Santoshi Mata Ki Katha In Hindi: शुक्रवार व्रत कथा, पढ़ें माता संतोषी की पौराणिक कहानी

Maa Santoshi Vrat Katha: शुक्रवार के दिन कई लोग संतोषी माता के व्रत रखते हैं। मान्यता है इस व्रत को रखने से जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। अगर आप भी शुक्रवार के दिन संतोषी माता का व्रत करते हैं तो ये कथा जरूर पढ़ें।

Santoshi Mata Ki Katha In Hindi: शुक्रवार व्रत कथा, पढ़ें माता संतोषी की पौराणिक कहानी
Maa Santoshi Vrat Katha (मां संतोषी व्रत कथा): हिंदू धार्मिक मान्यताओं अनुसार मां संतोषी भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण कर देती हैं। कहते हैं जो कोई भी भक्त सच्चे मन से मां संतोषी का व्रत करता है उसके जीवन में कभी आर्थिक संकट नहीं आता। ये व्रत बाकी व्रतों के तुलना में थोड़ा कठिन होता है लेकिन इसका प्रभाव काफी ज्यादा होता है। लेकिन इस व्रत का पूर्ण फल तभी प्राप्त होता है जब व्रत की शाम को मां संतोषी की कथा सुनी जाए। तो यहां हम आपको बताने जा रहे हैं मां संतोषी की पावन कथा।

संतोषी माता की व्रत कथा (Santoshi Mata Vrat Katha)

संतोषी माता की पौराणिक कथा अनुसार प्राचीन समय में एक बुढ़िया हुआ करती थी जिसके सात बेटे थे। इन सातों बेटों में से छह बेटे तो कमाते थे लेकिन एक बेटा घर पर ही रहता था। बुढ़िया अपने कमाने वाले छह बेटों को तो खूब स्वादिष्ट भोजन खिलाती थी लेकिन सातवें बेटे को केवल बचा-कुचा ही परोसा करती थी। हालांकि सातवां बेटा मन का बहुत साफ था। ऐसे में वह इस बात का कभी बुरा नहीं मानता था।
एक दिन त्योहार का दिन था। बुढ़िया ने तरह-तरह के व्यंजन बनाए और अपने कमाने वाले बेटों की राह तकने लगी। तब उसके सातवें बेटे ने सिर दुखने का बहाना किया और वह एक बेहद पतला कपड़ा लेकर पलंग पर लेट गया और सोने का नाटक करने लगा। ये वही बेटा था जो कमाता नहीं था। उसने देखा कि, जब उसके छह भाई आए तब उसकी मां ने उसके सभी भाईयों को आसन पर बिठाया और उन्हें तरह-तरह के बनाए हुए पकवान परोसे। जब उन सभी ने भोजन कर लिया तो सब की थाली से जूठन इकट्ठा करके बुढ़िया ने एक लड्डू बनाया और सातवें लड़के से बोली, ‘बेटा आजा अब तू भी भोजन खा ले।’
जिस पर उसने जवाब दिया कि, ‘मां मुझे भूख नहीं है मैं भोजन नहीं करुंगा और मैं परदेस जा रहा हूं। यह कहते हुए वह घर से निकल गया। लड़का चलते-चलते दूर एक व्यापारी की दुकान पर पहुंचा और वहां जाकर नौकरी मांगने लगा। व्यापारी ने उसे नौकरी पर रख लिया। लड़का सुबह 7 बजे से 12 बजे तक नौकरी करने लगा। देखते ही देखते सेठ ने उसके काम से प्रभावित होकर उसे अपने आधे मुनाफ़े का हिस्सेदार बना दिया और कुछ ही सालों में वो लड़का नामी-गिरामी सेठ बन गया।
वहां दूसरी तरफ उसकी पत्नी को लगातार उसकी जेठानियां परेशान कर रही थीं। वे उसे रोज जंगल में लकड़ी लेने के लिए भेजती थीं और बचा कुचा उसे परोसती थीं। एक दिन जब वह जंगल में लकड़ी लेने जा रही थी तब उसने रास्ते में औरतों को एक व्रत करते हुए देखा। उसने उस व्रत के बारे में जानना चाहा तो जवाब में एक महिला ने बोला यह संतोषी मां का व्रत है और इससे हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
तब उसने उस व्रत की विधि भी पूछी और घर जाते समय उसने सारी लकड़ियां बेचकर गुड़ और चना ख़रीद लिया। इस तरह से वह संतोषी माता का व्रत करने लगी।इस व्रत के प्रभाव से अगले शुक्रवार को उसके पति का खत आया और इसके अगले शुक्रवार उसे पति द्वारा भेजा हुआ धन प्राप्त हुआ। तब उसकी पत्नी मां संतोषी के मंदिर में जाकर रोते हुए बोली मां मुझे धन और पत्र नहीं मेरा पति चाहिए। इधर पर मां संतोषी ने उसके पति के सपने में आकर उससे कहा कि, अब तुम्हें अपनी पत्नी से मिलने जाना चाहिए।
इस सपने के बाद उसका पति सारा काम निपटा कर घर के लिए चल दिया। जब उस औरत का पति घर वापस लौटा तो पत्नी ने उससे कहा कि मुझे संतोषी मां के व्रत का उद्यापन करना है। ऐसे में दोनों ने तैयारी शुरू कर दी। लेकिन आस-पड़ोस की महिलाओं को उससे ईर्ष्या होने लगी थी कि कैसे इसके साथ सब अच्छा हो रहा है। धन-दौलत की अब कोई कमी नहीं रही है। ऐसे में उन्होंने छल से अपने बच्चों को यह सिखाया कि, खाना खाते समय बहू से खटाई मांगना। बच्चों ने ठीक वैसा ही किया लेकिन बहू ने खटाई न देकर बच्चों को पैसे दिए और बच्चों ने उन पैसों से दुकान से खटाई खरीद ली। जैसे ही बच्चों ने खटाई खाई वैसे ही उस महिला का जीवन फिर से दुख से भर गया।
तब उस औरत ने दोबारा मां संतोषी के मंदिर में जाकर माता से सवाल किया कि माता आखिरी मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? मेरे पति को भी राजा के सेवक पकड़ कर ले गए। तब मां संतोषी ने उसे बताया कि तुमने मेरी पूजा में खटाई का इस्तेमाल किया था इसलिए तुम्हारे जीवन में यह दुखों का पहाड़ टूटा है। तब उस महिला को सारी बात समझ आ गई। तब उस औरत ने वापस से उद्यापन का संकल्प लिया और पूरे विधि विधान और बिना किसी गलती के मां का उद्यापन किया। जिससे मां संतोषी प्रसन्न हुईं। ठीक 9 महीने बाद दंपति के घर में एक सुंदर पुत्र पैदा हुआ और उनका जीवन सुखों से भर गया।
तभी से कहते हैं कि जो कोई भी सच्ची निष्ठा और विधि विधान से मां संतोषी का व्रत रखता है उसके जीवन में कभी कोई दुख नहीं आता। साथ ही मां संतोषी अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण कर देती हैं।
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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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