Shani Chalisa Hindi Lyrics: संपूर्ण शनि चालीसा अर्थ सहित यहां देखें
Shani Chalisa Lyrics in Hindi: शनि देव की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल उपाय है शनि चालीसा। शनिवार के दिन इस चालीसा का पाठ करना बेहद फलदायी माना जाता है।
Shani Chalisa In Hindi: शनि चालीसा अर्थ सहित यहां पढें
शनि चालीसा का पाठ शनिवार के दिन करना अत्यंत ही फलदायी माना जाता है। शनिवार के दिन घर के पूजा स्थान पर सरसों के तेल का दीपक जलाकर शनि देव का ध्यान करें। इसके बाद शनि के मंत्रों का जाप करें। फिर शनि चालीसा पढ़ें। आगे जानिए संपूर्ण शनि चालीसा अर्थ सहित।
शनि चालीसा हिंदी में (Shani Chalisa In Hindi)
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
अर्थ- हे माता पार्वती के पुत्र भगवान गणेश, आपकी जय हो। आप कल्याणकारी हैं, सब पर कृपा करते हैं, दीन लोगों के दुख दूर करके उन पर अपनी कृपा बनाएं भगवन। हे भगवान श्री शनिदेव जी आपकी भी जय हो, हे प्रभु, हमारी प्रार्थना सुनें, हे रविपुत्र हम पर कृपा बरसाएं और भक्तजनों की लाज रखें।
॥चौपाई॥
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
अर्थ- हे दयालु शनिदेव महाराज आपकी जय हो, आप भक्तों की रक्षा करते हैं और आप उनके पालनहार हैं। आप श्याम वर्णीय और चार भुजाएं वाले हैं। आपके मस्तक पर रतन जड़ित मुकुट सुशोभित है। आपका बड़ा मस्तक आकर्षक है, आपकी दृष्टि टेढी रहती है। आपकी भृकुटी विकराल दिखाई देती है। आपके कानों में स्वर्ण कुंडल चमचमा रहे हैं। आपकी छाती पर मोतियों और मणियों का हार आपकी आभा को बढ़ाने का काम कर रहा है। आपके हाथों में गदा, त्रिशूल व कुठार मौजूद हैं, जिनसे आप शत्रुओं का संहार करते हैं।
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
अर्थ- पिंगल, कृष्ण, छाया नंदन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दु:ख भंजन, सौरी, मंद, शनि ये सभी आपके दस नाम हैं। हे सूर्यपुत्र आपकी पूजा सब कार्यों में सफलता के लिए की जाती है। क्योंकि जिस पर आप प्रसन्न होते हैं वो व्यक्ति क्षण भर में रंक से राजा बन जाता है। बड़ी से बड़ी समस्या भी उसे घास के तिनके सी लगती है लेकिन जिस व्यक्ति पर आप नाराज हो जाते हैं तो छोटी सी समस्या भी पहाड़ बन जाती है।
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति-मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
अर्थ-हे प्रभु आपकी दशा के कारण ही तो राज करने की जगह भगवान श्री राम को भी वनवास मिला था। आपके प्रभाव की वजह से ही केकैयी ने ऐसा बुद्धि हीन निर्णय लिया। आपकी दशा के कारण ही वन में मायावी मृग के कपट को माता सीता पहचान न सकी और जिस वजह से उनका हरण हुआ। आपकी दशा से ही लक्ष्मण के प्राणों पर संकट आ खड़ा हुआ। आपके प्रभाव से ही रावण ने भी ऐसा बुद्धिहीन काम किया और प्रभु श्री राम से लड़ाई ली। आपकी दृष्टि के कारण ही भगवान हनुमान का डंका पूरे विश्व में बजा और लंका तहस-नहस हो गई। आपकी नाराजगी के चलते ही राजा विक्रमादित्य को इस तरह से जंगलों में भटकना पड़ा। उनके सामने हार को मोर के चित्र ने निगल लिया और उन पर हार चुराने का आरोप लगा। इसी नौलखे हार की चोरी के आरोप में उनके हाथ पैर तुड़वा दिये गये और विक्रमादित्य को तेली के घर कोल्हू चलाना पड़ा। लेकिन जब दीपक राग में उन्होंनें प्रार्थना की तो आप प्रसन्न हुए और आपने फिर से उन्हें सुख समृद्धि प्रदान की।
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
अर्थ- आपकी दशा के प्रभाव के कारण ही राजा हरिश्चंद्र की स्त्री तक बिक गई, स्वयं भी डोम के घर पर उन्हें पानी भरना पड़ा। राजा नल व रानी दयमंती को भी कष्ट उठाने पड़े, आपकी दशा के चलते ही भूनी हुई मछली तक वापस जल में कूद गई जिससे राजा नल को भूखों मरना पड़ा। जब भगवान शंकर पर आपकी दशा पड़ी तो उन्हें माता पार्वती को खोना पड़ा। मां पार्वती ने हवन कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। आपके कोप की वजह से ही भगवान गणेश का सिर महादेव ने धड़ से अलग कर दिया। पांडवों पर जब आपकी दशा पड़ी तो द्रौपदी को कौरवों द्वारा पीड़ा सहनी पड़ी। आपकी दशा से ही कौरवों की मति मारी गयी जिससे महाभारत का युद्ध हुआ। आपकी कुदृष्टि से तो स्वयं आपके पिता सूर्यदेव भी नहीं बच पाए और उन्हें अपने मुख में लेकर आप पाताल लोक में कूद गए। देवताओं द्वारा विनती करने पर आपने सूर्यदेव को अपने मुख से आजाद किया।
वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल कारी॥
अर्थ- हे प्रभु आपके सात वाहन हैं। हाथी, घोड़ा, गधा, हिरण, कुत्ता, सियार और शेर। आप जिस वाहन पर बैठकर आते हैं उसी प्रकार का आप फल देते हैं। यदि आप हाथी पर सवार होकर आते हैं घर में लक्ष्मी का आगमन होता है। यदि घोड़े पर बैठकर आते हैं तो सुख संपत्ति बढ़ती है। यदि गधे पर विराजित होकर आते हैं तो कई प्रकार के कार्यों में अड़चन आती हैं, वहीं आप जिसके यहां शेर पर सवार होकर आते हैं उसका रुतबा बढाते हैं। वहीं जब आपकी सवारी सियार होती है तो आपकी दशा से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और यदि हिरण पर आप आते हैं तो शारीरिक व्याधियां लेकर आते हैं। जब आप कुत्ते की सवारी करते हुए आते हैं तो किसी बड़ी चोरी की और ईशारा करती हैं। इसी प्रकार आपके चार प्रकार की धातुओं के चरण हैं जो सोना, चांदी, तांबा व लोहा धातुओं के हैं। यदि आप लौहे के चरण पर आते हैं तो धन, जन या संपत्ति की हानि होती है। वहीं चांदी व तांबे के चरण पर आते हैं तो शुभ फल देते हैं, लेकिन जब आप सोने के चरणों से पधारते हैं तो हर लिहाज से सुखदायक व कल्याणकारी होते है।
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
अर्थ- जो भी इस शनि चरित्र का हर रोज पाठ करेगा उसे आपके कोप का सामना नहीं करना पड़ेगा। उस पर भगवान शनिदेव हमेशा मेहरबान रहेंगे और उसके शत्रुओं को परास्त कर देंगे। जो कोई भी विधि व नियम अनुसार शनि ग्रह को शांत करवाता है। शनिवार के दिन पीपल के पेड़ को जल देता है व दीपक जलाता है उसे बहुत सुख मिलता है। प्रभु शनिदेव का दास रामसुंदर भी कहता है कि भगवान शनि के सुमिरन से सुख की प्राप्ति होती है और अज्ञानता का अंधेरा मिटकर ज्ञान का प्रकाश होने लगता है।
॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'भक्त' तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
अर्थ- भगवान शनिदेव के इस पाठ को विमल ने तैयार किया है जो कोई भी इस चालीसा का पूरे चालीस दिन तक लगातार पाठ करता है उस पर शनिदेव की कृपा सदैव बनी रहती है और वो शनिदेव की कृपा से वह भवसागर से पार हो जाता है।
Shanivar Vrat Katha, Puja Vidhi
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