पुत्र की आयु 16 वर्ष तक ही होगी।

पुत्र प्राप्ति का वरदान पाकर व्यापारी खुश तो हुआ लेकिन उसकी अल्पायु की चिंता से व्यापारी की खुशी नष्ट हो गई। इसके बाद भी व्यापारी पहले की तरह ही सोमवार व्रत करता रहा। कुछ महीनों के बाद उसके घर में एक सुंदर पुत्र का आगमन हुआ। लेकिन व्यापारी ने पुत्र की कम आयु की बात किसी को नहीं बताई। जब पुत्र 12 वर्ष का हो गया तो व्यापारी ने उसे उसके मामा के साथ काशी पढ़ने के लिए भेजने का निर्णय लिया। लड़का अपने मामा के साथ चल दिया। रास्ते में मामा-भांजे जहां विश्राम हेतु रुकते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों दान करते जाते।

एक दिन मामा-भांजे एक नगर में पहुंचे। वो नगर खूब सजा हुआ था क्योंकि उस नगर के राजा की बेटी की शती दी। देखते ही देखते बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत परेशान था। उसे भय था कि राजा को अगर ये बात पता चल गई तो वो अपनी लड़की की शादी नहीं कराएगा। जिससे उसकी बदनामी भी होगी। लेकिन जब वर के पिता ने व्यापारी के पुत्र को देखा तो उसने सोचा क्यों इस सुंदर लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से इसकी शादी करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और इस तरह राजकुमारी को बहू बनाकर मैं अपने घर ले चलूंगा।

वर के पिता ने लड़के के मामा से बात की। पैसों के लालच में मामा ने लड़के के पिता की बात मान ली। इसके बाद व्यापारी के लड़के को दूल्हे का वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह करा दिया गया। शादी के बाद लड़का जब राजकुमारी से साथ लौट रहा था तो वह सच छिपा नहीं सका और उसने राजकुमारी के ओढ़नी पर लिख दिया कि राजकुमारी तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है और मैं वाराणसी पढ़ने जा रहा हूं। लेकिन अब तुम्हें जिस युवक के साथ भेजेंगे वह एक आंख से काना है। उसी के पिता ने छल से मेरी शादी तुमसे कराई है।

जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखी ये बात पढ़ी तो उसने नकली दूल्हे के साथ जाने से मना कर दिया। उधर लड़का अपने मामा के साथ वाराणसी पहुंच गया और उसने शिक्षा लेनी शुरू कर दी। जब उस लड़के की आयु 16 वर्ष की हुई तो उसने एक बड़ा यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब दान किया। जब लड़का रात को अपने शयनकक्ष में सो रहा था तो शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही उसके मृत्यु हो गई। सूर्योदय के समय जब मामा ने अपने मृत भांजे को देखा तो वे रोने-पीटने लगे।

लड़के के मामा के विलाप भरे स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वतीजी को भी सुनाई दे गए। तब माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा हे प्राणनाथ, मुझसे इस व्यक्ति का दुख देखा नहीं जा रहा है आप कृप्या करके इसके कष्ट को अवश्य दूर करें। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि हे पार्वती ये उसी व्यापारी का पुत्र है, जिसे मैंने 16 वर्ष तक ही जीवित रहने का वरदान दिया था। अब उसकी उम्र पूरी हो गई है।

मां पार्वती ने फिर भी शिव जी से निवेदन कर कहा कि उस बालक को जीवन दे दीजिए। क्योंकि अगर आपने ऐसा नहीं किया तो उसके माता-पिता भी अपने प्राण त्याग देंगे। ये व्यापारी हमेशा से ही आपके सोमवार व्रत करते आ रहा है। ऐसे में इसकी मनोकामना आपको जरूर पूरी करनी चाहिए। माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उसे जीवित कर दिया। शिक्षा समाप्त कर मामा-भांजे वापस चल दिए। दोनों चलते हुए उसी नगर में आ गए जहां उस लड़के का विवाह राजकुमारी से हुआ था। उस नगर में उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। तब राजा ने उस लड़के को पहचान लिया और यज्ञ समाप्त होने पर राजा मामा और लड़के को महल में ले आए। जहां उनकी खूब सेवा की गई और कुछ दिनों बात राजा ने बहुत-सा धन, वस्त्र आदि देकर राजकुमारी को उनके साथ विदा कर दिया।

इधर लड़के के माता-पिता भूखे-प्यासे रहकर अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा ली थी कि अगर उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों मर जाएंगे। परन्तु जैसे ही उन्होंने सुना की उनका बेटा वापस आ रहा है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर वे दोनों और भी ज्यादा खुश हो गए। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी को सपने में आकर कहा कि हे श्रेष्ठी, मैं तेरे सोमवार व्रत करने और उसकी कथा सुनने से प्रसन्न हूं इसलिए तेरे पुत्र को लम्बी आयु का वरदान प्रदान किया है। तो इस तरह से व्यापारी के सोमवार का व्रत करने से उसकी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं। इसी प्रकार जो भी व्यक्ति सोमवार का व्रत करता है और इसकी कथा सुनता है उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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