Shaniwar Vrat Katha In Hindi: शनिवार की व्रत कथा पढ़ने से शनि दोष से मिलेगा छुटकारा

Shaniwar Vrat Katha In Hindi: शनिवार के दिन शनि देव की पूजा की जाती है। कई लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। अगर आपने भी शनिवार का व्रत रखा है तो जरूर पढ़ें शनि देव की कहानी।

Shaniwar Vrat Katha

Shaniwar Vrat Katha In Hindi (शनिवार व्रत कथा): हिंदू धर्म में शनिवार के देवता शनि देव माने जाते हैं। कहते हैं जो जैसा कर्म करता है शनि देव उसे वैसा ही फल देते हैं। जिनकी कुंडली में शनि मजबूत स्थिति में होते हैं उन्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं होती तो वहीं दूसरी तरफ जिनकी कुंडली में शनि की स्थिति खराब होता है उनका जीवन दुखों से भर जाता है। इसलिए लोग शनि को प्रसन्न करने के लिए तमाम तरह के उपाय करते रहते हैं। धार्मिक मान्यताओं अनुसार शनि को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय है शनिवार व्रत। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं शनिवार की व्रत कथा।

शनिवार व्रत कथा (Shaniwar Vrat Katha In Hindi)

पौराणिक कथा अनुसार एक बार स्वर्गलोक में 'सबसे बड़ा कौन है?' के प्रश्न पर नौ ग्रहों में वाद-विवाद छिड़ गया। धीरे-धीरे विवाद इतना बढ़ा कि सभी ग्रहों के बीच भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई। निर्णय के लिए सभी देवता इंद्र के पास पहुंचे और बोले- 'हे देवराज! आप ही निर्णय लें कि हममें से सबसे बड़ा कौन है? ये सुनकर देवराज इंद्र भी उलझन में पड़ गए। फिर इंद्र बोले- मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूँ। ऐसा करते हैं हम सभी पृथ्वीलोक में उज्जयिनी नगरी में राजा विक्रमादित्य के पास चलते हैं। इस तरह से देवराज इंद्र सहित सभी ग्रह राजा के महल में पहुंचे। जहां सभी देवताओं ने उनसे अपना प्रश्न पूछा तो राजा विक्रमादित्य भी कुछ देर के लिए परेशान हो गए क्योंकि सभी देवता के पास कुछ न कुछ खास शक्तियां थीं।

इसके अलावा किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुँच सकती थी। राजा ऐसा सोच ही रहे थे कि उन्हें अचानक एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं जैसे कि स्वर्ण, चाँदी, कांसा, तांबा, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक व लोहे के नौ आसन बनवाए और धातुओं के गुणों के अनुसार सभी आसनों को एक-दूसरे के पीछे रखवा दिया। फिर उन्होंने देवताओं को अपने-अपने सिंहासन पर बैठने के लिए कहा। देवताओं के बैठने के बाद राजा विक्रमादित्य ने कहा- आपका निर्णय तो स्वयं ही हो गया। अत: जो सबसे पहले सिंहासन पर विराजमान है, वहीं आप सभी में सबसे बड़ा है। राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देवता को क्रोध हो गया क्योंकि शनि देव सबसे पीछे के आसन पर बैठ थे। इस तरह से वह अपने को सबसे छोटा जानकर क्रोधित हो गए और कहने लगे- 'राजा विक्रमादित्य! तुमने ऐसा करके मेरा घोर अपमान किया है। तुम मेरी शक्तियों से अभी परिचित नहीं हो। मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा।

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