Sheetala Ashtami (Basoda) Katha In Hindi: यहां देखें शीतला अष्टमी यानी बसौड़ा की संपूर्ण व्रत कथा

Sheetala Ashtami (Basoda) Katha In Hindi, शीतला अष्टमी व्रत कथा: शीतला अष्टमी हिंदुओं का बेहद खास पर्व है जो चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल ये पर्व 22 मार्च को मनाया जा रहा है। यहां आप देखेंगे शीतला अष्टमी की व्रत कथा।

Sheetala Ashtami (Basoda) Katha In Hindi

Sheetala Ashtami (Basoda) Katha In Hindi

Sheetala Ashtami (Basoda) Katha In Hindi, शीतला अष्टमी व्रत कथा: शीतला अष्टमी हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो होली के आठवें दिन पड़ता है। इसे बसौड़ा और शीतलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां शीतला की पूजा करते हैं और उन्हें बासी भोजन का भोग लगाते हैं। इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता। ये पर्व मुख्य रूप से राजस्थान, गुरजात और यूपी में मनाया जाता है। इस साल ये त्योहार 22 मार्च को मनाया जा रहा है। इस दिन कई लोग व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाले लोगों को शीतला अष्टमी की कथा जरूर पढ़नी चाहिए।

शीतला माता की व्रत कथा (Sheetala Ashtami Vrat Katha)

शीतला अष्टमी की पौराणिक कथा अनुसार, एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखूं कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। इसी सोच विचार के साथ शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गांव में आईं और देखा कि उस गांव में माता का कोई मंदिर नहीं है, और ना ही वहां कोई उनकी पूजा करता था। माता शीतला गांव की गलियों में घूमने लगीं, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी नीचे फेंका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिर गया जिससे माता के शरीर पर छाले पड गये।

Sheetala Ashtami Puja Muhurat 2025

जिसके बाद शीतला माता गांव में इधर-उधर भाग-भाग के चिल्लाने लगी, 'अरे मैं जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है। कोई मेरी मदद करो।' लेकिन उस गांव में किसी ने माता की सहायता नही की। वहीं उस समय अपने घर के बाहर एक कुम्हारन महिला बैठी थी। जिसने देखा कि बूढी माई तो बहुत जल गई है। इसके पूरे शरीर में तपन है। तब उस कुम्हारन ने कहा हे मां! तू यहां आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर पर ठंडा पानी डालती हूं। जिसके बाद कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खूब ठंडा पानी डाला और बोली हे मां! मेरे घर में रात की बनी राबड़ी रखी है और साथ में थोड़ा दही भी है। तू इसे खा लें। जब माता रूप में बूढी माई ने ठंडी ज्वार के आटे की राबड़ी और दही खाया तो उनके शरीर को ठंडक मिली।

तब वो कुम्हारन कहने लगी कि आ मां यहां बैठजा तेरे बाल बहुत बिखरे हैं, मैं तेरी चोटी गूंथ देती हूं। जिसके बाद कुम्हारन माई की चोटी गूथने हेतु कंगी बालो में करती रही। अचानक उसने देखा कि बूढ़ी माई के सिर के पीछे आंख बालों के अंदर छुपी है। ये देखकर वह कुम्हारन डर गई। तब उस बूढ़ी माई ने कहा - रुकजा बेटी तू मत डर। मैं शीतला देवी हूं। मैं तो धरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। इतना कहते ही माता अपने असली रुप में प्रगट हो गई।

माता के दर्शन पाकर कुम्हारन सोचने लगी कि अब मैं गरीब इन माता को कहां बिठाऊ। तब माता बोली - बेटी! तुम किस सोच मे पड़ी हो।

तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आंखो में आंसू बहाते हुए कहा - हे मां! मेरे घर में हर तरफ दरिद्रता बिखरी हुई है। ऐसे में मैं आपको कहां बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी है और ना बैठने का आसन ही।

तब शीतला माता ने कुम्हारन के घर पर खड़े गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में डलिया लेकरकुम्हारन के घर की दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फैंक दिया। इसके बाद माता ने उस कुम्हारन से कहा - हे बेटी! मैं तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हूं, अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग लो।

तब कुम्हारन ने कहा - हे माता मेरी इच्छा है अब आप इसी डुंगरी गांव मे स्थापित होकर यहां निवास करें और जिस प्रकार आपने मेरे घर की दरिद्रता को दूर किया है, ठीक ऐसे ही जो भी भक्त होली के बाद की सप्तमी और अष्टमी को आपकी भक्ति-भाव से पूजा करे और साथ ही अष्टमी के दिन आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके सभी कष्ट हर लेना। तब माता तथास्तु बोलकर चली गईं! कहते हैं तभी से उस दिन से डुंगरी गांव में शीतला माता स्थापित हो गई।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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