Ramayan Spiritual Quotes: मनुष्य जैसा भी अच्छा या बुरा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है, यहां देखें रामायण की प्रेरक बातें
Ramayan Spiritual Quotes In Hindi: पंडित सुजीत जी महाराज अनुसार घर में रोजाना रामचरितमानस का पाठ करने से कई अद्भुत लाभ मिलते हैं। इतना ही नहीं इसे पढ़ने से जीवन की कई परेशानियों का अंत हो जाता है। यहां आप जानेंगे रामायण के कुछ लोकप्रिय श्लोकों के बारे में।
Ramayan Spiritual Quotes
Ramayan Spiritual Quotes: हिंदू धर्म में रामायण ग्रंथ का विशेष महत्व माना जाता है। कई लोग तो रोजाना इसका पाठ करते हैं। मान्यता है रामायण पढ़ने से जीवन में सकारात्मकता तो आती ही है साथ जीवन की कई परेशानियों का हल भी हो जाता है। स्वयं रामचरितमानस में इसे पढ़ने के कई लाभ बताये गए हैं जिसके अनुसार जिस घर में रोजाना रामचरितमानस का पाठ होता है वहां दरिद्रता कभी नहीं आती। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं रामायण के कुछ प्रसिद्ध श्लोक जो आपको सकारात्मक ऊर्जा से भर देंगे।
Spiritual Quotes Of Ramayan In Hindi
1. धर्म-धर्मादर्थः प्रभवति धर्मात्प्रभवते सुखम् । धर्मण लभते सर्वं धर्मप्रसारमिदं जगत् ॥
अर्थ- धर्म से ही धन, सुख तथा सब कुछ प्राप्त होता है। यानी इस संसार में धर्म ही सार वस्तु है।
2. सत्य -सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः । सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम् ॥
अर्थ- सत्य ही संसार में ईश्वर है और धर्म भी सत्य के ही आश्रित है। सत्य ही समस्त भव-विभव का मूल है और सत्य से बढ़कर कुछ नहीं है।
3. पितॄणां सेवा प्रभवति मोक्षसाधनं महान् | कर्तव्यं च महापातकनाशनम् ||
अर्थ- माता-पिता की सेवा मोक्ष प्राप्ति का एक महान साधन है। यह एक ऐसा कर्तव्य भी है जो सभी पापों को नष्ट कर देता है।
4. उत्साह-उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम् । सोत्साहस्य हि लोकेषु न किञ्चदपि दुर्लभम् ॥
अर्थ- उत्साह बड़ा बलवान होता है। उत्साह से बढ़कर कोई बल नहीं है। उत्साही पुरुष के लिए संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
5. कर्मफल-यदाचरित कल्याणि ! शुभं वा यदि वाऽशुभम् । तदेव लभते भद्रे! कर्त्ता कर्मजमात्मनः ॥
अर्थ-मनुष्य जैसा भी अच्छा या बुरा कर्म करता है। उसे वैसा ही फल मिलता है। कर्ता को अपने कर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है।
6. उपकारफलं मित्रमपकारोऽरिलक्षणम्॥
अर्थ - मित्र पर उपका करना मित्रता का लक्षण है और अपकार करना शत्रुता का लक्षण है।
7. वसेत्सह सपत्नेन क्रुद्धेनाशुविषेण च। न तू मित्रप्रवादेन संवसेच्छत्रु सेविना॥
अर्थ - शत्रु और महाविषधर सर्प के साथ भले ही रह लें लेकिन ऐसे मनुष्य के साथ कभी न रहें। जो ऊपर से तो मित्र कहलाता है, लेकिन भीतर-भीतर शत्रु का हित साधक हो।
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लवीना शर्मा author
धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 सा...और देखें
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