University of Tantra: उड़न तश्तरी की तरह लगता है ये चौसठ योगिनी मंदिर, कुछ लोग कहते हैं ससंद भवन है इसकी कॉपी

University of Tantra: अद्भुत वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है मप्र के मुरैना में स्थापित चौसठ योगिनी मंदिर। गोलाकर निर्माण के कारण संसद भवन को इसकी कॉपी कहा जाता है। 100 फुट उंचे पहाड़ पर बने मंदिर को कुछ लोग कहते हैं उड़न तश्तरी जैसा भी। 200 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचते हैं मंदिर तक।

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मप्र के मुरैना में स्थापित चौसठ योगिनी मंदिर।

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • मध्य प्रदेश के मुरैना में है चौसठ याेगिनी मंदिर
  • 100 फुट उंचे पर्वत पर गोलाकार में बना है मंदिर
  • मंदिर के सभी 64 कमरों में स्थापित हैं शिवलिंग

University of Tantra: देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद भवन की आधार प्रेरणा। आकार में बिल्कुल संसद भवन। देखकर लगता है जैसे वास्तुविदों ने यहीं से दिल्ली की संसद का डिजाइन लिया हाेगा लेकिन विशेषता में इससे बिल्कुल इतर। दूसरे शब्दों में कहें तो तंत्र मंत्र का विश्वविद्यालय। जितनी अद्भुत वास्तुकला उतना ही गहरा महत्व और इतिहास भी। हम बात कर रहे हैं मुरैना, मप्र के 64 योगिनी मंदिर की। भारत में कुल चार 64 योगिनी मंदिर हैं। जिनमें से दो उड़िसा में हैं और दो मध्य प्रदेश में। आज हम आपको ले चलते हैं वास्तु कला के बेजोड़ नमूने मुरैना के 64 योगिनी मंदिर।

मंदिर की विशेषता

मुरैना में बना 64 योगिनी मंदिर एक सौ फुट उंची पहाड़ी पर बना है। दूर से या फिर ड्रोन के माध्यम से देखें तो मंदिर लगता है कि दिल्ली के संसद भवन के डिजाइन को यहीं से कॉपी किया गया है। उसी तरह गोलाकार में बना मंदिर स्तंभों पर टिका हुआ है। इस मंदिर के हर कक्ष में स्थापित शिवलिंग के कारण ही एकट्टसो महादेव मंदिर भी कहा जाता है। देश में चुनिंदा मंदिर ही इस आकार में बने हैं। मंदिर के आंतरिक भाग में 64 छोटे कक्ष हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 200 सीढ़ियों पर चढ़ना होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस मंदिर की तुलना कुछ लोग उड़न तश्तरी से भी करते रहे हैं। इस मंदिर काे 700 वर्ष से अधिक प्राचीन बताया जाता है। मंदिर का निर्माण कच्छप राजा देवपाल ने विक्रम संवत 1383 में कराया था।

मंदिर में बना है प्राचीन रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम

सदियों पूर्व बनाए गए इस मंदिर में आधुनिक काल की सबसे प्रमुख आवश्यकता रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी बना है। मुख्य केंद्रीय मंदिर में स्लैब के आवरण हैं जो एक बड़े अंडर ग्राउंड भांडरण के लिए बारिश के पानी को संचित करने में उपयोग होता है। इसमें छिद्र भी बने हुए हैं। छत से पाइप लाइन बारिश के पानी को स्टोरेज तक ले जाती है।

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भूकंप के झटके भी नहीं हिला सके मंदिर

योगिनी शक्ति क्योंकि माता काली के पसीने की बूंद से उत्पन्न हुयी थीं। इसलिए ये उन्हीं की तरह बलशाली होती हैं। शायद इसीलिए ये मंदिर भूंकपीय क्षेत्र में आने के बाद भी आज तक बिना किसी नुकसान के यहां खड़ा है। सदियों से यहां भूकंप के तमाम झटके आए हैं लेकिन इस मंदिर को किसी भी तरह का नुकसार नहीं पहुंचा।

डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।

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