Shaniwar Vrat Katha In Hindi: शनिवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती और महत्व, पढ़िए सबकुछ यहां

Shaniwar Vrat Katha, Puja Vidhi, Aarti in Hindi (शनिवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती): शनिवार व्रत की बड़ी महिमा बताई जाती है। कहते हैं इस व्रत को करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

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शनिवार व्रत कथा, पूजा विधि, नियम और महत्व

Shaniwar Vrat Katha, Puja Vidhi, Aarti in Hindi (शनिवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती): शनिवार का दिन न्याय के देवता शनिदेव को समर्पित है। शनि को कर्मफलदाता माना गया है जो लोगों को उनके अच्छे बुरे दोनों कर्मों का फल देते हैं। अगर जातक की कुंडली में शनि की दशा शुभ हो तो व्यक्ति खूब तरक्की करता है। वहीं अगर शनि पीड़ित है तो व्यक्ति को तमाम कष्टों का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में हर व्यक्ति चाहता है कि उस पर शनि की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहे। शनि को प्रसन्न करने के लिए शनिवार व्रत बेहद लोकप्रिय है। ये व्रत करने से सारे दुख, संकट, पीड़ा दूर हो जाते हैं। घरों में सुख, शांति, समृद्धि का आगमन होता है। आइए शनिवार व्रत का महत्व, विधि, नियम, उपाय, मंत्र, आरती, कथा और पूजन विधि जानते हैं।
धार्मिक मान्यताओं अनुसार शनि व्रत को करने से व्यक्ति अपनी कुंडली में पीड़ित शनि ग्रह को मजबूत कर सकता है। कहते हैं जिस व्यक्ति पर शनि की कृपा बरसती है उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। शनि व्यक्ति को रंक से राजा बनाने की ताकत रखते हैं।

Shaniwar Vrat Katha (शनिवार व्रत कथा)

एक समय की बात है जब सभी नवग्रहों यानी सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति,शुक्र, शनि, राहु और केतु में विवाद छिड़ गया कि इनमें सबसे बड़ा कौन है? सभी आपस में लड़ पड़े तभी सारे देवराज इंद्र के पास पहुंचे। इंद्रदेव घबराए और निर्णय करने में अपनी असमर्थता जताई। लेकिन उन्होंने सुनवाए लिए राजा विक्रमादित्य का नाम बताया और कहा वो इस समय पृथ्वी पर अति न्यायप्रिय हैं। आपकी मदद वही कर सकते हैं। सभी ग्रह एक साथ राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे, और अपनी समस्या रखी।
राजा विक्रमादित्य संकट में आ गए। क्योंकि वे जानते थे कि जिस किसी को भी छोटा घोषित किया जायेगा वह क्रोधित हो उठेगा। तब राजा ने एक उपाय बताया। उन्होंने स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से 9 सिंहासन बनवाया। इस सिंहासन को इसी क्रम से रख दिया। फिर उन सबसे निवेदन किया कि आप सभी सिंहासन पर स्थान ग्रहण करें। इनमें से जो अंतिम सिंहासन पर बैठेगा, वही सबसे छोटा माना जाएगा।
लोहे का सिंहासन सबसे बाद में होने के कारण, शनिदेव उसी पर बैठ गए। तभी से वो सबसे छोटे कहलाने लगे। शनिदेव को लगा कि राजा ने जानकर ऐसा चाल चला है। वह गुस्से में राजा से बोले, ‘राजा! तू मुझे नहीं जानता। सूर्य एक राशि में एक महीना, चंद्रमा सवा दो महीना दो दिन, मंगल डेड़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, व बुद्ध और शुक्र एक एक महीने विचरण करते हैं। लेकिन मैं ढाई से साढ़े-सात साल तक एक ही राशि में रहता हूं। मैंने बड़े-बड़ों का विनाश किया है। जब श्री राम की साढ़े साती आई तो उन्हें वनवास हो गया, रावण के घड़ी में तो उसकी लंका को वानरों की सेना ने हरा दिया। अब तू क्या चीज है।' ऐसा कहते हुए शनिदेव वहां से चले गए।
बाकी के देवता खुशी-खुशी वापस आए। कुछ समय बीतने के बाद राजा की साढ़े साती आई। तब शनिदेव बढ़िया-बढ़िया घोड़े को लेकर एक सौदागर बनकर वहां पहुंचे। राजा को पता लगते ही वह अपने अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने की आज्ञा दे दी। उसने कई अच्छे घोड़े खरीदे। उनमें से एक सर्वोत्तम घोड़े, राजा को सवारी के लिए दिया। राजा के सवार होते ही, वह घोड़ा सरपट वन की ओर भागने लगा। भीषण वन में पहुंचते वह गायब हो गया।
इसके बाद राजा घंघोर जंगल में बिल्कुल अकेला भूखा प्यासा भटकता रहा। तब एक ग्वाले ने उसे पानी पिलाया। राजा प्रसन्न हुए और उसे अपनी अंगूठी दे दी। इसके बाद राजा नगर की ओर चल पड़ा। वहां उसने अपना नाम उज्जैन निवासी वीका बताया। उस नगर में एक सेठ की दुकान पर उसने कुछ देर आराम किया। भाग्यवश उस दिन सेठ की खूब बिक्री हुई थी। तो सेठ खुश होकर अपने साथ घर लेकर गए और राजा को खाना खिलाया। वहां उसने एक खूंटी पर एक हार टंगा देखा, जिसे खूंटी निगल रही थी। थोड़ी देर में पूरा हार गायब था। सेठ को लगा कि वीका ने ही उसे चुराया है, उसने वीका को कोतवाल के पास पकड़वा दिया।
फिर वहां के राजा ने भी वीका को चोर समझा। उसके हाथ पैर कटवाकर नगर के बाहर फेंकवा दिया। वहां से एक तेली गुजर रहा था, जिसे देख दया आई। उसने वीका को अपनी गाड़ी में बैठाया। इसके बाद उस राजा की शनिदशा समाप्त हुई। वर्षा ऋतु आने पर राजा मल्हार गीत गाने लगा। राजा के राग सुनकर उस नगर की राजकुमारी मनभावनी को उसका गाना इतना पसंद आया। उसने प्रण कर लिया कि वह उसी राग वाले से विवाह करेगी। राजकुमारी ने अपनी दासी को राग गाने वाले को ढूंढने भेजा। दासी ने पता लगाकर राजकुमारी को बताया कि वह एक चौरंगिया (अपाहिज) है। लेकिन राजकुमारी तब भी उसी से विवाह पर अड़ी रहीं। अगले दिन वह अनशन पर बैठ गई कि विवाह करेगी तो उसी से करेगी। तो राजा ने अपनी राजकुमारी का विवाह उस अपंग राजा से करवा दिया।
तब एक दिन राजा के स्वप्न में शनिदेव ने कहा, ‘ राजन देखा! मुझे छोटा बता कर तुम्हें कितना दुःख झेलना पड़ा है। राजा ने उनसे क्षमा मांगी। प्रार्थना करते हुए कहा कि, "हे शनिदेव ये दिख किसी और को ना दें।’ शनिदेव मान गए और कहा कि जो मेरी कथा और व्रत करेगा, उसे मेरी दशा से कोई दुख नहीं झेलना पड़ेगा। व्यक्ति रोज चींटियों को आटा डालेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। ऐसा कहते हुए शनिदेव ने राजा के हाथ पैर वापस कर दिए।
सुबह आंख खुलने पर राजकुमारी ने देखा, तो वह चौंक गई। फिर वीका ने उसे बताया, कि वह कोई वीका नहीं बल्कि उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। सभी प्रसन्न हुए। सेठ को जब ये बात पता लगी तो वह राजा से क्षमा मांगने लगा। राजा ने कहा कि इसमें किसी का कोई दोष नहीं, वह तो शनिदेव का क्रोध था। सेठ ने फिर भी राजा से अपने घर खाने पर जाने का निवेदन किया। सेठ ने कई प्रकार के व्यंजनों से राजा का सत्कार किया। साथ ही सबने देखा कि जो खूंटी हार निगल चुकी थी, वही अब उगल रही थी। सेठ ने तहे दिल से राजा का धन्यवाद किया।
फिर सेठ ने राजा से अपनी कन्या श्रीकंवरी के साथ विवाह करने का निवेदन किया। राजा ने इसे स्वीकार कर अपनी दोनों रानियों मनभावनी और श्रीकंवरी को लेकर उज्जैन नगरी चले गए। वहां राजा का खूब आदर-सत्कार किया गया। सारे नगर में दीपमाला बनाई गई। राजा ने पूरे नगर में घोषणा की , कि मैंने शनि देव को सबसे छोटा बताया था, जबकि वही सर्वोपरि हैं। सारे अच्छे बुरे कर्म के कारक शनिदेव ही हैं। तबसे सारे राज्य में शनिदेव की पूजा और कथा नियमित रूप से होने लगी। माना जाता है कि जो भी शनिवार का व्रत रख शनि देव की इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसके सारे दुःख दूर हो जाते हैं।

Shaniwar Vrat Puja Vidhi (शनिवार व्रत पूजा विधि)

  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनें।
  • इसके बाद पीपल वृक्ष को जल अर्पित करें।
  • पीपल के वृक्ष को जल अर्पित करें।
  • सुबह लोहे से निर्मित शनि देव की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराएं।
  • इसके बाद मूर्ति को चावलों से बनाए गए चौबीस दल के कमल पर स्थापित कर दें।
  • फिर काले तिल, फूल, धूप, तेल, काले वस्त्र आदि से शनि देव की पूजा करें।
  • पूजा के बाद शनि देव के दस नामों का स्मरण करें।
  • शनि मंत्रों का जाप करें।

Shaniwar Vrat Puja Aarti (शनिवार व्रत पूजा आरती)

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव....
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव....
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव....
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव....
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।

Shaniwar Vrat Importance (शनिवार व्रत महत्व)

शनिवार के दिन व्रत रखने से जातक के शनिदोष समाप्त होते हैं। यहां तक कि भविष्य में आने वाले बुरे प्रकोप से भी बचा जा सकता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से छुटकारा मिलता है। इससे नौकरी और व्यापार में लाभ मिलता है। इसके अलावा सुख-समृद्धि और मान-सम्मान में बढ़ोतरी होती है। शनिवार के दिन व्रत रखने से घरों में सुख-शांति बनी रहती है। साथ ही साथ धन-यश की भी प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदला जा सकता है।

Shaniwar Mantra (शनिवार मंत्र)

  • ॐ शं शनैश्चराय नमः
  • ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
  • ॐ शन्नो देविर्भिष्ठयः आपो भवन्तु पीतये। सय्योंरभीस्रवन्तुनः।।

Shaniwar Vrat Niyam (शनिवार व्रत के नियम)

व्रत से एक दिन पहले तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रत वाले दिन स्नान के बाद पीपल वृक्ष में जल अर्पित करना चाहिए। व्रत वाले दिन किसी के प्रति मन में द्वेष की भावना नहीं रखनी चाहिए। इस दिन गरीबों जरुरत का सामान दान जरूर करें। इसके अलावा इस दिन चीटियों को आटा जरूर डालें। शनिवार व्रत में पूरे दिन फलाहार पर रहना चाहिए। व्रत के दूसरे दिन शनि देव की पूजा के बाद ही व्रत का पारण करें।
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