Sheetala Ashtami / Basoda Vrat Katha: शीतला अष्टमी या बसौड़ा पूजा की व्रत कथा विस्तार से यहां देखें

Sheetala Ashtami / Basoda Vrat Katha In Hindi: हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी के त्योहार का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है इस दिन शीतला माता की अराधना करने से कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है। यहां जानिए शीतला अष्टमी की पावन कथा।

Sheetala Ashtami / Basoda Vrat Katha

Sheetala Ashtami / Basoda Vrat Katha: हिंदू पंचांग अनुसार हर साल चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को बसौड़ा यानी शीतला अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार से जुड़ी एक खास परंपरा ये है कि इस दिन माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। साथ ही खुद भी बासी भोजन ही ग्रहण किया जाता है। इस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है। यूपी, राजस्थान और मध्यप्रदेश के कई इलाकों में आज भी इस पर्व का विशेष धार्मिक महत्व माना जाता है। यहां आप जानेंगे शीतला अष्टमी की कहानी जिसके बिना अधूरा है ये व्रत।

Sheetala Ashtami / Basoda Ki Kahani In Hindi (शीतला अष्टमी बसौड़ा कथा)

एक बार शीतला माता के मन में विचार आया कि चलो आज देखूं कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है। यही सोचकर शीतला माता जस्थान के डुंगरी गांव में आईं और देखा कि इस गांव में उनका कोई मंदिर नहीं है और ना ही उनकी पूजा होती है। माता शीतला गांव की गलियों में घूम ही रही थी कि तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी नीचे फेंका। वह पानी शीतला माता के ऊपर गिर गया जिससे शीतला माता के शरीर में फफोले/छाले पड़ गये और माता के पूरे शरीर में जलन होने लगी।

शीतला माता गांव में इधर-उधर भाग-भाग के चिल्लाने लगी और कहने लगीं कि अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है। कोई मदद करो। लेकिन उस गांव में किसी ने शीतला माता की मदद नहीं की। वहीं एक घर के बाहर एक कुम्हारन महिला बैठी थी उसने देखा कि बूढी माई तो बहुत जल गई है। तब उस कुम्हारन ने कहा हे मां! तू यहां आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर पर ठंडा पानी डालती हूं। कुम्हारन ने उस बूढी माई के ऊपर खूब ठंडा पानी डाला और बोली हे मां! मेरे घर में रात की बनी हुई राबड़ी रखी है और थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी ज्वार के आटे की राबड़ी और दही खाया तो तब जाकर उसके शरीर को ठंडक मिली।

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