Shab E Meraj 2024 Iftar Time: शब-ए-मेराज इफ्तारी का समय और नमाज का तरीका यहां जानें

Shab E Meraj Iftar Time 2024: मुस्लिम समुदाय के लिए शब-ए-मेराज का दिन बेहद खास होता है। मान्यता है इस पवित्र दिन पर ही पैगंबर मोहम्मद साहब की अल्लाह से मुलाकात हुई थी। जानिए शब-ए-मेराज इफ्तारी का समय क्या रहेगा।

Niyat For Shab E Meraj Roza

Shab E Meraj Namaz Ka Tarika

Shab E Meraj Iftar Time 2024: शब-ए-मेराज मुस्लिम लोगों द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। जिसे पैगंबर मोहम्मद साहब के जीवन का प्रमुख हिस्सा माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार इसी दिन पैगंबर मोहम्मद साहब को इसरा और मेराज की यात्रा करते समय अल्लाह के होने का अनुभव हुआ था (shab e meraj ki nafil namaz)। इसी यात्रा के पहले हिस्से को इसरा कहा जाता है जबकि दूसरे हिस्से को मेराज कहा जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार ये पर्व रजब महीने की 27वीं तारीख को मनाया जाता है (shab e meraj history in hindi)। मान्यता है इसी दिन पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम और अल्लाह की मुलाकात हुई थी। इसलिए ये रात 'पाक रात' भी मानी जाती है।

मुस्लिम धार्मिक मान्यताओं अनुसार जो इंसान इस रात अल्लाह की इबादत करता है और कुरान की तिलावत करता है (shab e meraj importance), उसे कई रातों की इबादत करने जितना सवाब एक साथ मिल जाता है। इस रात को खास नमाज़ और नबी पर दूरूद पढ़ा जाता है।

Shab E Meraj Iftar Time 2024 (शब ए मेराज इफ्तारी समय)

शब ए मेराज इफ्तारी का समय शाम 6 बजकर 32 मिनट का है। इस समय पर रोजा खोला जा सकता है।

Shab E Meraj 2024 Namaz Ka Tarika- शब-ए-मेराज पहली रकात

  • पहले शब-ए-मेराज की दो रकात नफ्ल की नियत करें।
  • इसके बाद अल्लाहु अकबर कह कर अपना हांथ बांध लें।
  • फिर सना यानी सुब्हान कल्ला हुम्मा व बि हम् दिक‌ पूरा पढ़ें।
  • इसके बाद तअव्वुज यानी अउजुबिल्लाहि मिनश शैतानिर्रजीम को पढ़ें।
  • फिर तस्मियह यानी बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम पढ़ी जाती है।
  • अब सुरह फातिहा यानि अल्हम्दु शरीफ को पढ़ें।
  • फिर कुलहूवल्लाह शरीफ 3 तीन बार पढ़ें।
  • फिर अल्लाहु अकबर कह कर रूकुअ करें और इसके बाद तीन, पांच या सात बार सुब्हान रब्बियल अजिम पढ़ें।
  • फिर समिअल्लाहु लिमन हमिदह कहते हुए रूकुअ से सर उठाएं फिर उठते समय रब्बना लकल हम्द कहें।
  • इसके बाद अल्लाहु अकबर बोलते हुए सजदे करें, इसमें तीन, पांच, या सात बार सुब्हान रब्बियल अला पढ़ें।
  • अब अल्लाहु अकबर बोलें और कुछ देर के लिए दूसरी सजदा करने से पहले बैठे रहें।
  • फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए दुसरी सजदा की जाती है और इस दौरान कम से कम तीन बार सुब्हान रब्बियल अला पढ़ें।
  • इस तरह से आपकी शब-ए-मेराज की दो रकअत नफ्ल में से पहली रकात मुकम्मल हो गई।
  • अब अल्लाहु अकबर कहते हुए दूसरी रकअत के लिए खड़े हो जाएं।
Shab E Meraj Ki Namaz Ka Tarika - शब-ए-मेराज दूसरी रकात

  • अब सबसे पहले बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम पढ़ें।
  • फिर सिर्फ सूरह फातिहा पढ़ें।
  • अब फिर से कुलहुवल्लाहु 3 तीन बार पढ़ें।
  • फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए रूकुअ करें और कम से कम तीन बार जो जरूर ही सुब्हान रब्बियल अजिम पढ़ें।
  • इसके बाद समिअल्लाहु लिमन हमिदह बोलते हुए उठ जाएं और उठने पर रब्बना लकल हम्द कहें।
  • फिर अल्लाहु अकबर बोलते हुए सज्दे करें और तीन बार कम से कम सुब्हान रब्बियल आला कहें।
  • यहां पर अब आप अल्लाहु अकबर कहते हुए उठे और फिर कुछ देर के लिए बैठे रहें।
  • इसके बाद अल्लाहु अकबर बोलते हुए दूसरी सजदा करें और कम से कम तीन बार सुब्हान रब्बियल आला पढ़ें।
  • फिर अल्लाहु अकबर बोलते हुए तशह्हुद के लिए बैठें और अतहियात पढ़ें।
  • अतहियात पढ़ते हुए जब कलिमे ला पर पहुंचे तो दाहिने हाथ से अपनी शहादत उंगली उठाएं और इल्ला पर गिरा दें।
  • इसके बाद दुरूद ए इब्राहिम पढ़ी जाती है, फिर दुआए मासुरह पढ़ें और सलाम फेर लें।
  • सबसे पहले अपने दाहिने कन्धे की तरफ अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह कहते हुए गर्दन घुमाएं।
  • फिर बाएं कंधे कि ओर अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह कहते हुए अपनी गर्दन घुमाएं।
  • इस तरह से यहां पर आपकी शब-ए-मेराज की दो रकअत की नफ्ल नमाज़ की दोनों रकात मुकम्मल हो जाएंगी।
  • अब सलाम फेरने के बाद 125 बार दुरूद शरीफ पढ़ें।
  • इसी तरह दो-दो रकात करके 12 रकात शबे मेराज की नफ्ल अदा करनी है।
(इस आर्टिकल में Shab E Meraj नमाज से जुड़ी जानकारी zoseme.com से ली गई है।)

Shab E Meraj History In Hindi (शब-ए-मेराज का इतिहास)

शब-ए-मेराज में शब का मतलब रात से है और मेराज का मतलब आसमान होता है। माना जाता है कि इसी रात को हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने मक्का से येरुशलम की बैत अल मुकद्दस मस्जिद तक का सफर किया था और फिर सातों आसमान की सैर करते हुए उनकी खुदा यानी अल्लाह से मुलाकात हुई थी। कहते हैं जो भी मुस्लिम इस दिन रोजा रखता है, उसे बड़ा सवाब मिलता है। हालांकि रमजान महीने की तरह इस दिन रोजा रखना अनिवार्य नहीं होता।

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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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