Shitala Mata Ki Katha: शीतला सप्तमी के दिन जरूर पढ़ें ये पावन कथा, इसके बिना अधूरी है व्रत पूजा
Sheetala Saptami Ki Kahani (Shitala Saptami Ki Katha): हिंदू धर्म में शीतला सप्तमी के व्रत की काफी महिमा बताई जाती है। मान्यता है इस व्रत को रखने से संतानों की सेहत हमेशा अच्छी रहती हैं। चलिए जानते हैं इस पर्व से जुड़ी पावन कथा।
Shitala Saptami Ki Katha
Sheetala Mata Ki Katha (Shitala Saptami Ki Katha In Hindi): शीतला सप्तमी हिंदू धर्म का इकलौता ऐसा व्रत है जिसमें बासी भोजन का सेवन किया जाता है। साथ ही शीतला माता को भी इस दिन बांसी भोजन ही चढ़ाया जाता है। मान्यता है इस व्रत को करने से रोग, चेचक, फुंसिों, ज्वर इत्यादि रोगों से मुक्ति मिल जाती है। इतना ही नहीं संतान को अच्छे स्वास्थ्य की भी प्राप्ति होती है। यहां जानिए शीतला सप्तमी की कहानी (Shitala Saptami Ki Kahani)।
Shitala Saptami Ki Katha In Hindi (शीतला सप्तमी की कथा)
एक गांव में एक बूढ़ी औरत रहती थी। एक बार उसने और उसकी दोनों बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा था। मान्यताओं अनुसार इस दिन केवल बासी चावल ही चढ़ाए और खाये जाते हैं लेकिन दोनों बहुओं ने इसकी जगह ताजा खाना बना लिया। क्योंकि दोनों ही बहुओं की हाल ही में संतान हुई थी तो दोनों को इस बात का डर था कि कहीं बासी खाना उन्हें नुकसान ना पहुंचा दे। जब ये बात उनकी सास को पता चली तो उसे दोनों पर बहुत गुस्सा आया। कुछ ही समय बाद दोनों बहुओं की संतानों की अचानक मृत्यु हो गई। जिसके चलते सास ने अपनी दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया।
अपने मृत बच्चों को लेकर दोनों बहुएं घर से निकल गयी। फिर रास्ते में उन्हें दो बहनें ओरी और शीतला मिली। दोनों जूंओं से परेशान थी, बहुओं को जैसे ही ये बात पता चली तो उन्होंने उन बहनों के सिर को साफ कर दिया। जिससे उन दोनों बहनों को आराम मिला। दोनों ने उन्हें आशार्वाद दिया और कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए। ये बात सुनकर दोनों बहुएं रोने लग गयीं और अपने बच्चों के साथ हुई घटना के बारे में उन्हें बचाया। बहुओं की कहानी सुनकर शीतला ने कहा तुम दोनों को तुम्हारे कर्मों का फल मिला है।
अपनी गलती मानकर दोनों ने शीतला माता से माफी मांगी और भविष्य में फिर कभी ऐसा नहीं करने की प्रतिज्ञा भी ली। तब शीतला माता ने दोनों बच्चों को दोबारा से जीवित कर दिया। कहते हैं इसी के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाए जाने लगा।
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