Sheetala Saptami Vrat Katha In Hindi: शीतला सप्तमी पर जरूर पढ़ें माता शीतला की ये पौराणिक व्रत कथा
Sheetala Saptami Katha: शीतला सप्तमी (Shitla Saptmi) व्रत इस बार 1 अप्रैल को रखा जा रहा है। व्रती इस दिन जरूर पढ़ें माता शीतला (Mata Shitla) की ये पौराणिक कथा।
शीतला सप्तमी व्रत कथा यहां पढ़ें
Sheetala Saptami Vrat Katha: चैत्र कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला सप्तमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा होती है। फिर इसके अगले दिन शीतला अष्टमी यानी बसौड़ा पर्व मनाया जाता है। धार्मिक दृष्टि से इस दिन का खास महत्व माना जात है। इस बार शीतला सप्तमी पर्व 1 अप्रैल तो शीतला अष्टमी पर्व 2 अप्रैल को पड़ा है। इस दिन मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाने की परंपरा है।
धार्मिक मान्यताओं अनुसार शीतला माता की पूजा से महामारियों से रक्षा होती है। कहते हैं जो व्यक्ति शीतला सप्तमी पर व्रत रखकर माता शीतला की विधि विधान पूजा करता है उसे चेचक, बुखार, फोड़े-फुंसी और आंखों से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। शीतला सप्तमी पर व्रत रखने वाले लोग जरूर पढ़ें माता शीतला की ये पौराणिक कथा।
Sheetala Saptami (Shitla Saptmi) Vrat Katha In Hindi (शीतला सप्तमी व्रत कथा)
पौराणिक कथानुसार, एक राजा के इकलौते पुत्र को एकबार शीतला यानी चेचक निकली थी। उसी राज्य में एक काछी-पुत्र को भी चेचक निकली हुई थी। काछी परिवार बेहद गरीब था। पर, भगवती का उपासक था। वह बीमारी के दौरान भी पूजा-पाठ के नियमों को अच्छे से निभाता रहा। उसके घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता था। विधिवत रूप से भगवती की पूजा भी होती थी। उस घर में नमक खाने पर पाबंदी थी। यहां तक कि सब्जी में छौंक भी नहीं लगाता और न हीं ज्यादा भुनी-तली चीजें खाता था। काछी गरम वस्तु का सेवन स्वयं भी करता था और न ही शीतला वाले लड़के को देता था। इस तरह नियमों के पालन से उसका पुत्र बहुत जल्दी ठीक हो गया।
वहीं, उधर राजा ने भगवती के मंडप में शतचंडी का पाठ शुरू करवा दिया था। रोज हवन और बलिदान होते थे। राजपुरोहित भी भगवती के पूजन में निमग्न रहते थे। राजकुमार के शीतला होने के बावजूद राजमहल में रोज कड़ाही चढ़ती थी। तरह तरह के गर्म स्वादिष्ट पकवान बनते थे। सब्जी के अलावा कई तरह के मांस भी पकते थे। किसके कारण उन लजीज पकवानों की सुगंध से राजकुमार का मन बहक जाता और वह भोजन के लिए जिद करता था। इकलौता राजपुत्र होने के कारण उसकी हर जिद पूरी कर दी जाती थी।
इसके बाद शीतला का प्रकोप घटने के बजाय बढ़ने लगा। शीतला के साथ-साथ उसे बड़े-बड़े फोड़े भी निकलने लगे। उन फोड़ों में खुजली और जलन तेज होती थी। शीतला की शांति के लिए राजा के लाख प्रयास के बावजूद उनका प्रकोप घटने के बजाय बढ़ता गया। क्योंकि अज्ञानतावश राजा के महल में सारे कार्य उलटे हो रहे थे। इसके बाद राजा अधिक परेशान हो गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि इतनी कोशिशों के बाद भी शीतला का प्रकोप शांत क्यों नहीं हो रहा है।
फिर, एक दिन राजा के गुप्तचरों ने बताया कि काछी-पुत्र को भी शीतला निकली थी। लेकिन, वह अब बिलकुल ठीक हो गया है। यह जानकर राजा को हैरानी हुई कि मैं शीतला की इतनी सेवा कर रहा हूं, पूजा-अनुष्ठान में कोई कमी नहीं कर रहा फिर भी मेरा पुत्र रोगी होता जा रहा है। जबकि काछी पुत्र तो बिना सेवा और पूजा के ही ठीक हो गया। यह सोचते-सोचते उसे नींद आ गई।
तभी श्वेत वस्त्र धारिणी भगवती ने राजा के स्वप्न में दर्शन देकर कहा- 'हे राजन्! मैं तुम्हारी सेवा से प्रसन्न हूं। इसीलिए तुम्हारा पुत्र अभी जीवित है। इसके ठीक न होने का कारण यह है कि तुमने शीतला के समय पालन करने वाले नियमों का उल्लंघन किया है। तुम्हें इस हालत में नमक पर पाबंदी लगाना चाहिए। नमक से रोगी के फोड़ों में खुजली बढ़ जाती है। बिना छौंक वाली सब्जियों का सेवन करना चाहिए क्योंकि छौंक के गंध से रोगी का मन ललचाता है। इसके अलावा रोगी को किसी के पास आना-जाना भी नहीं करना चाहिए। इससे रोगों का संक्रमण फैलता है। अतः इन नियमों का पालन करोगे तो तुम्हारा पुत्र अवश्य ही ठीक हो जाएगा।' विधि समझाकर देवी अंतर्ध्यान हो गईं।
सुबह उठते ही राजा ने देवी की आज्ञानुसार सभी नियमों का पालन करना शुरू कर दिया। इससे राजकुमार की सेहत में भी सुधार नजर आया वह अंततः ठीक हो गया। शीतला माता की पूजा के अलावा इस दिन भगवान श्री कृष्ण और माता देवकी का विधिवत रूप से पूजन करके मध्यकाल में सात्विक चीजों के भोग लगाने की मान्यता है। इस तरह पूजन और कथा वाचन से पुण्य की प्राप्ति और कष्टों का निवारण होता है।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें
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