Benefits of Sankha Sound: शंख की ध्वनि पवित्रता ही नहीं सेहत के लिए भी है वरदान, बहुत आसान है सही और उपयोगी शंख की पहचान

अपने गुणाें और प्रभावशीलता के कारण हिंदू पूजा पद्वति में शंख शुद्ध वस्तु मानी गयी है। वामवर्ती शंख और दक्षिणावर्ती शंख को शास्त्रों में पूजा में शुभ माना गया है। सनातन धर्म में बिना शंखनाद के पूजा, आरती अधूरे माने जाते हैं। जिस घर में प्रतिदिन शंखनाद होता है वहां सकारात्मक उर्जा का वास होता है।

benefits of sankha sound.

दो प्रकार के होते हैं शंख।

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • बिना शंखनाद के अधूरी मानी जाती है पूजा
  • वामवर्ती और दक्षिणावर्ती हैं शंख के प्रकार
  • प्रतिदिन शंखनाद दूर करता है नकारात्मकता
Benefits of Sankha Sound: शंख से हर व्यक्ति परिचित है। प्राचीन काल से धार्मिक आध्यात्मिक, पूजा− पाठ में शंख की महत्तवता रही है। अपने गुणाें और प्रभावशीलता के कारण हिंदू पूजा पद्वति में शंख एक अत्यंत शुद्ध पूज्य वस्तु रही है। शंख के महत्व का वर्णत बहुत से पुराणाें में है। शंख को लक्ष्मी का सहोदर और भगवान विष्णु का प्रिय पात्र माना जाता है। इसलिए आज भभ यदि कहीं मांगलिक कार्य होता है या मंदिर में पूजा अर्चना, आरती हाेती है तो शंखनाद अवश्य ही किया जाता है। शंख का घाेष वातावरण में नवचेतना कर देता है। शंख से निकलने वाली ध्वनि से मन में एक अद्भुत पवित्रता, आध्यात्मिकता और आस्तिकता का संचार होता है। शास्त्रों में दो प्रकार के शंखाें को महत्पूर्ण स्थान दिया है।

1- वामवर्ती शंख

वामवर्ती खंश प्रायः बहुतायत में मिलने हैं। वामवर्ती शंख उन्हें कहते हैं जिनका पेट बायीं ओर खुलता है। यह शंख प्रायः आसानी से मिल जाते हैं। यह विभिन्न प्रकार के होते हैं, इसका मुंह उपर से कटा हुआ रहता है। यह बजाने के के काम में आता है। बजाने वाला शंख सबसे उत्तम द्वारिका का हाता है। इसको बजाने के अनेक महत्व हैं।
वामवर्ती शंख बजाने का महत्व
पूजा पाठ में शंख ध्वनि शुभ मानी जाती है। शंख ध्वनि से देखता प्रसन्न होते हैं। जहां तक शंख की आवाज जाती है वहां तक का वातावरण प्रदूषण से मुक्त हो जाता है। वहां के समस्त कीटाणु शंख की आवाज से नष्ट हो जाते हैं। प्रतिदिन शंख बजाने से फेफड़ों का व्यायाम होता है, जिससे हृदय रोग नहीं होते हैं।
2- दक्षिणावर्तीी शंख
दक्षिणावर्ती शंख कम मात्रा में मिल पाता है। दक्षिणावर्ती शंख की पहचान है कि इनका पेट दाहिनी ओर खुलता है। दक्षिणावर्ती शंख को दाहिनावर्ती शंख, विष्णु शंख, जमना शंख और लक्ष्मी शंख भी कहते हैं। मान्यता है ककि समुद्र मंथन में जब यह शंख निकला तो भगवान विष्णु ने इसे अपने दाहिने हाथ में धारण कियाथा, इसलिए यह भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का प्रिय है।
दक्षिणावर्ती शंख का महत्व
पूजा के लिए दाहिनावर्ती शंख छोटा या बड़ा कोइ भी हो, सबका प्रभाव समान है। दाहिनावर्ती शंख से भरा हुआ साधारण जल भी पवित्र नदियों के जलों के समान पुण्य देने वाला होता है। इसलिए भगवान को स्नान कराने के लिए दाहिनावर्ती शंख में जल भरकर प्रयोग किया जाता है। इसमें जल भरकर सूर्य देव को अर्घ्य भी देते हैं। दक्षिणावर्ती शंख धन दायक होता है। मान्यता है कि जिस घर में दक्षिणावर्ती शंख होता है उस घर में लक्ष्मी जी का वास होता है।
दक्षिणावर्ती शंख की इस तरह करें पूजा
दक्षिणावर्ती शंख को प्राप्त करके सोमवार के दिन स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर शंख को कच्चे दूध से स्नान कराने के पश्चात इसे गंगाजल से धाे लें। फिर किसी लाल वस्त्र या चांदी या सोने के सिंहासन पर इसे विराजमान करें। चंदन, धूप, केसर, पुष्प, कपूर, दीप से इसकी पूजा करें। इसके बाद प्रतिदिन लक्ष्मी और विष्णु जी की प्रतिमा की भांति ही श्रद्धापूर्वक इसका पूजन करते रहें। शंख को आसान पर इस तरह रखें कि इसका खुला हुआ पेट आसमान की तरफ और पीछ आसन पर हो, मुख भाग पूजा करने वाले की तरह और पुष्छ भाग भगवान की तरफ हो।
डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।
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