Sheetala Ashtami Vrat Katha: शीतला अष्टमी की व्रत कथा से जानें इस पर्व का महत्व
Sheetala Ashtami 2023 Vrat Katha: शीतला अष्टमी का त्योहार मुख्य रूप से राजस्थान, यूपी और गुजरात में प्रमुखता से मनाया जाता है। इस दिन कई लोग व्रत रखते हैं। यहां जानिए शीतला अष्टमी की व्रत कथा।
शीतला अष्टमी व्रत कथा
माता शीतला आरोग्य और शीतलता प्रदान करने वाली देवी मानी जाती हैं। इनकी पूजा से व्यक्ति को सुखों की प्राप्ति होती है और वह सदैव निरोग रहता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार शीतला अष्टमी का व्रत करने से चिकन पॉक्स, फोड़े, नेत्र विकार, खसरा और चेचक जैसे कई रोगों से छुटकारा मिल जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले माता शीतला की ये व्रत कथा पढ़ना बिल्कुल भी न भूलें।
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शीतला अष्टमी की कहानी (Sheetala Ashtami Ki Kahani )
एक नगर में एक ब्राह्मण दंपति रहते थे। उनके दो बेटे और दो बहुएं थीं। दोनों बहुओं को काफी समय के बाद संतान हुए थे। इतने में शीतला अष्टमी का पर्व आया। घर में पर्व के अवसर पर ठंडा भोजन तैयार किया गया। उसी क्षण दोनों बहुओं के मन में विचार आया कि यदि ठंडा भोजन लेंगे तो बीमार हो जाएंगे और बच्चों पर भी असर हो सकता है। ऐसा सोचकर दोनों बहुओं ने पशुओं के दाने तैयार करने वाले बर्तन में गुप-चुप दो बाटी तैयार कर ली। इसके बाद सास-बहू शीतला माता की पूजा करके आई और कथा सुनी।
फिर, सास शीतला माता का भजन करने बैठ गई। मगर, दोनों बहुएं बच्चे रोने का बहाना बनाकर घर चली गई। बरतन में रखे दाने का गरम-गरम रोटला निकालकर चूरमा तैयार की और दोनो ने पेटभर खा लिया। उधर, भजन के बाद सास घर आई तो बहुओं से भोजन करने के लिए कहा। बहुएं ठंडा भोजन करने का बोल कर घर के काम में लग गई। सास ने कहा, 'बच्चे कब से सोए हुए हैं, उन्हे जगाकर भोजन करा लो।'
बहुएं जैसे ही बेंटों को जगाने गई तो उन्होंने बच्चों को मृत पाया। बहुओं की करतूतों के कारण ही ऐसा शीतला माता के प्रकोप से हुआ था। बहुएं विलाप करने लगी। सास को जब पूरी घटना का पता चला तो उन्हें खरी खोटी सुनाने लगी कि तुम दोनों ने बच्चों का बहाना करके शीतला माता की अवहेलना की है। इसलिए इस घर से निकल जाओ और बेटों को जिंदा और स्वस्थ लेकर ही घर में कदम रखना।
दोनों बहुएं अपने मृत बेटों को टोकरे में सुलाकर घर से निकल पड़ी। रास्ते में एक खेजडी का जीर्ण वृक्ष आया। इसके नीचे ओरी और शीतला दो बहनें बैठी थीं। दोनों के बाल जूं से भरी थीं। इन्हें देख दोनो बहुएं भी ओरी और शीतला के पास बैठ गई। दोनों बहुओं ने मिलकर शीतला-ओरी के बालों से खूब सारी जूं निकाली। जूंओं के खत्म होने से ओरी और शीतला के मन मस्तक में शीतलता का अनुभव हुआ। तब बहनों ने दोनों बहुओं से कहा, "तुम दोनों ने जैसे हमारे मस्तक को शीतलता और ठंडक दिया है, वैसे ही तुम्हें पेट की शांति मिले।"
दोनों बहुएं एक साथ बोली कि पेट का दिया हुआ ही हम भटक रहे हैं, किंतु शीतला माता के दर्शन हुए नहीं है। इसपर शीतला माता ने कहा, "तुम दोनों पापिनी हो, दूराचारिनी हो, दुष्ट हो, तुम्हारा तो मुंह भी देखने लायक नहीं। शीतला सप्तमी के दिन ठंडा भोजन करने के बजाय तुम दोनों ने गरम भोजन कर लिया था।"
यह सुनते ही बहुओं ने शीतला माता को पहचान लिया। दोनों बहुएं, उन दोनों माताओं का वंदन करने लगीं। माताओं के पैर पर गिरकर गिड़गिड़ाते हुए कहा कि हम तो भोली-भाली हैं। हमने अनजाने में गरम खान खा लिया था। हम आपके प्रभाव से अंजान थें। कृपा करके आप हम दोनों को क्षमा कर दें। फिर कभी ऐसा दुष्कृत्य हम नहीं करेंगे।
बहुओं के पश्चाताप भरे वचन सुन दोनों माताएं प्रसन्न हुईं। फलस्वरूप, शीतला माता ने मृतक बालकों को पुनः जीवित कर दिया। तब बहुएं अपने-अपने बच्चों के साथ आनंद से गांव लौट आई। गांव के लोगों को पता चला कि दोनों बहुओं को शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए थे। इसलिए गांव में दोनों का धूम-धाम से स्वागत हुआ। बहुओं ने कहा, "हम गांव में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाएंगे।
चैत्र महीने में शीतला सप्तमी के दिन सिर्फ ठंडा भोजन ही ग्रहण करेंगे।"
इस तरह शीतला माता ने दोनों बहुओं पर अपनी कृपा बरसाई। शीतला सप्तमी और अष्टमी व्रत करने से आपको भी माता शीतला का आशीर्वाद मिलेगा।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें
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