Sharad Purnima Vrat Katha: शरद पूर्णिमा के दिन कौन सी कथा पढ़नी चाहिए? यहां जानिए इस पर्व की पौराणिक कहानी

Sharad Purnima Vrat Katha In Hindi (शरद पूर्णिमा व्रत कथा pdf): शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। बृज में इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी, भगवान विष्णु, श्री कृष्ण और चांद की पूजा का विधान है। चलिए जानते हैं शरद पूर्णिमा की व्रत कथा क्या है।

Sharad Purnima Vrat Katha In Hindi (शरद पूर्णिमा व्रत कथा pdf): आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ही शरद पूर्णिमा, कोजागिरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन कई लोग व्रत रखते हैं। इस व्रत को कई जगह पर कौमुदी व्रत कहा जाता है। इस साल शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को मनाई जा रही है। इस दिन भक्तजन शाम के समय मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विधि विधान पूजा करते हैं और साथ ही व्रत कथा भी पढ़ते हैं। जिसके बिना ये व्रत अधूरा माना जाता है। इसलिए यहां हम आपको बताएंगे शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा के बारे में।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा (Sharad Purnima Vrat Katha In Hindi)

शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा अनुसार बहुत समय पहले एक नगर में एक साहुकार रहता था। जिसकी दो पुत्रियां थी। दोनों ही पुत्री विधि विधान पूर्णिमा का उपवास रखती थीं। लेकिन साहुकार की छोटी पुत्री उपवास को अधूरा छोड़ देती थी तो वहीं बड़ी बेटी हमेशा पूरी लगन और श्रद्धा से इस व्रत का पालन करती थी। जब दोनों बड़ी हो गईं तो उनके पिता ने दोनों का विवाह कर दिया। शादी के बाद भी बड़ी वाली बेटी पूरी आस्था से उपवास रखती रही। इस व्रत के प्रभाव से उसे बहुत ही सुंदर और स्वस्थ संतान की प्राप्ति हुई। तो वहीं छोटी पुत्री को संतान प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। जिससे वो काफी परेशान रहने लगी। तब साहुकार की छोटी बेटी और उसके पति ने ब्राह्मणों को बुलाकर कुंडली दिखाई और जानना चाहा कि आखिर बच्चा होने में समस्या क्यों आ रही है।

तब विद्वान पंडितों ने बताया कि इसने पूर्णिमा के व्रत सही से नहीं किए इसलिए इसके साथ ऐसा हो रहा है। ब्राह्मणों ने उसे इस व्रत की विधि बताई। जिसके बाद उसने विधि विधान व्रत रखा। लेकिन इस बार छोटी बेटी की संतान तो हुई लेकिन वो जन्म के पश्चात कुछ दिनों तक ही जीवित रही। तब उसने अपनी मृत संतान को पीढ़े पर लिटाकर कपड़ा रख दिया और उसने अपनी बहन को बुलाया और बैठने के लिये वही पीढ़ा दिया जिस पर छोटी बहन की मृत संतान थी। बड़ी बहन जैसे ही पीढ़े पर बैठने लगी थी कि उसके कपड़े के छूते ही बच्चे के रोने की आवाज़ आने लगी। बड़ी बहन को बहुत आश्चर्य हुआ और कहा कि तू अपनी ही संतान को मारने का दोष मुझ पर लगाना चाह रही थी। तब छोटी ने कहा कि यह तो पहले से मरा हुआ था आपके प्रताप से इसके प्राण वापस आ गए। इसके बाद शरद पूर्णिमा व्रत की शक्ति का महत्व पूरे नगर में फैल गया।

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