Sheetala Mata Mantra: शीतला अष्टमी पर करें इन मंत्रों का जाप, त्वचा रोगों से मिलेगी मुक्ति

Sheetala Mata Mantra:शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला की पूजा की जाती है। शास्त्रों में शीतला अष्टमी के व्रत का बहुत महत्व है। इस दिन शीतला माता के मंत्रों का जाप करने से साधक को हर प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है। यहां पढ़ें माता शीतला के मंत्र

Sheetala Mata Mantra

Sheetala Mata Mantra

Sheetala Mata Mantra: शीतला अष्टमी का व्रत चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक को त्वचा संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है। ये व्रत होली के आठ दिनों बाद मनाया जाता है। इस दिन माता शीतला को बासी खाने का भोग लगाया जाता है। इस साल शीतला अष्टमी का व्रत 2 अप्रैल को रखा जाएगा। ऐसा माना जाता है कि शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता के मंत्रों का जाप करने से कई रोगों से मुक्ति मिलती है। ऐसे में आइए यहां पढ़ें शीतला अष्टमी का मंत्र।

Sheetala Mata Mantra (शीतला माता मंत्र)

निरोगी काया के लिए

''ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः''

शीतला माता वंदना

वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।

मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।

रोगों से मुक्ति के लिए

''शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।।

''शीतलाष्टक''स्तोत्र

ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः

॥ ईश्वर उवाच॥

वन्दे अहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् ।

मार्जनी कलशोपेतां शूर्पालं कृत मस्तकाम् ॥

वन्देअहं शीतलां देवीं सर्व रोग भयापहाम् ।

यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत् ॥

शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दारपीड़ितः ।

विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति॥

यस्त्वामुदक मध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः ।

विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते॥

शीतले ज्वर दग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च ।

प्रनष्टचक्षुषः पुसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ॥

शीतले तनुजां रोगानृणां हरसि दुस्त्यजान् ।

विस्फोटक विदीर्णानां त्वमेका अमृत वर्षिणी॥

गलगंडग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् ।

त्वदनु ध्यान मात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम् ॥

न मन्त्रा नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते ।

त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम् ॥

॥ फल-श्रुति ॥

मृणालतन्तु सद्दशीं नाभिहृन्मध्य संस्थिताम् ।

यस्त्वां संचिन्तये द्देवि तस्य मृत्युर्न जायते ॥

अष्टकं शीतला देव्या यो नरः प्रपठेत्सदा ।

विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥

श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धा भक्ति समन्वितैः ।

उपसर्ग विनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत् ॥

शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ॥

रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाख नन्दनः ।

शीतला वाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ॥

एतानि खर नामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् ।

तस्य गेहे शिशूनां च शीतला रूङ् न जायते ॥

शीतला अष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित् ।

दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धा भक्ति युताय वै ॥

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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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